खुदा मिला ना विसाल-ए-सनम, इधर के रहे ना उधर के हम,,,कुछ ऐसा ही माजरा सक्ती में अब महल की राजनीति पर देखने को मिल रहा है

सक्ती। आखिरकार टीस निकल कर सामने आई राजा सुरेंद्र बहादुर की जब प्रदेश के मुखिया भुपेश बघेल अपने सक्ती प्रवास के दौरान पीला महल पहुंचे और औपचारिक मुलाकात हुई।
ज्ञात हो कि आज़ादी के बाद से ही सक्ती विधानसभा क्षेत्र में राजमहल का दबदबा रहा था, लेकिन 1998 के बाद से राज परिवार की राजनीति लगातार हासिए पर जा रही है। 98 विस चुनाव हारने के बाद राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह ने फिर कभी चुनाव नहीं लड़ने की बात की थी, वहीं 2003 में अपनी बातों पर कायम रहते हुए उन्होंने टिकट की मांग भी नहीं की और कहते हैं ना कि कभी कभी इंसान का गुरुर उसे अर्स से फर्स पर ले आता है, और हुआ यही राजमहल की राजनीति हाल के दिनों में काफी कमजोर दिख रही है। सफेद महल से सिद्धेश्वरी सिंह राजनीति में जरूर हैं लेकिन भाजपा से जहां उनके आगे विस चुनाव के टिकट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है, वहीं राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह के दत्तक पुत्र वर्तमान में एक मामले में फरारी काट रहें हैं और स्वयं राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह शारिरिक अक्षमता के कारण राजनीति से पूरी तरह दूर हैं। वहीं अब सक्ती की राजनीति की कमान कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ चरणदास महंत के हाथ में हैं और उनकी राजनीतिक काबिलियत कुछ दिनों पहले देखने को मिली, और भाजपा के रीढ़ मानें जानें वाले करीब एक दर्जन से अधिक नेताओं ने डॉ महंत से प्रभावित होकर कांग्रेस का दामन थामा है। लगातार डॉ महंत का क्षेत्र में दौरा यही इंगित करता है कि अब डॉ महंत सक्ती को ही अपनी कर्मभूमि के रूप में स्थाई घर बना चुकें हैं। वैसे तो डॉ महंत कोरबा से सांसद रहे, लेकिन उससे पहले जांजगीर से पहली बार सांसद चुनकर दिल्ली पहुंचे थे, परिसीमन के कारण जांजगीर आरक्षित सीट घोषित हुई तो डॉ महंत को कोरबा का रुख करना पड़ा, और दो बार स्वयं और वर्तमान में डॉ महंत की धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्स्ना महंत कोरबा से सांसद हैं और डॉ महंत सक्ती के विधायक हैं। गत कुछ दिनों से महल और महंत समर्थकों में खींचतान लगातार जारी है, और यही वजह है कि राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह की मुख्यमंत्री से मुलाकात और बातों को राजनीतिक जानकर राजा साहब की खीज बता रहें हैं। औपचारिक मुलाकात के समय भुपेश बघेल, डॉ चरणदास महंत और राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल मौजूद थे लेकिन राजा सुरेंद्र बहादुर ने अपने आप को मुख्यमंत्री की तरफ ही केंद्रीत रखा। वहीं राजा सुरेंद्र बहादुर ने मुख्यमंत्री भुपेश बघेल के समक्ष जो बात रखी वो अपने आपमें ही महल और महंत को भिड़ाती दिखी। राजा साहब ने अपनी मुलाकात के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री जी आप जिसे चाहेंगे वही सक्ती का अगला विधायक होगा और मैं उसका पूरा साथ दूंगा। अगर आप जिसे नहीं चाहेंगे वो मेरे जीतेजी यहां से नहीं जीत सकता चाहे एक वोट के लिए एक करोड़ रुपए ही क्यों ना दे दे। इस बात के मायने राजनीतिक जानकर सिर्फ डॉ महंत के विरोध में मान रहें हैं। वहीं कुछ विपक्षी भी नाम ना छापने की शर्त पर कह रहें हैं कि राजा सुरेंद्र बहादुर सिंह बौखलाए हुए हैं और उन्हें इल्म हो गया है कि सक्ती की राजनीति अब राजमहल से कोसों दूर चली गई है। एक समय जरूर महल का था लेकिन वक्त की करवट ने सक्ती की राजनीति से महल को शून्य कर दिया है। राजा सुरेंद्र बहादुर ने एक बात और कही की भूपेश जी आपने मुझे दुबारा कांग्रेस में लाया है, मैं तो कांग्रेस छोड़ चुका था और मैं अब पद या टिकट के दावेदारी से दूर हूं। धर्मेंद्र सिंह के राजतिलक के बाद से ही कुछ राजनीतिक हलचल महल में देखने जरूर मिली, लेकिन धर्मेंद्र के खिलाफ हुए थाने में रिपोर्ट के बाद से ही राजमहल में सन्नाटा का माहौल है, वहीं अब महल के विरोधी रहे भी बहुत लोग महल की ओर रुख किए हैं लेकिन इससे महल को राजनीतिक फायदा मिलता नहीं दिख रहा है। धर्मेंद्र पर लगा आरोप अपने आप में बहुत बड़ा है यही कारण है कि धर्मेंद्र सिंह भी गिरफ्तारी के डर से तीन माह से अधिक समय से बाहर ही हैं, कुछ प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि सीएम के प्रवास के दौरान धर्मेंद्र महल में मौजूद थे, लेकिन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण फिलहाल सिर्फ एक फोटो से ही दिख रहा है। खैर जो भी हो लेकिन महल और डॉ महंत समर्थकों की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता क्षेत्र में दिख रही है और राजा सुरेंद्र बहादुर की बातों से राजनीतिक जानकर पुष्टि बतातें हैं कि श्री सिंह अपनी राजनीति का एक अहम पारी के लिए हुंकार भरते दिखे। वहीं इन सब के बीच डॉ महंत व उनके समर्थकों द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है।

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