अन्य राज्यों कीदेश विदेश कीन्यूज़

सरकार और किसान संगठनों की वार्ता इस बार भी रही बेनतीजा, अगली बैठक 15 जनवरी को

नई दिल्लीः सरकार ओर किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर शुक्रवार को आठवें दौर की वार्ता बेनतीजा संपन्न हुई. सूत्रों के मुताबिक अगली बैठक 15 जनवरी को हो सकती है. तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े किसान नेताओं ने शुक्रवार को सरकार से दो टूक कहा कि उनकी ”घर वापसी” तभी होगी जब वह इन कानूनों को वापस लेगी. सरकार ने कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग खारिज करते हुए इसके विवादास्पद बिन्दुओं तक चर्चा सीमित रखने पर जोर दिया. सूत्रों ने बताया कि बैठक में वार्ता ज्यादा नहीं हो सकी और अगली तारीख उच्चतम न्यायालय में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए तय की गई है. सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है.

बैठक में कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहे किसान संगठन के नेताः
सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के 41 सदस्यीय प्रतिनिधियों के साथ आठवें दौर की वार्ता में सत्ता पक्ष की ओर से दावा किया गया कि विभिन्न राज्यों के किसानों के एक बड़े समूह ने इन कानूनों का स्वागत किया है. सरकार ने किसान नेताओं से कहा कि उन्हें पूरे देश का हित समझना चाहिए. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विज्ञान भवन में वार्ता कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक बैठक के दौरान तोमर ने किसान संगठनों से कानूनों पर वार्ता करने की अपील की जबकि संगठन के नेता कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहे. उन्होंने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान नेताओं से पूरे देश के किसानों का हितों की रक्षा करने पर जोर दिया.

किसान नेताओं ने कहा- कानूनों की वापसी के बाद ही होगी घर वापसीः
एक किसान नेता ने बैठक में कहा कि हमारी ‘घर वापसी’ तभी होगी जब इन ‘कानूनों की वापसी’ होगी. एक अन्य किसान नेता ने बैठक में कहा कि आदर्श तरीका तो यही है कि केंद्र को कृषि के विषय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों में कृषि को राज्य का विषय घोषित किया गया है. ऐसा लग रहा है कि आप (सरकार) मामले का समाधान नहीं चाहते हैं क्योंकि वार्ता कई दिनों से चल रही है. ऐसी सूरत में आप हमें स्पष्ट बता दीजिए. हम चले जाएंगे. क्यों हम एक दूसरे का समय बर्बाद करें. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की कविता कुरुगंती ने बताया कि सरकार ने किसानों से कहा है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं ले सकती और ना लेगी. कविता भी बैठक में शामिल थीं.

तीनों मंत्रियों ने आपस में की चर्चाः
लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने बैठक के दौरान मौन धारण करना तय किया और इसके साथ ही उन्होंने नारे लिखे बैनर लहराना आरंभ कर दिया. इन बैनरों में लिखा था ”जीतेंगे या मरेंगे”. लिहाजा, तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए हॉल से बाहर निकल आए. एक सूत्र ने बताया कि तीनों मंत्रियों ने दोपहर भोज का अवकाश भी नहीं लिया और एक कमरे में बैठक करते रहे. आज की बैठक शुरु होने से पहले तोमर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और दोनों के बीच लगभग एक घंटे वार्ता चली.

किसान संगठनों और केंद्र के बीच दो मुद्दों पर पहले हुई वार्ता में बनी थी सहमतिः
इससे पहले, चार जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी क्योंकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर डटे रहे, वहीं सरकार ”समस्या” वाले प्रावधानों या गतिरोध दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ही बात करना चाहती है. किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी.

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने अगली वार्ता में समाधान की चतीई उम्मीदः
इससे पहले, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने उम्मीद जताई कि शुक्रवार की बैठक में कोई समाधान निकलेगा. चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि मुझे उम्मीद है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में किसी समाधान तक पहुंचा जा सकेगा. प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने पहली बैठक में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की होती तो अभी तक तो हम गतिरोध को समाप्त कर चुके होते. उन्होंने कहा कि पहली बैठक में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग नहीं की गई थी.

कविता कुरूंगती ने कहा- हम किसी भी संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगेः
बैठक से पहले कविता कुरूंगती ने कहा कि अगर आज की बैठक में समाधान नहीं निकला तो हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने की अपनी योजना पर आगे बढ़ेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी मुख्य मांग कानूनों को निरस्त करना है. हम किसी भी संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे. सरकार इसे अहम का मुद्दा बना रही है और कानून वापस नहीं ले रही है. लेकिन, यह सभी किसानों के लिए जीवन और मरण का प्रश्न है. शुरुआत से ही हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. किसान यूनियनों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रही थी. एक ओर किसान यूनियन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़ी हैं, तो दूसरी ओर सरकार कानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करना चाहती है. उल्लेखनीय है कि गुरुवार को किसान संगठनों ने अपनी मांगों के मद्देनजर सरकार पर दबाव बनाने के लिए ट्रेक्टर रैली निकाली थी.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button