छत्तीसगढ़ में डीएमएफ घोटाले ED की हिरासत में चल रहे कारोबारी और NGO से सचिव मनोज कुमार द्विवेदी को रायपुर की स्पेशल कोर्ट में पेश किया जाएगा। इससे पहले गुरुवार की शाम ED की टीम ने विशेष अदालत में पेश किया था। जहां कोर्ट ने 4 दिन की ED रिमांड पर सौंपा
ईडी की जांच से पता चला है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 में मनोज कुमार द्विवेदी ने निलंबित IAS रानू साहू और अन्य अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके अपने एनजीओ उदगम सेवा समिति के नाम पर कई डीएमएफ ठेके हासिल किए थे। मनोज कुमार द्विवेदी ने अपने एनजीओ को डीएमएफ ठेके दिलाने के लिए सरकारी अधिकारियों को टेंडर की राशि का 42% तक कमीशन दिया था।
अरेस्ट कारोबारी के रानू साहू के लिंक की जांच हो रही है।
17.79 करोड़ की हेराफेरी
ED ने अपनी जांच में पाया है कि मनोज कुमार द्विवेदी ने डीएमएफ फंड की हेराफेरी करके 17.79 करोड़ रुपये कमाए जिसमें से 6.57 करोड़ रुपये उन्होंने अपने पास रख लिए और बाकी रकम रिश्वत के रूप में अधिकारियों को दी गई।
ईडी की जांच में यह भी पता चला है कि मनोज द्विवेदी न केवल डीएमएफ ठेके पाने के लिए जिला स्तर पर संबंधित अधिकारियों के साथ मिलीभगत की और उनकी मदद की । इससे पहले ईडी ने इस मामले में विभिन्न स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया था, जिसमें 2.32 करोड़ कैश और दस्तावेज और, डिजिटल एविडे़ट औऱ नकदी और बैंक बैलेंस, आभू जब्त किए गए थे। डीएमएफ घोटाले में मनोज कुमार द्विवेदी को गिरफ्तार से पहले ED ने रानू साहू और छत्तीसगढ़ राज्य सेवा अधिकारी माया वारियर को गिरफ्तार किया गया था।
CGPSC में भी ऐसा ही डील पैटर्न
DMF मामले में निलंबित IAS अफसर रानू साहू और CGPSC भर्ती गड़बड़ी मामले में IAS टामन सोनवानी जेल में बंद है। दोनों ही घोटालों में शुरुआती जांच में अधिकारियों द्वारा रुपयों के लेनदेन का जो पैटर्न है वो एक जैसा है।
DMF घोटाले में मनोज की संस्था को सरकारी पैसे मिले, इसमें अफसरों ने कमीशन लिया। CGPSC में IAS सोनवानी की पत्नी की बनाई संस्था को करोबारी श्रवण गोयल ने पैसे दिए। गोयल के रिश्तेदार PSC में सरकारी पदों पर सिलेक्ट भी हुए।
DMF घोटाला क्या है, जिसमें ये नई गिरफ्तारी हुई
प्रदेश सरकार की ओर से जारी की गई जानकारी के मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय की रिपोर्ट के आधार पर EOW ने धारा 120 बी 420 के तहत केस दर्ज किया है। इस केस में यह तथ्य निकाल कर सामने आया है कि डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड कोरबा के फंड से अलग-अलग टेंडर आवंटन में बड़े पैमाने पर आर्थिक अनियमित की गई है। टेंडर भरने वालों को अवैध लाभ पहुंचाया गया।
40% सरकारी अफसरों को कमीशन मिला
जांच रिपोर्ट में यह पाया गया है कि टेंडर की राशि का 40% सरकारी अफसर को कमीशन के रूप में इसके लिए दिया गया है। प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20% अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने ली है। ED ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया था कि IAS अफसर रानू साहू और कुछ अन्य अधिकारियों ने अपने-अपने पद का गलत इस्तेमाल किया।
ED के तथ्यों के मुताबिक टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर नाम के लोगों के साथ मिलकर किसी चीज की असल कीमत से ज्यादा का बिल भुगतान कर दिया। आपस में मिलकर साजिश करते हुए पैसे कमाए गए।