
जतमाई धाम के संचालन समिति, पुजारीयो व दूर दराज से आए श्रद्धालुओं ने पूजा आरती कर किया देवियों का सम्मान
छुरा गरियाबंद भूपेंद्र गोस्वामी आपकी आवाज संपर्क सूत्र=8815207296
दुर्गुणों से मनुष्य और समाज की दुर्गति को नाश करने का आध्यात्मिक प्रतीक है देवी दुर्गा —– ब्रह्माकुमारी अंशु दीदी
छुरा न्यूज :- देवी दुर्गा को दुर्गतिनाशिनी कहा जाता है। यानी कि दुर्गुणों से मनुष्य और समाज की जो दुर्गति होती है, उसे नाश करने का आध्यात्मिक प्रतीक हैं देवी दुर्गा। छत्तीस गढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल जतमाई धाम में नवरात्र पर्व की महाष्टमी पर हवन पूजन की पूर्णाहुति कर देवियों की विदाई की गई ।वही ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय खड़मां द्वारा आयोजित चैतन्य देवियों की झांकी का विधिवत पूजन आरती कर समापन किया गया। जतमाई संचालन समिति के अध्यक्ष,ग्रामपंचायत गाय डबरी, पिपरछेडी, मडेली, सांकरा गाड़ाघाट ,कुरूद,तौरेंगा के सरपंच, पुजारियों व दूरदराज से आए श्रद्धालुजन की उपस्थिति में नवरात्रि पर्व एवम चैतन्य देवियों की झांकी का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी अंशु दीदी ने उक्त बाते कही उन्होंने आगे बताई कि जब भी संसार में नकारात्मक आसुरी प्रवृत्तियों की अति होती है, तब सकारात्मक दैवी शक्तियों का आह्वान होता है। उसी की यादगार में, हर साल नवरात्रि पर नव दुर्गा रूपी नौ शक्ति स्वरूपों का आह्वान और आराधना होती है। नौ दिन के लिए अष्ट भुजाधारी देवियों की मूर्ति और झांकी बनाई जाती है। प्रतिष्ठित देवियों से वरदान प्राप्ति के लिए व्रत, उपवास और उपासना की जाती है। दसवें दिन महादुर्गा के महिषासुर वध करने पर विजय उत्सव भी मनाया जाता है।
नवदुर्गा मूर्तियों की पूजा धूमधाम से तो होती है, लेकिन व्यवहारिक जीवन में इस पूजापाठ का सच्चा लाभ कम देखने में आता है। न तो मनुष्यों के दुर्गुण नाश होते हैं, न ही समाज की दुर्गति। हर कोई उमंग-उत्साह से उत्सव तो मना लेता है, पर जीवन से उल्लास को उड़ा देने वाले मनोविकारों को मारने की शक्ति और साहस जुटा नहीं पाते, जो कि इन त्योहारों का मूल उद्देश्य है। इन त्योहारों के रूहानी मर्म और श्रेष्ठ संदेश को समझने और उन्हें जीवन में उतारने की जरूरत है। वास्तव में देवी और दानवों के बीच का यह युद्ध बाहरी नहीं है, यह अपने अंदर चलने वाला युद्ध है। यह लड़ाई हर इंसान के अंदर की है। इस आंतरिक संघर्ष को चरित्रों एवं मूर्तियों के रूप में चित्रित किया गया है। ब्रह्माकुमारी दीदी ने बताई की नौ दिन तक पूजी जाने वाली देवी को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्रि को नौ देवियों को रूप में दिखाते हैं। ये नौ देवियां वास्तव में रूहानी ज्ञान, पवित्रता, शांति, दिव्यता, प्रेम, सुख, करुणा, आनंद एवं आत्मसंतुष्टि जैसी नौ सात्विक शक्तियों की प्रतीक हैं। जीवन में पूर्णता,सर्वसिद्धि और सदासफलता के लिएआध्यात्मिक
ज्ञान, योग, ध्यान, धारणा और निस्वार्थ सेवा से अपने अंदर सोई हुई इन सात्विक शक्तियों को जगाने की जरूरत है। इसी तरह शुंभ-निशुंभ, चंड-मुंड, रक्तबीज और महिषासुर आदि दैत्य मूल रूप में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष, आलस्य आदि अनेक तामसिक हानिकारक वृत्तियों के सूचक हैं। इन दुष्प्रवृतियों को समाप्त करने के लिए, सृष्टि की आदिशक्ति, अष्टभुजाधारी महादेवी दुर्गा ने योगसाधना से सर्व आत्माओं के रूहानी पिता परमात्मा शिव से दिव्य शक्तियां प्राप्त कीं। विभिन्न देवी-देवताओं से भी दैवी गुण रूपी अस्त्र-शस्त्र ग्रहण करके विकार रूपी दानवीय कुसंस्कारों का संहार किया।
नवदुर्गा स्वरूपों के प्रतीक सभी सद्गुणों को धारण करने पर जीवन संपूर्ण सुरक्षित और खुशहाल बनता है। साथ ही, व्यवहारिक जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए सहने और सामना करने, समाने, सहयोग, परखने, निर्णय करने, समेटने और बुराइयों से दूर और अच्छाइयों का प्यारा होने की ताकत आती है। तो आएं, इस नवरात्र के पावन पर्व को अर्थ सहित आध्यात्मिक रूप से मनाएं। जिन देवी के गुण और शक्तियों के प्रतीक के रूप में महादुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन होता है, उन देवी के गुण और अष्ट शक्तियों को जीवन में आत्मसात करें। अपने और दूसरों के जीवन को निर्विघ्न और सुख-शांति से संपूर्ण बनाए तत्पश्चात जतमाई धाम के संचालक समिति ने ब्रह्मकुमारी दीदियों का सम्मान किया।।,वही ब्रह्मकुमारी बहनों ने भी संचालक समिति एवं सहयोगियों को भी ईश्वरीय सौगात देकर सम्मानित किया ।इस अवसर पर ब्रह्मकुमारी संस्थान के बी के पूजा बहन,चंद्रिका बहन,नम्रता बहन, अलका बहन सहित संस्था के सदस्य गण, क्षेत्रवासी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।


