
रायपुरः 2023 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर 2024 में देश के आम चुनाव हैं। ये भी सबको पता है कि पूरे देश में चुनावी सियासत के केंद्र में देश का अन्नदाता है। खासतौर पर किसान आंदोलन और केंद्रीय कृषि बिलों की वापसी के बाद केंद्र सरकार और भाजपा सारे देश में किसान हितैषी होने की बात स्टेबलिश करना चाहती है। जिसके लिए पार्टी कई योजनाओँ के तहत राशि वितरण पर देशभर में बड़े कार्यक्रम कर रही है। वहीं प्रदेश की भूपेश सरकार की अधिकांश फ्लैगशिप योजनाओं का आधार ही किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। कुल मिलकार राजनीतिक दल देश के सबसे बड़े वोट बैंक किसानों को खफा नहीं कर सकते। राज्य हो या केंद्र दोनों सरकारों का प्रयास है कि वो किसानों को अपने पाले में लाएं। सवाल ये कि वास्तव में किसान के हित की फिक्र किसे है। उससे भी बड़ा सवाल ये कि प्रदेश के माटीपुत्रों का किसे मिलेगा?
राजधानी रायपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर सारागांव में मंगलवार दोपहर तपती दोपहरी में केंद्रीय राज्यमंत्री प्रह्लाद पटेल के साथ सांसद सुनील सोनी, विष्णुदेव साय, बृजमोहन अग्रवाल समेत छत्तीसगढ़ के दिग्गज भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना वितरण कार्यक्रम किया। जिसमें देश के 10 करोड़ से ज्यादा किसानों के खाते में केंद्र सरकार ने 21 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ट्रांसफर की गई। जबकि, पूर्व CM रमन सिंह भी राजनांदगांव में किसानों के लिए राशि वितरण कार्यक्रम में मौजूद रहे। भीषण गर्मी में भाजपा नेताओं की ये साधना इसलिए क्योंकि प्रदेश की करीब 80 फीसदी और देश की दो तिहाई से ज्यादा आबादी कृषक वर्ग की है। जिन्हें ये मैसेज पहुंचाना है कि भाजपा किसानों की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है।
इधर, प्रदेश की भूपेश सरकार भी फ्लैगशिप योजनाओँ जैसे राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गोधन न्याय योजना और राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना के जरिए किसान, सीमांत किसान और भूमिहीन किसानों पर फोकस किए हुए है। अकेले किसान न्याय योजना के तहत 11 हजार180 करोड़ रुपये दिए गए जबकि गोधन न्याय योजना के तहत 250 करोड़ रुपये प्रदान किए गए। इसके अलावा कर्ज माफी, स्थाई पंप कनेक्शन, हाफ बिजली योजना और सिंचाई कर माफी जैसे कई कामों के जरिए किसानों को हजारों करोड़ की राहत देने का दावा है। जिनके आधार पर कांग्रेस, किसान हितैषी होने का दावा करती है।
कुल मिलाकर दोनों पक्षों का दावा यही है कि वो किसान के साथ हैं और किसान उन पर, उनकी नीतियों पर। उनकी बातों पर भरोसा करते हैं। अब वास्तव में किसान किसके साथ हैं, इसकी कसौटी तो चुनाव ही हैं जिसके नजीतों से पहले पार्टियां किसानों का दिल जीतने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही हैं।