अजब राजस्व विभाग की गजब कहानी, हर दूसरे भू स्वामी को है इससे परेशानी


पटवारियों के कांडों ने बढ़ाई भू स्वामियों की परेशानी, 2019 तक करना था त्रुटिरहित भुईंया
त्रुटिरहित बनाना था और अधिकारियों ने बना दिया त्रुटिपूर्ण

सूरजपुर -आपकी-आवाज -मोहिबुल-हसन (लोलो)…….राजस्व विभाग की गलतियों का खामियाजा सीधे तौर पर भू स्वामियों को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान पटवारियों का कहना है कि हमको जो राजस्व रिकार्ड मिला है उसी के आधार पर कार्य कर रहे हैं। जबकि नियमानुसार पटवारियों का ही दायित्व है संबंधित हलके के ग्रामों के भू खंडों के शु़िद्ध की जिम्मेदारी इनकी ही होती है। वहीं कई हलका पटवारियों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है और समस्याएं तथा राजस्व प्रकरण लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जबकि वर्ष 2019 तक भुईंया साफ्टवेयर को त्रुटिरहित बनाने का आदेश मुख्य सचिव द्वारा जारी किया गया था।

कलेक्टर की जवाबदेही और पटवारियों की गलतियां – राजस्व विभाग में राजस्व रिकार्ड को शुद्ध रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होती है। वहीं सन् 1990 के बाद से राजस्व रिकार्डाें में जो अषुद्धियां हुईं हैं वह अब तक सुधर नहीं पाईं हैं। जब तक मैनुअल बी वन रिकार्ड इन्द्राज किया जाता रहा तब तक बी वन में प्लाट का त्रुटिवष इन्द्राज न होना आज तक दुुरुस्त नहीं किया जा सका है। इसके बाद भुईंया कार्यक्रम के तहत आनलाइन बी वन, खसरा, नक्षा की शुरुआत प्रदेश में अजीत जोगी की सरकार के दौरान किया गया। आनन फानन में तैयार किए गए साफ्टवेयर में व्यापक पैमाने पर गडबड़ी थी। इस कार्यक्रम को लोगों ने बिल्कुल हलके में लिया और उसे सुधार कराने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। पटवारियों को भी मैनुअल रिकार्ड पर ही भरोसा था। ऐसे में त्रुटिरहित साफ्टवेयर नक्षा तैयार करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है।
जमीन किसी की बेच कोई और दिया – ग्राम बड़सरा निवासी गुलाबकुंवर की भूमि की बिक्री उनके सौतेले भाई ने कर दी है। अब सवाल यह है कि एक की खसरा क्रमांक के दो भू स्वामी कैसे हो सकते हैं ? दरअसल बेवा महिला के पुराने बी वन और ऋण पुस्तिका में उसकी भूमि 1802 दर्ज है और सन् 2004 में इसी भूमि की रजिस्ट्री हो गई है। रजिस्ट्री में चतुर्सीमा का उल्लेख भी खसरा क्रमांक 1802 से मेल नहीं खाता है। इसी भूमि का नामान्तरण भी पंचायत द्वारा दो बार किया गया है। अब यह जांच का विषय है कि वास्तव में ग्राम बड़सरा की भूमि जिसका खसरा क्रमांक 1802 है उसका वास्तविक स्वामी कौन है ? क्योंकि वर्तमान में खसरा क्रमांक 1802/1 पर गुलाबकुंवर और खसरा क्रमांक 1802/2 नन्दलाल सिंह का नाम दर्ज है और खसरा क्रमांक 1802/2 भूमि को गुलाबकुंवर की बजाए स्व रघुनाथ ने सन् 2004 में ग्राम बड़सरा निवासी नंदलाल को विक्रय कर दिया था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि या तो बड़सरा में प्लाट के नंबर को ही बदल दिया जा रहा है या रजिस्ट्री ही फर्जी तरीके से कराई गई है जो कि जांच का विषय है।
पटवारियों के कांड से भू स्वामी परेषान
पटवारियों के कांडों से जहां भू स्वामियों को सिवाय परेषानी के कुछ भी हाथ नहीं लगता है। सवाल ये है कि जब रिकार्ड दुरुस्त होता है उसके बाद बी वन में किसी का प्लाट उल्लेख त्रुटिवष या जानबुझकर छोड़ दिया जाता है तब वह भूमि जो विक्रेता के खाते से कटी थी उसी के राजस्व रिकार्डों में वापस कैसे लौट जाती है? जबकि उस खसरा नंबर को विलोपित अवस्था में होना चाहिए। जहां से वास्तविक किसानों के आवेदन पर पुनः उस खसरा नंबर का संकलन कराया जाना चाहिए। ऐसा ही मामला ग्राम बड़सरा निवासी उषा सिंह का है। उनके द्वारा एक जमीन की रजिस्ट्री सन् 1987 में कराई गई थी जो नामान्तरण के पश्चात तक सन् 1991 से 1996 तक पुराने बी वन में दुरुस्त थी। सन् 1997-98 में तात्कालिक हलका पटवारी द्वारा उसे त्रुटिवष/जानबुझकर छोड़ दिया गया और वह वर्तमान वर्ष तक दुरुस्त नहीं हुआ। इस बीच रजिस्ट्रीकर्ता के परिजनों ने उसी प्लाट का सीमांकन कराने के लिए आवेदन दिया तो वह प्लाट उनका निकला। अब उषा सिंह पुराने दस्तावेजों के आधार पर रिकार्ड दुरुस्त कराने आवेदन दी। लेकिन इस बीच दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव हो गया है जिसका जिम्मेदार राजस्व विभाग है।
भू नक्षे में व्यापक पैमाने पर त्रुटियां –
भू नक्षा साफ्टवेयर में व्यापक पैमाने पर त्रुटियां दर्ज की गई हैं। जिस साफ्टवेयर को सन् 2019 तक त्रुटिरहित बनाया जाना था उसे इतना त्रुटिपूर्ण बना दिया गया है जो कि आपसी मनमुटाव का सबब बन गया है। इसी को आधार बनाकर आवेदकों द्वारा सीमांकन के लिए आवेदन कर दिया जाता है। वहीं आवेदकों से शपथ पत्र भी नहीं लिया जाता है कि संबंधित भूमि का सीमांकन पूर्व में नहीं किया गया है।

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