पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कटौती कहीं मोदी सरकार के सामने खड़ी ना कर दे नई मुसीबत?

चौतरफा महंगाई की मार झेल रही जनता को राहत देने के लिए शनिवार को केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल से एक्साइज ड्यूटी घटाने का फैसला किया। सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 8 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 6 रुपये प्रति लीटर कम करने का फैसला किया था। इससे जहां आम जनता को राहत मिली है। वहीं, केन्द्र सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। आइए जानते हैं कि क्या एक्साइज ड्यूटी में यह कटौती मोदी सरकार के लिए नई मुसीबत तो नहीं खड़ी कर देगी?

1- एक्साइज ड्यूटी में कटौती से कितना बढ़ेगा बोझ

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि एक्साइज ड्यूटी में इस कटौती की वजह से सरकार पर अतिरिक्त 1 लाख करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। बता दें, पिछले साल नवंबर में केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले एक्साइज ड्यूटी में कटौती का फैसला किया था। तब सरकारी खजाने पर 1,20,000 करोड़ रुपये का भार पड़ा था। यानी इन दोनों कटौतियों को मिलाकर  सरकार के खजाने पर 2,20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा।

2- विनिवेश का लक्ष्य हासिल करना बड़ी चुनौती!  

एलआईसी में अपनी हिस्सेदारी भारत सरकार जरूर बेचने में सफल रही है। लेकिन बाजार की मौजूदा स्थिति और एलआईसी के प्रदर्शन ने अन्य विनिवेश की योजनाओं पर कुछ महीने के लिए ग्रहण जरूर लगा दिया है। वहीं, एलआईसी में भी सरकार ने 5% के बजाए 3.5% हिस्सेदारी को ही बेचा है।

बीते तीन साल के पैटर्न पर नजर डालें तो सरकारी कंपनियों से पैसा जुटाने के मामले में सरकार को बहुत सफलता नहीं मिली है। बीते वित्त वर्ष सरकार ने विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। जोकि बाद में घटाकर 78,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था। यानी सरकार के प्रयास के बाद भी सरकारी कंपनियों को खरीदने के लिए निवेशक बहुत उत्साहित नहीं दिखाई दे रहे हैं। इस साल के विनिवेश का लक्ष्य 65,000 करोड़ रुपये है जिसका एक तिहाई हासिल कर लिया गया है। वहीं बचे हुए बचे हुए लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार पवन हंस, BPCL, सेन्ट्रल इलेक्ट्राॅनिक, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और आईटीसी जैसी कंपनियों से अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रयास करेगी।

3- सब्सिडी का सम्भलेगा भार? 

ऐसे समय में जब सरकार एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने का फैसला किया है और विनिवेश के तय लक्ष्य को हासिल करने में मुश्किल खड़ी हो रही है तब यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सरकार सब्सिडी का बोझ संभाल पाएगी? केन्द्र सरकार के मंत्री सदन से लेकर सड़क तक पेट्रोल-डीजल से वसूले जाने वाले एक्साइज ड्यूटी के कलेक्शन के बचाव में कहते थे की इसका लाभ गरीबों को हो रहा है।

सरकार के बजट का बड़ा हिस्सा सब्सिडी देने में जाता है। शनिवार को सरकार ने 9 करोड़ उज्ज्वला गैस लाभार्थियों को 12 सिलिंडर पर 200 रुपये की सब्सिडी का ऐलान किया था। ऐसे में इस सवाल उठता है कि नए सब्सिडी के अलावा पुराने सब्सिडी का बोझ के तले कहीं विकास की योजनाओं की कुर्बानी तो नहीं दी जाएगी?

सरकार का द्वारा दी जा रही कुछ प्रमुख योजनाओं पर सब्सिडी 

योजना                   वित्त वर्ष -2022-23 (रुपये)    पिछला वित्त वर्ष -2021-22 (रुपये)           

1- खाद्य सब्सिडी          2,06831.09                  2,86,469.11 (रिवाइज्ड)

2- फर्टिलाइजर (खाद) 1,05,222.32                  1,40,122.32 (रिवाइज्ड)

3- पेट्रोलियम              5812.50                        6516.92  (रिवाइज्ड)

रुपये: लाख करोड़

4- वैश्विक संकट के बीच यह फैसला कितना सही? 

रूस और यूक्रेन की युद्ध की वजह से दुनिया भर के बाजार में इस संशय के बादल छाए हुए हैं। जहां एक तरफ दुनिया भर में महंगाई लगातार बढ़ रही है। वहीं, दूसरी तरफ सरकार जरूरी सामानों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। जिसकी वजह से कई देशों के सामने संकट गहरा गया है। श्रीलंका की मौजूदा स्थितियां किसी से छिपी नहीं हैं। ऐसे में जब विश्व भर में आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं तब इस फैसला कितना सही है यह एक बड़ा सवाल है।

5- जीएसटी कलेक्शन से मिली हिम्मत?

सरकार को इस मुश्किल घड़ी में इस कठोर फैसले लेने की हिम्मत कहां से आई तो उसका एक उत्तर जीएसटी हो सकता है। जीएसटी कलेक्शन के मामले में अप्रैल का महीना सरकार के लिए अच्छा रहा। सरकार ने सभी पुराने रिकाॅर्ड तोड़ते हुए 1.68 लाख करोड़ रुपये का जीएसटी कलेक्शन किया था। मार्च की तुलना में अप्रैल में जीएसटी कलेक्शन 26 लाख करोड़ रुपये अधिक था।

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