अब पान खाना होगा महंगा! जानिए क्यों और कैसे

सुपारी की बढ़ती कीमतों से किसान इस वक्त खुश हैं. लेकिन, पान खाने वालों के लिए मुश्किलें बढ़ गई है. क्योंकि 18 महीने में सुपारी के दाम दोगुने हो गए है. कारोबारियों का कहना है कि आगे भी कीमतें बढ़ने की आशंका बन हुई है. अगर बढ़ी हुई कीमतें बरकरार रहीं तो कटाई के साथ ही अच्छी आमदनी हो जाएगी. इस वक्त जिन किसानों के पास स्टॉक है, वे अच्छी कमाई कर रहे हैं. सेंट्रल एरेकनट एंड कोकुआ मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कोअपरेटिव (Central Arecanut and Cocoa Marketing and Processing Cooperative) का कहना है कि नई सुपारी का दाम 500 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है. वहीं, पुराने माल का दाम 515 रुपये प्रति किलोग्राम

सेंट्रल सुपारी और कोको मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग कोऑपरेटिव लिमिटेड (CAMPCO) के साथ काम करने वाली जया भंडारी ने बिजनेस हिंदुलाइन को बताया कि ‘ताजे लाल सुपारी की आवक शुरू हो गई है, इसलिए कीमत जो कीमत 600 रुपए प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई थी, हाल ही में कम हो गई है.’

छोटे किसानों को नहीं मिलेगा बढ़ी हुई कीमतों का लाभ

सुपारी बाजार पर नजर रखने वाले लोगों का मानना ​​है कि मांग बढ़ने के कारण कीमत बढ़ रही है. भंडारी ने कहा, ‘उत्तर भारत में सुपारी का कोई स्टॉक नहीं है. जिन उत्पादकों और व्यापारियों के पास स्टॉक है, वे मुनाफा कमा रहे हैं.’

किसानों को प्रति एकड़ आठ से 10 क्विंटल सुपारी मिलती है. मौजूदा दरों को देखते हुए, दो या तीन एकड़ के बागान वाले किसान भी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. लेकिन, छोटे उत्पादकों को शायद ही कोई फायदा हो क्योंकि उन्होंने अपना स्टॉक बहुत पहले ही बेच दिया था.

दरअसल, कर्नाटक में सुपारी उगाने वाले क्षेत्रों के कई हिस्सों में बारिश जारी रही. इस वजह से फसल की कटाई में देरी हुई, जिससे कीमतों में वृद्धि हुई. एक सुपारी किसान चंद्रेशखर कहते हैं, ‘हम फसल के तुरंत बाद उपज बेच देते हैं. अगर मौजूदा कीमतें जारी रहती हैं तो हम इस बार अच्छी कमाई करेंगे.’

कुछ किसान पीली पत्ती रोग के कारण हैं परेशान

कुछ हिस्सों में सुपारी उत्पादक किसान परेशानियों का सामना कर रहे हैं. पीली पत्ती रोग के कारण पिछले कुछ वर्षों में वृक्षारोपण और उपज में भारी गिरावट आई है. कुछ बागवानों को प्रति एकड़ कुछ किलो तक ही उपज मिल रही है.

एक किसान श्रीनिवास मूर्ति ने कहा कि हम अपने बागानों को बचाने के लिए पीली पत्ती रोग से लड़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि कीमतों में असामान्य वृद्धि से सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी. यह बड़े और छोटे उत्पादकों के बीच की खाई को और चौड़ा करेगा.

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