बाल विवाह और घरेलू हिंसा को कम करने निवेदिता फाउंडेशन ने सक्ती प्रेस क्लब सक्ती के सदस्यों से की चर्चा…

सक्ती। ऑक्सफ़ाम इंडिया के सहयोग से निवेदिता फाउंडेशन द्वारा सक्ती नगर के मीडिया कर्मियों के साथ बैठक आयोजित किया गया। बैठक का उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाले हिंसा को समाप्त करने के लिए मीडिया और मीडिया के पत्रकारों, संवाददाताओं, सम्पादकों के माध्यम से बाल विवाह और घरेलु हिंसा को कम करने जन समुदाय में व्यापक जागरूकता लाना था।
सन्तनदास महंत ने पत्रकारों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा को रोकने संस्था जिले के सक्ती डभरा मालखरौदा और जैजेपुर चार ब्लॉकों में महिलाओं, युवाओं, किशोर किशोरियों, सामाजिक मुखियाओं का संगठन बनाकर घरेलु हिंसा और बाल विवाह को कम करने, अनेक मॉड्यूल के माध्यम से प्रशिक्षित करते हुए कर रही है। मीडिया संविधान का चौथा स्तम्भ होने के साथ-साथ समाज का दर्पण है और शिक्षक भी है। मीडिया पर प्रकाशित खबरों का जनमानस पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तथा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभाव पड़ता है। मीडिया जनसमुदाय को जागरूक और शिक्षित करने का सशक्त माध्यम है। इसलिए पत्रकारों की भूमिका बाल विवाह और घरेलु हिंसा रोकने के लिए अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में जागरूकता लाने की दिशा महत्वपूर्ण है।
हिंसा के चार प्रकार है शारीरिक हिंसा , मानसिक हिंसा , यौनिक हिंसा और आर्थिक हिंसा, इन चारों हिंसा के कई रूप और स्वरुप होते है लेकिन शारीरिक हिंसा और यौनिक हिंसा को ही समाज हिंसा के रूप जानती और समझती है जबकि हिंसा के कई कारण पृष्टभूमि होते है। बाल विवाह और जबरन विवाह भी हिंसा का ही एक रूप है।
निवेदिता फाउंडेशन के निर्देशिका सिप्रा देवी ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा पुरे समाज की समस्या है घरेलु हिंसा और बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे है। पत्रकार राजीव लोचन ने पूछा की आपने अभी तक कितने घरेलु हिंसा के प्रकरणों को प्रत्यक्ष आपके संस्था में आये है कितने प्रकरण हल हुए लोग पुलिस थाने न जाकर आपके पास क्यों आते है अभी तक संस्था के महिला सहायता केंद्र में 376 घरेलु हिंसा के प्रकरण आये है, इनमें से अधिकांश प्रकरण एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स, पति का काम नहीं करना और शराब का आदी होना और पारिवारिक जिम्मेदारी और कर्तव्य को न समझना, एक दूसरे के इच्छाओं और भावनाओं को समझ नहीं पाना और आदर नहीं करना, पत्नी के चरित्र पर शक करना, सेक्सुअल रिलेशनशिप, पुत्र संतान के न होने पर उत्पीड़न दहेज़ आदि के आते है जिन्हें हम दोनों पक्षों का व्यक्तिगत काउंसलिंग, फिर दोनों पक्षों के रिस्तेदारों का कॉउंसलिंग और बैठक करके सुलझाने का प्रयास करते है। उसके बाद ही सखी केंद्र और पुलिस या फिर कोर्ट में न्याय के लिए जाने का सलाह देते है. पति पत्नी के बीच के समन्वय, समझ, जिम्मेदारी और खुलकर एक दूसरे से बातचीत नहीं एक दूसरे के बीच दूरी बढ़ती जाती। इसलिए इनके रिश्ते के बीच के खाई या गैप को समझना पड़ता है. दोनों पक्षों को शिकायतों को गंभीरता से सुनकर उन्हें उनके जिम्मेदारियों, कर्तव्यों के साथ-साथ उनके अधिकारों को भी उन्हें बताया जाता है यही कारण है की ज्यादातर मामले पुलिस थाने नहीं जाकर हमारे पास आते है, उनके बातों, शिकायतों को अपनेपन से सुनते है गलत को गलत और सही को सही का आभास कराते हैं और वे अपनी गलतियों को स्वीकार भी करते है , जिन दम्पत्तियों ने अपनी गलती स्वीकारी वे आज फिर से सुखमय पारिवारिक जीवन जी रहे है, जहां पुरुषवादी सोच, रीती रिवाज और सामाजिक मान्यताओं और हिंसा के चक्र की गहरी सोच स्थापित है उन्हें ही कोर्ट और पुलिस थाने जाने की जरुरत पड़ती है.
पत्रकारों ने समझने के लिए कई सवाल किये शेख महबूब जी सुझाव दिया की संस्था को शादी के पहले समुदाय को जागरूक करना चाहिए जिससे की वे अपनी बेटी को पूरी तरह लड़के और वरपक्ष की जानकारी लेने के बाद विवाह करने लग समझाइश दी जानी चाहिए।
नवभारत के पत्रकार सुमित शर्मा ने पूछा की बच्चों मानसिकता पर मोबाइल का नकारात्मक असर पड़ रहा है आप लोग समुदाय के बच्चों को मोबाइल के उपयोग पर क्या समझाइश देते है, सिप्रा ने कहा की भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग और चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन के सहयोग से चाइल्ड लाइन 1098 हेल्पलाइन संस्था के माध्यम से संचालित है जिसमे समुदाय के बच्चों के साथ आउटरीच और ओपेनहॉउस कार्यक्रम आयोजित किये जाते है इस कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों के बीच गुड टच बेड टच, बच्चो के अधिकार, पाक्सो एक्ट, जे जे एक्ट के साथ साथ बच्चों को साइबर क्राइम पर जागरूक किया जाता है। मोबाइल हमारे कम्युनिकेशन और शिक्षा के लिए है मोबाइल के माध्यम से कई तरह की जानकारी मिलती है लेकिन अगर कोई बच्चा गलत और अनुपयोगी चीजों को मोबाइल पर देखता है तो इसकी निगरानी भी माता पिता और पालकों को करनी चाहिए. ताकि हम जान सकें की बच्चा मोबाइल का उपयोग कैसे कर रहा है।
सन्तन दास ने पत्रकारों को सम्बोधित करते कहा कि आये दिन मीडिया अपने खबरों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले हिंसा के खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करते रहे है हिंसा के कई कारण हो सकते है पर घटना, उत्तरजीविता (पीड़िता ), घटना कारिता का विवरण, ही प्रकाशित न हो बल्कि इसके साथ ही सेवा देने वाले संस्थानों की भूमिका और कर्तव्य कानूनी प्रक्रियाओं और प्रावधानों, घटना के पीछे के अनछुए सामाजिक सांस्कृतिक सामाजिक मान्यातागत कारणों, को भी उतनी ही प्रमुखता से कवरेज दिया जाना चाहिए जिससे समाज जागरूक हों।
अंत में नगर के उपस्थित सभी पत्रकारों को अपनी बहुमूल्य समय देकर उपस्थित होने और महत्वपूर्ण सुझाव के लिए सिप्रा ने आभार व्यक्त किया।

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