कोई अकेला कमाने वाला तो कोई कल ही लौटने वाला था घर, देश नहीं भुलेगा 5 शहीदों की कुर्बानी

नई दिल्ली. जम्मू के सीमावर्ती जिले पुंछ (Poonch) को कश्मीर में शोपियां से जोड़ने वाले मुगल रोड पर चामरेड के जंगलों में 17 साल बाद इतनी घातक मुठभेड़ की खबर सामने आई. यहां सोमवार सुबह आतंकियों से दो-दो हाथ कर रहे भारतीय सेना के एक जूनियर कमिशन्ड ऑफिसर और चार जवान शहीद हो गए. इनकी पहचान नायब सूबेदार जसविंदर सिंह (Jaswinder Singh), नायक मनदीप सिंह (Mandeep Singh), सिपाही गज्जन सिंह (Gajjan Singh), सराज सिंह (Saraj Singh), वैसाख एच (Vaisakh H) के रूप में हुई है. इससे पहले 2004 में हुए एनकाउंटर में 4 सैनिक शहीद हो गए थे. मंगलवार शाम तक मुठभेड़ पास के राजौरी जिले के पंगई इलाके तक पहुंच गई थी. एक नजर डालते हैं इन सभी नायकों पर जो आतंकी साजिशों को रोकने के लिए अपनी जान कुर्बान कर गए.

 

नायब सूबेदार जसविंदर सिंह
39 साल के सिंह को 2006 में कश्मीर में तीन आतंकियों को मारने में अहम भूमिका निभाने के चलते सेना मेडल मिला था. पंजाब के कपूरथला जिले के तलवंडी गांव के रहने वाले सिंह के घर पर अब पत्नी सुखप्रीत कौर (35), बेटा विक्रजीत सिंह (13), बेटी हरनूर कौर (11) और 65 वर्षीय मां बचे हैं. कुछ ही दिनों में उनके दिवंगत पिता को लेकर घर में कार्यक्रम होना था, जिसके चलते सिंह ने शनिवार रात को ही सभी लोगों से बात की थी.

उनके पिता हरभजन सिंह भी सेना में रहे और कैप्टन के तौर पर रिटायर हुए. बड़े भाई रजिंदर सिंह 2015 में सेना से रिटार हुए. उन्होंने बताया कि जसविंदर 12वीं तक पढ़ाई के बाद सेना में 2001 में भर्ती हुए. तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे जसविंदर आखिरी बार मई में घर आए थे.

नायक मनदीप सिंह
30 साल के मनदीप पंजाब में गुरदासपुर के छाता से आते हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उनके भाई जगरूप सिंह ने बताया, ‘हम तीन भाई हैं, एक कतर में है और वहां ट्रक चलाता है. मनदीप मेरे पीछे सेना में 10 साल पहले आया था.’ उन्होंने बताया कि उनके परिवार गांव में मांग के साथ रहते हैं. पिता का 2018 में निधन हो गया था. मनदीप का पत्नी का नाम भी मनदीप हैं और उनके 3 महीने और 18 महीने के दो छोटे बेटे हैं.

उनके भाई बताते हैं कि कमाने के लिए निकले सभी भाइयों के पीछे घर को केवल औरतें ही संभालती हैं. ऐसे में तीनों भाई घर में अपनी बारी के हिसाब से आते हैं, जिसके चलते एक भाई की दूसरे से मुलाकात लंबे समय तक नहीं होती. पुंछ एनकाउंटर से कुछ देर पहले ही जगरूप ने मनदीप से वीडियो कॉल पर बात की थी. खास बात है कि उनके गांव के कम से कम 15 लोग सेना में हैं, लेकिन उनके भाई बताते हैं कि मनदीप गांव का ‘पहला शहीद’ है.

सराज सिंह
तीन भाइयों में सबसे छोटे 25 साल के सराज सिंह ने चार साल पहले ही सेना में कदम रखा था. उनके बड़े भाई गुरप्रीत और सुखविंदर भी सेना में थे. दिसंबर 2019 में उनकी शादी हुई थी और आखिरी बार उन्होंने पत्नी रंजीत कौर से रविवार रात को बात की थी. उन्होंने वादा किया था कि वे दिवाली पर घर आ रहे हैं. दोनों के बच्चे नहीं थे. रिपोर्ट के अनुसार, बांदा एसएचओ मनोज कुमार का कहना है कि परवार शाहजहांपुर के बांदा इलाके से आता है. यूपी सरकार ने शहीद सैनिक के परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक मदद, परिजन को नौकरी और सराज के नाम पर एक सड़क का नाम रखने का ऐलान किया है.

वैसाख एच
केरल में कोलम जिले के कुडवट्टूर गांव से आने वाले 23 वर्षीय वैसाख एच. ढाई साल पहले जम्मू-कश्मीर में तैनात थे. यह उनकी दूसरी पोस्टिंग थी. कक्षा 12 तक पढ़ाई के बाद उन्होंने 2017 में सेना में कदम रखा था. कुछ समय तक वे पंजाब के कपूरथला में भी सेवा में रहे. वैसाख घर में अकेले कमाने वाले थे. उनके पिता हरिकुमार ने कोविड के चलते कोच्चि में एक निजी कंपनी में नौकरी गंवा दी थी. उनके घर में मां और एक छोटी बहन शिल्पा है.

गज्जन सिंह
रूपनगर जिले के पचरंदा गांव से आने वाले गज्जन सिंह चार महीने पहले ही शादी के बंधन में बंधे थे. उनकी पत्नी का नाम हरप्रीत कौर है. खबर है कि वे 13 अक्टूबर को ही 10 दिनों की छुट्टी पर घर लौटने वाले थे, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो सका. चार भाइयों में सबसे छोटे सिंह के घर में तीनों बड़े भाई किसान हैं.

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