
इंदिरा गांधी की समाधि पर आखिर क्यों लगा है यह विशाल पत्थर, कहां से आया है, पूरी कहानी पढ़िए
इंदिरा गांधी की समाधि पर एक विशाल चट्टान रखी है। इसका अपना इतिहास है। इसे ओडिशा की सुदंरगढ़ खदानों से दिल्ली लाया गया था। इसका वजन 25 टन से ज्यादा है। इससे चुनने का कारण यह था कि इसका आकार हथेली जैसा है। यह कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है। तब इसे लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ( Indira Gandhi) की आज 105वीं जयंती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनकी समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इंदिरा गांधी का समाधि स्थल राजधानी में है। इसे ‘शक्ति स्थल’ (Shakti Sthal) के नाम से जाना जाता है। पूर्व पीएम की समाधि पर एक विशाल पत्थर है। इसका वजन 25 टन से ज्यादा है। इसे ओडिशा की सुदंरगढ़ खदानों से यहां लाया गया था। इसका दिलचस्प इतिहास है।
इंदिरा गांधी की याद में जब तत्कालीन केंद्र सरकार ने स्माकर बनाने का फैसला लिया तो उसके मन में एक चाहत थी। वह चाहती थी कि इंदिरा गांधी को वैसा ही प्रस्तुत किया जाए जैसी असल जिंदगी में पूर्व पीएम थीं। चट्टान जैसी इच्छा शक्ति रखने वाली। लिहाजा, समाधि स्थल पर एक आयरन ओर रॉक (लौह अयस्क चट्टान) को लाने का फैसला लिया गया। इसे शक्ति स्थल नाम दिया गया। इसका मतलब है शक्ति का स्थान। यमुना नदी और महात्मा गांधी मार्ग के बीच शक्ति स्थल लाल किले के दक्षिण पूर्व में स्थित है।
ओडिशा से आई चट्टान
यह चट्टान राउरकेला से लगभग 100 किमी दूर स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) की संचालित खानों में से एक बरसुआन में स्थित थी। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के तत्कालीन महानिदेशक सैलेन मुखर्जी ने चट्टान के लिए सर्च ऑपरेशन की अगुवाई की थी। बाद में इंदिरा गांधी के करीबी पुपुल जयकर की सहमति लेकर इसे शक्ति स्थल पर रखा गया था।
मुखर्जी और राउरकेला स्टील प्लांट के रिटायर्ड महाप्रबंधक (कच्चा माल विभाग) रमेश चंद्र मोहंती ने राउरकेला के आसपास के क्षेत्र में इस पत्थर की खोज की थी।
बरसुआन में मुखर्जी और मोहंती ने कई चट्टानों में से इसकी खोज की थी। अंत में अपने लाल रंग की वजह से जैस्पर किस्म में से एक पर उनका ध्यान गया था। इसे लेकर दोनों बहुत खुश थे। इसे चुनने के दूसरे कारण भी थे। यह हथेली के आकार जैसा था, जो कांग्रेस का प्रतीक है। इसमें जैकहैमर ड्रिलिंग के कारण दिखाई देने वाले कुछ छेद थे। ये इंदिरा गांधी के शरीर पर गोलियों के निशान की याद दिलाते हैं।
25 टन वजनी चट्टान को लाना था मुश्किल
हालांकि, सबसे बड़ी समस्या थी पत्थर को बरसुआन खदानों से नीचे घाटी में लाना जहां से इसे एक ट्रेन पर लादना था। दूरी लगभग 10 किमी थी और इलाका पहाड़ी था।
तब इसे क्रेन की मदद से एक बड़े मैक ट्रेलर पर लोड किया गया था, जो राउरकेला से पूरे रास्ते आया था। जिला प्रशासन ने चट्टान के परिवहन की सुविधा के लिए तीन घंटे के लिए पहाड़ी सड़क पर यातायात की आवाजाही बंद कर दी थी। फिर इसे एक स्पेशल ट्रेन पर लोड किया गया था। यह ट्रेन करीब-करीब बिना रुके दिल्ली पहुंची थी। इसे स्पेशल रूट क्लीयरेंस दिया गया था।
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके दो सिख बॉडीगार्डों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। अस्पताल ले जाते हुए ही उन्होंने दम तोड़ दिया था। दोनों ने उन पर कई राउंड गोलियां बरसाईं थीं।