
रिपोर्ट : गरीब देशों में यौन संबंधों में महिलाओं की मर्जी के मायने नहीं
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने गुरुवार को पहली रिपोर्ट माय बॉडी इज माय ओन में दुनिय भर में महिलाओं के चिंताजनक हालात को दर्शाया गया है। खासतौर से दुनिया के 57 गरीब देशों में हालात बेहद खराब हैं। इन देशों में यौन संबंधों के लिए मना करने तक का अधिकार महिलाओं को नहीं है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, निर्धन देशों की महिलाएं बीमारी के इलाज या गर्भनिरोधक उपयोग से लेकर यौन संबंध बनाने से जुड़े निर्णय खुद नहीं कर पातीं।उनके निर्णय में किसी और का प्रभाव या डर हमेशा रहता है।अक्सर यह निर्णय कोई और ही करता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आंकड़े दुनिया के एक-चौथाई देशों के हैं, इनमें आधे से अधिक अफ्रीकी देश हैं कोष की कार्यकारी निदेशक डॉ. नतालिय कानेम के अनुसार शारीरिक स्वायत्तता न देना महिलाओं और लड़कियों के मौलिक मानवीय अधिकारों का उल्लंघन तो हैं, असमानता को भी बढ़ावा देता है। इससे लैंगिंक भेदभाव और हिंसा भी जारी रहती है।
शिक्षा,मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
रिपोर्ट के अनुसार इन लड़कियों में मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती है। वहीं अपने बारें में निर्णय करने वाली महिलाओं में शिक्षा का स्तर भी ऊंचा होता है। यह संकेत है , इससे शिक्षा का मजबूत संबंध है।
मौलिक अधिकार का हनन
यूएनएफपीए की भारत में प्रतिनिधि अर्जेंटीना मतावेल के अनुसार यह महिलाओं का मूल अधिकार है। महामारी के दौरान जहां उनसे विभिन्न प्रकार के अपराध बढ़े हैं, उन्हें उचित चिकित्सा व देखभाल मिलना मुश्किल हुआ है।
यौन हिंसा में शरीक लोगों को सूचीबद्ध करने की व्यवस्था दृढ़ हो: भारत
भारत ने सशस्त्र संघर्षों में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा में शामिल लोगों और संस्थाओं को काली सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध संबंधित प्रशासन मजबूत बनाने की अपील की है। भारत का कहना है कि यौन हिंसा का इस्तेमाल लोगों के उत्पीड़न के लिए किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने संघर्षों में यौन हिंसा विषय पर सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की खुली चर्चा में कहा कि यौन हिंसा को अपराध बनाकर उसके प्रभावी अभियोजन को सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि सदस्य देश विश्व मानकों के अनुरूप व्यापक कानूनी ढांचा विकसित करें।