बस्तर में तेजी से हो रहा धर्मांतरण? जानिए क्या है हकीकत

रायपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक बार फिर से आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को लेकर विवाद शुरू हो गया है। ये विवाद शुरू हुआ सुकमा एसपी के एक सरकारी पत्र के लीक होने से। पत्र में धर्मांतरण को लेकर समुदाय विशेष से सक्रिय लोगों पर नजर रखने की बात कही गई है। इधर SP के पत्र की भाषा को लेकर क्रिश्चियन फोरम ने आपत्ति जताई है और इस पूरे मामले पर जांच की मांग की है। ये सच है कि कई आदिवासी इलाकों में मिशनरियों और आदिवासियों के बीच संघर्ष एक बड़ा मुद्दा है। कई इलाकों में नौकरी, पैसा, भोजन का लालच देकर आदिवासियों को ईसाई धर्म के प्रति लुभाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं, लेकिन हकीकत क्या है?

छत्तीसगढ़ का वनांचल क्षेत्र बस्तर, यहां की जनजातियां अपनी अनोखी और विशिष्ट आदिवासी संस्कृति और विरासत के लिए जानी जाती है। यहां आदिवासी और गैर आदिवासी संस्कृति का मिलाजुला अद्भुत आंचलिक स्वरूप देखने को मिलता है। संस्कृति के इस आंचलिक स्वरूप के दर्शन यहां की आदिवासी-लोक कलाओं में स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। बस्तर के प्रत्येक जनजातीय समूह की अपनी अलग संस्कृति है और अपनी अनूठी पारंपरिक जीवन शैली का आनंद लेते हैं। प्रत्येक जनजाति ने अपनी बोलियाँ विकसित की हैं और अपनी वेशभूषा, खान-पान, रीति-रिवाजों और परंपराओं में अन्य जनजातियों से भिन्न हैं, लेकिन अब बस्तर को किसी इस खूबसूरती पर किसी की नजर लग गई है। जी हां बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण का मुद्दा ना सिर्फ प्रदेश बल्कि देश में भी उठ रहा है।

दरअसल 12 जुलाई को सुकमा एसपी सुनील शर्मा ने अपने अधीनस्थ अफसरों के लिए एक पत्र जारी किया, जिसमें उन्होंने लिखा है कि कई मिशनरियां जिले में बहला फुसलाकर आदिवासियों को धर्मांतरित कर रही हैं। इससे आदिवासियों के बीच ही टकराव की स्थिति पैदा हो रही है, कानून व्यवस्था ना बिगड़े इसका ध्यान रखें। ये सच है कि कई आदिवासी इलाकों में मिशनरियों और आदिवासियों के बीच संघर्ष एक बड़ा मुद्दा है। साथ ही दूरदराज के इलाकों में नौकरी, पैसा, भोजन का लालच देकर आदिवासियों को ईसाई धर्म के प्रति लुभाने की खबरें अक्सर आती रहती हैं।

पूरा बस्तर जनजातीय बहुल क्षेत्र है, आरोप लगते हैं कि यहां पिछले कुछ दशकों में ईसाई मिशनरियों द्वारा जनजातीय ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर उनका धर्मांतरण किया जा रहा, जिससे जनजातीय समाज की वर्तमान पीढ़ी अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं से कट रही है। साथ ही जनजाति समाज के ऐतिहासिक संस्कृतियों और परंपराओं को अपमानित करने और उसे तोड़ मरोड़ कर पेश करने का भी मिशनरियों पर आरोप लगता रहा है।

क्रिश्चन फोरम के नेताओं ने मांग की है मामले की जांच हो। ये सच है कि पिछले कुछ समय से लगातार आदिवासी समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन के दौरान बेहद आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का खतरा भी मंडरा रहा है। ऐसे में पुलिस को इंसाफ करने की बजाय बिना पूर्वाग्रह के मामले की जांच करने की जरूरत है। क्रिश्चियन फोरम ने संवैधानिक अधिकारों का हवाला देते हुए मांग की है कि मामले में निष्पक्ष जांच की जाए।

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