क्यों तस्करी और तस्करों को पोषित कर रहे अधिकारी
वसूली,सेटिंग के लगते रहे हैं आरोप,जीवनदायिनी का हाल बेहाल
घरघोड़ा/ घरघोड़ा क्षेत्र को जीवंत जीवन प्रदान करने वाली जीवनदायिनी कुरकुट नदी का सीना चीर कर तस्करी के रैकेट पर आज तक घरघोड़ा प्रशासन अंकुश लगाने में नाकाम ही साबित हुआ है । छुटपुट कार्यवाहियों के बाद अपनी पीठ थपथपा कर कर्तव्यो की इति श्री मान लेने वाले प्रशासन के इस रवैये के चलते आचार संहिता लगने के बाद भी धड़ल्ले से रेत तस्करी का सिंडिकेट संचालित किया जा रहा है ।
आचार संहिता के बाद अनुविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार ही प्रशासन के मुखिया हो जाते हैं क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा सारे अधिकार और प्रभार इन्हें ही सौंपे जाते हैं
ऐसे में उनकी नाक के नीचे धड़ल्ले से होती तस्करी पर किसकी नजरे इनायत है जो धारा 144 लागू होने के बाद भी रेत ढुलाई और खुदाई बेरोकटोक जारी है ये बड़ा सवाल खड़ा होता है ।
रेत ,नदी और पैसा बनाम कर्तव्य, जरूरत और ईमान घरघोड़ा क्षेत्र के पास एकमात्र यही वह नदी थी जिसके किनारे कभी परिवार संग पिकनिक मनाते लोगो से गुलजार हुआ करते थे पर आसपास फैक्ट्री का निर्माण और उसके बाद रेत तस्करी ने नदी को इतना छलनी कर दिया है कि नदी का पानी नहाने लायक नही बचा जिसे कभी लोगो के प्यास बुझाने का जरिया हुआ करता था । पर पैसा कमाने की अंधी दौड़, प्रशासन में सेटिंग और पहुँच के कारण नदी के प्रति अपने कर्तव्य को तस्कर तो वहीं पदेन कर्तव्य को अधिकारी भुला बैठे और आज नदी केवल तस्करी का अड्डा बन कर रह गयी ।
कब तक आंखें मूंदके बैठा रहेगा प्रशासन नदी तट से रेत तस्करी,शाम होते ही ट्रेक्टरों की दौड़ भाग ये सब खुलेआम ही हो रहा जो सबको नजर आता है पर इन्हें रोकने टोकने वाला कोई न होने के कारण दिन प्रतिदिन यह शार्ट कट से पैसा बनाने का धंधा बनता जा रहा है । लगातार तस्करी पर वरद हस्त से नए तस्करों को भी हौसला मिल रहा और रेत तस्करी के धंधे में नए नए ट्रेक्टर उतरने लगे हैं इन सब के बावजूद प्रशासन का आंख मूंद के बैठे रहना अपने आप मे कई प्रश्न खड़े करता है ।
अब देखना होगा कि आचार संहिता में चल रहे तस्करी के खेल पर कब तक नजरें इनायत बनी रहती है और चुनावी माहौल में तस्करी क्या नया मुद्दा बनती है ।