छत्तीसगढ़न्यूज़

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा, डिसिप्लिन के नाम पर बच्चों को पीटना क्रूरता है, टीचर की वजह से छात्रा ने की थी खुदकुशी…

12 साल की अर्चिशा सिन्हा अंबिकापुर के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल में 8वीं की छात्रा थी। उसने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। सुसाइड नोट में उसने टीचर द्वारा प्रताड़‍ित करने और दोस्तों के सामने मजाक उड़ाने का आरोप लगाया था। इसके बाद पुलिस ने टीचर के खिलाफ केस दर्ज किया। टीचर ने पुलिस चार्जशीट को कैंसिल करने के लिए याचिका दायर की थी।

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल में 7 फरवरी 2024 को आठवीं की छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में स्कूल शिक्षिका पर प्रताड़ना का आरोप लगा था। पुलिस ने शिकायत पर आईपीसी की धारा 305 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। विवेचना के बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट पेश की है।

आरोपित शिक्षिका ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें खुद के खिलाफ प्रस्तुत चार्जशीट को निरस्त करने की मांग की थी। मामले की सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने शिक्षिका की याचिका को खारिज कर दिया है।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस पूरे में तल्ख टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि स्कूल में अनुशासन के नाम पर बच्चों को प्रताड़ित करना सर्वथा अनुचित है।

बच्चों को संवैधानिक अधिकार से पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। उनके अधिकारों का हनन सिर्फ इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बच्चे हैं और छोटे हैं। जितना अधिकार व्यवस्क को संविधान में दिया गया है, बच्चों को भी उसी अनुरुप अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। शारीरिक दंड बच्चों की गरिमा के अनुरूप नहीं है।

क्या है मामला

अंबिकापुर के कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस के खिलाफ अंबिकापुर के मणिपुर थाने में शिकायत दर्ज हुई थी। इसमें छठवीं की छात्रा को आत्महत्या के लिए प्रताड़ित और उत्प्रेरित करने का आरोप लगाया गया था। छात्रा कार्मेल स्कूल में केजी-2 से ही स्कूल में पढ़ाई कर रही थी।

डिवीजन बेंच ने सरकार को दिया निर्देश

चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि बच्चों को शारीरिक व मानसिक दंड से उनके जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बाल मन पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का असर परिवार के सदस्यों को भी भुगतना पड़ता है। हिंसा का कोई भी कार्य जो बच्चे को आघात पहुंचाता है, आतंकित करता है या उसकी क्षमताओं पर विपरीत असर डालता है, वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। स

रकार का यह दायित्व है कि वह बच्चे को सभी प्रकार की शारीरिक या मानसिक हिंसा, अपमानजनक व्यवहार, यौन शोषण से सुरक्षित करने विधायी, प्रशासनिक, सामाजिक और शैक्षिक उपाय करें।

मम्मी-पापा की इकलौती बेटी

शहर के दर्रीपारा निवासी आलोक कुमार सिन्हा पेशे से इंजीनियर हैं। उनकी 12 वर्षीय बेटी अर्चिशा सिन्हा शहर के कार्मेल स्कूल में कक्षा 6वीं की छात्रा थीं। घटना की रात करीब 11 बजे छात्रा ने अपने कमरे में पंखे के सहारे फांसी लगाकर जान दे दी। छात्रा ने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था। इसमें उसने स्कूल की शिक्षिका पर कई दिनों से प्रताड़ित व कक्षा में दोस्तों के सामने अपमानित करने का आरोप लगाया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button