मनहरण राठौर का विरोध डॉ महंत के लिए घातक साबित हो रहा है, ग्रामीण क्षेत्र के साथ साथ शहरी क्षेत्रों में भी विरोध के साथ साथ आक्रोश बढ़ता जा रहा है

सक्ती। सोशल मीडिया से लेकर संगठन तक पूर्व विधायक पति और कांग्रेस पार्टी से एक बार सक्ती विधानसभा से दावेदार रहे मनहरण राठौर का लगातार विरोध चल रहा है।
विरोध के बावजूद भी मनहरण का कद डॉ महंत के समक्ष लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश में कांग्रेस पार्टी सत्ता पर है वहीं पूरे प्रदेश में 90 में से 70 विधायक कांग्रेस के हैं। साथ ही जांजगीर जिले में कांग्रेस के दो ही विधायक हैं जबकि कुल विधानसभा 6 हैं। पूरे प्रदेश में जांजगीर जिले को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन गढ़ अब धीरे धीरे ध्वस्त होता नजर आ रहा है, वहीं सक्ती विधानसभा की बात करें तो कांग्रेसी कई फाड़ में बट हुए दिखाई दे रहें हैं, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो सक्ती विधानसभा में सिर्फ दो ही नेता की तूती बोल रही है एक गुलजार सिंह ठाकुर तो दूसरे मनहरण राठौर हैं। मनहरण राठौर का गृह ग्राम कोरबा जिले में आता है यही कारण है कि मनहरण का विरोध सक्ती विधानसभा में बहुत ज्यादा होने लगा है। इस बात को भी नही नकारा जा सकता है कि की मनहरण राठौर की पत्नी सरोजा राठौर सक्ती विधानसभा से भाजपा के दिग्गज मंत्री मेधाराम साहू को हरा विधायक बनीं थी। लेकिन 5 वर्ष बाद ही मनहरण राठौर ने अपना किस्मत आजमाते हुए कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के नए चेहरे खिलावन साहू ने उन्हें मात दे दी। 2018 के विधानसभा में देश और प्रदेश स्तर के दिग्गज नेता डॉ चरणदास महंत ने सक्ती को अपना कर्मभूमि बनाया और सक्ती विधानसभा की जनता ने उन्हें 30 हजार से अधिक मतों से विजयी बना अपना प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया। डॉ महंत मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे मगर भुपेश और टीएस बाबा की लड़ाई में उन्हें बुजुर्ग बनाते हुए दोनों की लड़ाई शांत कराने का जिम्मा दिया। लड़ाई शांत हुई मगर मुख्यमंत्री का ताज भूपेश बघेल के सर पर सजा और डॉ महंत को फिर एक बार प्रदेश स्तर पर बुजुर्ग और अनुभवी नेता के रूप में देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष पद पर बैठाया गया।

डॉ महंत अपने कर्म और राजनीतिक धर्म दोनों का निर्वहन तो प्रदेश स्तर पर बखूबी निभा रहें हैं, लेकिन अपने विधानसभा के नेताओं की गुटबाजी को खत्म नहीं कर पा रहें हैं, और अब यह गुटबाजी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि सभी नेता डॉ महंत के करीबी तो हैं, लेकिन आपसी मतभेद और मनभेद काफी बढ़ा लिए हैं। कई गुटों में बंटे महंत समर्थकों में कुछ जगहों पर एकजुटता देखने मिलती है लेकिन मनहरण गुट कहलाने वालों से एकजुटता नहीं दिखाई दे रही है। 5 जुलाई को जय सिंह अग्रवाल का जिले के प्रभारी मंत्री बनने के बाद पहला दौरा था, मगर मनहरण और उनके लोग वहां नहीं दिखे, यह भी चर्चा बनीं हुई है। साथ ही स्थानीय स्तर और ग्रामीण स्तर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं सहित कांग्रेस समर्थित सरपंचों में भी मनहरण राठौर को लेकर लगातार आक्रोश भी दिख रहा है, ऐसे में क्या डॉ महंत अपनी 30 हजारी जीत बरकरार रख पाएंगे या फिर अपनी कर्मभूमि बदल सक्ती को फिर से कांग्रेसी राजनीति से दूर लेजाएंगे। वैसे भी नगर और क्षेत्र में कांग्रेस नेता काफी कम हो गए हैं जो वर्तमान में कांग्रेसी दिखते हैं वो कांग्रेसी कम महंत समर्थक ज्यादा हैं और चुनावी दौर में कार्यकर्ता चुनाव लड़ता है, व्यक्ति विशेष का समर्थक नहीं। साथ ही मनहरण राठौर का विरोध इतना ज्यादा बढ़ गया है कि ग्रामीण कांग्रेस समर्थक सरपंच डॉ महंत से दूर होते दिख रहें हैं। वहीं चर्चा इस बात भी की है कि सक्ती विधानसभा क्षेत्र में 100 से अधिक पंचायत हैं साथ ही सक्ती ब्लॉक में 73 पंचायत हैं उसमें भी 19 सरपंच या सरपंच पति/प्रतिनिधि मौजूद थे और उसमें भी अधिकतर सरपंच विपक्षी पार्टी के कट्टर समर्थक कहलाते हैं। इन सब बातों को लेकर नगर और क्षेत्र में राजनीति भी गर्म है। अब देखना यह है कि प्रदेश कांग्रेस संगठन इन सभी बातों और मुद्दों को किस परिपेक्ष्य में लेता है। इससे मनहरण राठौर को फायदा होगा या नुकसान यह तो आने वाला समय बताएगा।

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