अंततः केंद्र सरकार को झुकना पड़ा, जीत गया देश का किसान – गुरुदयाल 

बलौदाबाजार,
फागुलाल रात्रे, लवन।
ब्लाक कांग्रेस कमेटी लवन के अध्यक्ष गुरुदयाल यादव ने कहा कि शुक्रवार की अचानक सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। यादव ने कहा कि कानून सरकार ने वापस नहीं लिया है बल्कि किसानों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य किया है, देश के विभिन्न विपक्षी पार्टीयो ने सरकार के खिलाफ तन मन धन से मोर्चा खोला। आंदोलन किया, धरने दिये। कांग्रेस पार्टी ने तो देश भर में किसानों को इन तीनो काले कृषि कानूनों का विरोध करने गावं गली मोहल्ले में जाकर जाकरुक किया अंततः आज देश के किसानों की जीत हुई। आज़ाद भारत के सबसे शानदार, संगठित और अहिंसक लड़ाई में किसानों को जीत मिली है। इससे यह समझ में आता है कि अगर आप नैतिक रूप से सहीं हों तो जीत आखिरकार आपकी ही होगी। सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। देशद्रोही, आढ़तिये, मुट्ठीभर और खालिस्तानी जैसे तरह-तरह के विशेषणों से नवाजे जाने के बाद अचानक मोदी को किसानों पर इतना प्यार क्यों आया। इसका उत्तर सतपाल मलिक जैसे भाजपा नेता कई महीनों से देते आये हैं। वे कहते रहे कि ग्राउंड रिपोर्ट्स बता रही है किसानों के विरोध की वजह से यह सरकार सिर्फ यूपी का चुनाव ही नहीं हारेगी बल्कि 2024 में सत्ता से पूरी तरह बेदखल हो जाएगी। कृषि कानूनों को लेकर सरकार का रवैया हद से ज्यादा अड़ियल और तानाशाही भरा रहा था। राज्यसभा तक में इसे नियमों को ताक पर रखकर पास करवाया गया था। किसानों को अपनी गाड़ी से कुचल देने वाले व्यक्ति के पिता अजय मिश्रा टेनी आज भी मोदी सरकार में है। इसलिए प्रधानमंत्री चाहकर भी किसानों के बीच यह संदेश नहीं भेज सकते कि यह फैसला उन्होंने किसानों से हम दर्दी के आधार पर लिया है। 700 किसानों की मौत और आम नागरिकों को हुई बेशुमार परेशानी के बाद कानून वापसी के फैसले को सरकार मास्टर स्ट्रोक किस तरह बताएगी और कॉरपोरेट मीडिया प्रधानमंत्री का तोहफा कैसे साबित करेगा यह एक बड़ा सवाल है। सरकार और सरकार समर्थक मीडिया दोनों के लिए बडी चुनौती है।  कृषि कानून के नाम पर  पूरे साल देश में जो कुछ चला है, वह केंद्र सरकार की निरंकुशता, अहंकारी और गैर-जिम्मेदार रवैये  का परिणाम  साबित करता है।  देश के सबसे बड़े कार्मिक समूह यानी किसानों की जिंदगी और मौत से जुड़ा फैसला उन्हें बिना भरोसे में लिये क्यों किया गया। अगर यह फैसला देशहित में इतना ही ज़रूरी था तो फिर इसे चुपके से और सैकड़ों किसानों के प्राणों की आहुति पश्चात वापस क्यों लिया जा रहा है। ये सारे सवाल पीछा नहीं छोड़ेंगे मनमाना फैसला थोपना निरंकुशता है और कथित तौर पर देशहित से जुड़ा बड़ा कानून चुनावी फायदे के लिए वापस लेना मौकापरस्ती। सरकार को गैर-जिम्मेदार या मौका-परस्त दोनों में कोई एक विशेषण अपने लिए चुनना पड़ेगा। कोई और रास्ता नहीं है। इस पुरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा धक्का प्रधानमंत्री मोदी की उस छवि को लगा है, जिसमें उन्हें कठोर और निर्णायक फैसले लेने वाले नेता के तौर पर चित्रित किया जाता है। कृषि कानूनों की वापसी के बाद अब शायद यूपी के गाँवों में बीजेपी कार्यकर्ता घुस पाएंगे लेकिन किसानों के जख्म हरे हैं, इसलिए एक सीमा से ज्यादा डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाएगा। कानून  वापसी का बस एक ही कारण है भाजपा को पता है कि वो चुनाव हार रही है। देश के किसानों के साथ केन्द्र सरकार के द्वारा किये गये अत्याचार को देश कभी नहीं भुलेगा आने वाले समय पर आम जनता बीजेपी एवं मोदी सरकार को करारा जवाब देगी।

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