
रायगढ़। छत्तीसगढ़ में बजरमुड़ा घोटाला अब तक का सबसे बड़ा सुनियोजित भ्रष्टाचार मामला बन चुका है। यह घोटाला कई सरकारी विभागों — राजस्व, लोक निर्माण, पीएचई, वन विभाग, उद्यानिकी और विद्युत विभाग — के अधिकारियों की प्रत्यक्ष मिलीभगत का नतीजा बताया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, सीएसपीजीसीएल ने बजरमुड़ा समेत पांच गांवों की भूमि अधिग्रहित की, जिसमें कुल 449.166 हेक्टेयर जमीन शामिल थी। इस प्रक्रिया में केवल बजरमुड़ा के 170 हेक्टेयर भूमि पर 415 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया, जबकि बाकी चार गांवों — ढोलनारा, करवाही, खम्हरिया और मिलूपारा — की कुल 225 हेक्टेयर जमीन के लिए केवल 100.54 करोड़ रुपए का मुआवजा निर्धारित किया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि बजरमुड़ा में परिसंपत्तियों का मूल्यांकन गलत किया गया और भूमि के प्रतिकर मूल्य में सिंचित और असिंचित जमीन का खेल खेलकर बड़ा अंतर पैदा किया गया। रिपोर्टों में यह भी बताया गया कि लगभग 80-100 करोड़ रुपए का कमीशन कई हिस्सेदारों में बांटा गया।
रायगढ़ प्रोजेक्ट हेड और सीएसपीजीसीएल की भूमिका भी संदेहास्पद मानी जा रही है। अधिकारियों ने राशि भुगतान को मंजूरी दी, जबकि अंतर स्पष्ट था। इस घोटाले की वजह से छत्तीसगढ़ सरकार को अरबों रुपए का नुकसान हुआ।
बजरमुड़ा घोटाले का मामला अब एसीबी और ईओडब्ल्यू के पास है। सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक प्रमाण जुटाने के बाद एफआईआर दर्ज की जाएगी, लेकिन अब तक इस पर कोई गंभीर कार्रवाई नहीं हुई है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला छत्तीसगढ़ में गहराई से फैले भ्रष्टाचार को उजागर करता है, जहां बड़े पैमाने के घोटाले में सरकारी तंत्र और अफसरशाही की मिलीभगत शामिल रही है।












