शहर को ‘पानी’ पिलाने में भाजपा-कांग्रेस कोई पीछे नहीं, भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गई शहर की पेयजल योजनाएं

दुर्ग संवाददाता, नरेश सोनी की खबर

दुर्ग। शहर में गम्भीर पेयजल संकट है और नगर निगम की निर्वाचित परिषद और उसके जिम्मेदार लोग चैन की नींद सो रहे हैं। आम आदमी पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है और जनप्रतिनिधि अपनी पीठ थपथपाने नहीं थक रहे है। निगम में २० वर्षों तक भाजपा का शासन रहा और विगत करीब ढाई वर्षों से कांग्रेस का शासन है, लेकिन शहर की पेयजल संबंधी परेशानियों को बढ़ाने में न भाजपा पीछे रही, न कांग्रेस। शहरवासियों को पानी पिलाने के लिए कई तरह की योजनाएं लागू की गई, लेकिन सबका हश्र ढांक के तीन पात ही रहा। इन योजनाओं में भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की चर्चे भी आम है।

निगम की वर्तमान परिषद को शहरवासियों ने जिन उम्मीदों के साथ शहर की सत्ता सौंपी, वह बेमानी साबित हो रही है। परिषद से जुड़े प्रत्येक लोगों को आम आदमी की बजाए सिर्फ अपनी जेब और कमीशनखोरी से वास्ता है। यदि पेयजल की नीचे से ऊपर तक की सम्पूर्ण व्यवस्था का एक बार जिम्मेदार लोग विश्लेषण कर लें तो समस्या की जड़ तक पहुंचना आसान हो जाएगा, लेकिन किसी के पास इतनी फुरसत नहीं है। निगम कमिश्नर हरेश मंडावी जरूर समर्पण भाव से काम करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी कोशिशों पर भी राजनीतिक पैतरेबाजी हावी हो जाती है। हालात यह है कि निगम के पम्प अटेंडेंट की उपयोगिता शून्य होकर रह गया है। निगम में कार्यरत् ४ पम्प अटेंडेंट की बात करें तो इनमें से एक अनिल सिंह उद्यान विभाग में पौधे रोप रहे हैं। वहीं लम्बे समय तक जनसम्पर्क विभाग में सेवाएं देने वाले पम्प आपरेटर अनिल मनहरे से इन दिनों राशन कार्ड बनवाने का काम लिया जा रहा है। एक अन्य अटेंडेंट रविन्द्र मिश्रा राजस्व विभाग में सेवाएं दे रहे हैं तो सतीश साहू भवन शाखा में ड्यूटी बजा रहे हैं।

२२० एचपी की जगह लगाई ५० एचपी की मोटर

नगर निगम की निर्वाचित परिषद लोगों को पानी पिलाने के प्रति कितनी जवाबदेह है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ वर्षों पहले तक शिवनाथ नदी स्थित पम्प हाउस में जहां २२० एचपी की मोटर लगी थी, वहां अब महज ५० एचपी की मोटर काम कर रही है। बताते हैं कि शहर में पेयजल संकट की सबसे बड़ी वजह भी यही है। वर्तमान में कुल ४ मोटर नदी से पानी खींचने का काम करती है। जाहिर है कि ५० एचपी की ४ मोटर मिलकर भी पूर्व की २२० एचपी की एक मोटर का मुकाबला नहीं कर पा रही है। हालांकि नगर निगम के जलगृह विभाग से जुड़े सूत्रों का दावा है कि मोटर की क्षमता से जल वितरण व्यवस्था में पसरी गड़बड़ी का कोई वास्ता नहीं है। एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी २२० एचपी और ५० एचपी के बीच का अंतर आसानी से समझ सकता है, फिर निगम के जिम्मेदार लोगों को यह बात समझ क्यों नहीं आ रही? सूत्रों के मुताबिक, जिन २२० एचपी की मोटरों को निकालकर कम एचपी की मोटर लगाई गई है, उनमें किसी तरह की तकनीकी दिक्कत भी नहीं थी।

६ की जगह कर दिया ३ का स्टॉफ

शहर की सबसे गम्भीर पेयजल की समस्या के प्रति नगर निगम की परिषद कितनी संजीदा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नदी स्थित पम्प हाउस में स्टॉफ की संख्या आधी कर दी गई। बताया जाता है कि पूर्व में पम्प हाउस में २-२ कर्मचारियों की ३ शिफ्ट में ड्यूटी लगती थी। ये आपरेटर ८-८ घंटे की ड्यूटी करते थे। लेकिन अब २ की बजाए महज १ आपरेटर ही काम कर रहा है। अकेले होने की वजह से आपरेटरों के भीतर सदैव डर बना रहता है, क्योकि नदी से जहरीले जीव-जंतु निकलते हैं। पम्प हाउस में ऐसी कई घटनाएं भी हो चुकी है, जिसमें निगम कर्मियों की जान ऑफत में आ गई थी। एक बार मधुमक्खियों ने भी हमला किया था। सांप-बिच्छू आदि तो यहां रोजाना निकलते रहते हैं। कर्मियों को इस बात का भी भय है कि यदि किसी जहरीले जंतु ने काट लिया तो मदद करने वाला कोई नहीं होगा।

योजनाएं तो कई बनाई, काम कोई नहीं आई

यूं तो शहर से पानी की समस्या के खात्मे के लिए कई तरह की योजनाएंबनाई गई, लेकिन ये तमाम योजनाएं नतीजे देने में कामयाब नहीं हो पाई। सबसे पहले जल आवद्र्धन योजना लागू की गई थी, किन्तु यह योजना अपनी उपयोगिता साबित करने में नाकाम रही। इसके बाद फेस-२ की बारी आई। वर्तमान में अमृत मिशन के छिटपुट काम अब भी चल ही रहे हैं। एक समय नगर निगम का काम जनसमस्याओं को खत्म करना हुआ करता था। स्थानीय निकायों का गठन ही इसीलिए किया गया था। लेकिन अब नगर निगम या कोई भी स्थानीय निकाय सिर्फ इस योजना पर काम करते हैं कि जनता की जेब से कैसे ज्यादा से ज्यादा रूपए निकाले जाएं। निगम के जो लोग शहरवासियों से तमाम तरह के टैक्स लादकर भी सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं, कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं, उनके मानदेय भी बढ़ाए जा रहे हैं। आम आदमी की समस्याओं से किसी को वास्ता नहीं है।

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