
श्रद्धा सुराना नगर की बेटी संयम की राह पर मुमुक्षु श्रद्धा से बनी साध्वी श्रेष्ठता
दिनेश दुबे
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श्रद्धा सुराना नगर की बेटी संयम की राह पर मुमुक्षु श्रद्धा से बनी साध्वी श्रेष्ठता
बेमेतरा जिले का नाम एक बार फिर हुआ रोशन
बेमेतरा—बेमेतरा जिला के नगर पंचायत देवकर एवं जैन समाज की बेटी कुंवारी श्रद्धा सुराना पिता पारसमल सुराना , माता रेशमी बाई सुराना, देवकर नगर की बेटी जीवन का मोह, माया, एवं आसक्ति का त्याग करते हुए संयम की राह पर चलने के लिए दीक्षा लेकर चल चल पड़ी। नगर के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है स्थानी जैन समाज की बेटी मुमुक्षु श्रद्धा सुराना से साध्वी श्रेष्ठता बन गई। स्थानी जैन भवन में रविवार को साधु एवं साध्वी जनों की उपस्थिति में दीक्षा का कार्यक्रम कोरोना काल के चलते हुए बहुत ही कम संख्या में लोगों की उपस्थिति के बीच संपन्न हुआ
परम श्रद्धेयआचार्य प्रवर 1008 श्री विजय राज मा.सा , आज्ञा नुवार्तिनी शासन प्रभावी महासती प्रभावती मा.सा. एवं कृति श्रीजी मा. सा. के सानिध्य में मुमुक्षु श्रद्धा बहन को भगवती दीक्षा प्रदान किया गया ।बगैर किसी आडंबर के एवं शासन के नियमों का पालन करते हुए यह कार्यक्रम संपन्न हुआ । जैसे ही दीक्षा समारोह प्रारंभ हुआ एवं मुमुक्षु श्रद्धा सुराना को श्रेष्ठता जी का दीक्षित नाम दिया गया ।संपूर्ण भवन जयकारों के साथ गूंज गया। वहां उपस्थित सभी लोगों ने इस अवसर पर मुमुक्षु श्रद्धा सेश्रेष्ठता जी का भव्य स्वागत किया गया। इस अवसर पर नगर के समाज प्रमुख के अलावा शांत क्रांति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश चंद , सुभाष चंद लोढ़ा के अलावा जैन श्री संघ के लोग उपस्थित थे
–व संपन्न परिवार से श्रद्धा का ताल्लुक
गौरतलब हो कि मूलतः देवकर की जन्मी श्रद्धा–शिक्षित सुराना नगर के प्रतिष्ठित सुराना परिवार से ताल्लुक रखती है । उनके पिता पारसमल जी सुराना, व माता रेशमी बाई जी सुराना हैं । साथ ही घर में दो भाई व एक बहन सहित बड़ा परिवार है । इसके अलावा श्रद्धा बीएससी की प्रथम वर्ष की छात्रा रही है । कई क्षेत्रों में उनकी रुचि रही है। लेकिन उन्होंने सब कुछ छोड़ अध्यात्म को चुन लिया । जिससे अब सभी खुश हैं।
साध्वी बनने से पूर्व दुल्हन की तरह सजी हुई थी बेटी श्रद्धा – जैन समाज ने किया अभिनंदन
जैन समाज के रिवाज के मुताबिक कुमारी श्रद्धा साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी , आकर्षक जेवर पहन हाथों में मेहंदी लगाई। जिसमें वह पारंपरिक साड़ी पहन कर आई थी । जिसके बाद सफेद वस्त्र धारण कर कर लिए। इस दौरान उन्होंने अपना बाल भी त्याग दिया। उन्होंने इससे पहले अपना मनपसंद खाना खाया एवं अपने परिवार के साथ समय बिताया। जिसके बाद सुश्री श्रद्धा सुराना अब साध्वी मा.सा. श्रेष्ठता जी बन गई।
संयम जीवन अंगीकार का साधना में लीन होना
दीक्षा के दौरान श्रद्धा ने कहा कि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में काफी कुछ सीखा अब तक अपनी जिंदगी में काफी आनंद लिया ।लेकिन कहीं भी शांति नहीं मिली। वह शांति चाहती है इसके साथ ही संयम जीवन अंगीकार कर साधना में लीन हो जाना चाहती है । उन्होंने कहा कि वह अभिभूत है । उनका आत्मविश्वास आसमान छू रहा है ।उन्होंने कहा कि मुझे संयम मार्ग पर चलना है। मुझे बेहद अच्छा लग रहा है ।
श्रद्धा सुराना की दीक्षा दिवस के अवसर पर कोविड-19 के गाइडलाइन के अनुसार सादगी पूर्ण माहौल में दीक्षा ग्रहण हुआ । इस अवसर पर जैन श्री संघ देवकर के सदस्यगण महिलाएं एवं परिजन विशेष रूप से उपस्थित थे जो इनके दीक्षा के साक्षी बने । कोविड-19 महामारी एवं जिले में लॉकडाउन के चलते बाहर से अन्य जैन समाज के लोग नहीं पहुंच सके।