एक अखाड़ा ऐसा भी जिसके संन्यासी बोलते हैं फर्राटेदार अंग्रेजी…जाने कहा
आमतौर पर साधु-संतों को केवल वेदों और पुराणों का ज्ञाता समझा जाता है। अब समय में बदल रहा है। अब उच्च शिक्षित लोग भी अध्यात्म और आत्मिक शांति की खोज में संन्यास की राह पकड़ रहे हैं। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी से सबसे पहले उच्च शिक्षितों के लिए अखाड़े के द्वार खोले। अखाड़े में 100 महामंडलेश्वर और 1100 संन्यासी उच्च शिक्षित हैं। इनमें इंजीनियर, प्रोफेसर, डॉक्टर, अधिवक्ता और संस्कृत के विद्वान आचार्य भी शामिल हैं। कुंभनगरी में सातों शैव अखाड़ों की पेशवाई और पहला शाही स्नान भी संपन्न हो चुका है। देशभर से साधु संत हरिद्वार में अखाड़ों की छावनी में कल्पवास के लिए पहुंचे रहे हैं। साधु संतों को लेकर आम धारणा है कि वे कम पढ़े लिखे होते है या केवल संस्कृत व हिंदी का ज्ञान ही होता है। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में अधिकांश संत फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। 70 फीसदी संन्यासी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। 1500 संन्यासियों में से 1100 संन्यासियों ने स्नात्तक या उससे अधिक शिक्षा ग्रहण की है। पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी सचिव श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताया कि अखाड़े के संत स्वामी आनंदगिरि नेट क्वालिफाइड हैं। आनंदगिरि कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, सिडनी यूनिवर्सिटी, आईआईटी खड़गपुर और आईआईएम शिलांग में व्याख्यान दे चुके हैं। अभी बनारस से पीएचडी कर रहे हैं।
अखाड़े के दूसरे संत महेशानंद गिरि भूगोल के प्रोफेसर हैं। जबकि बालकानंद डाक्टर हैं। संत पूर्णानंद वकील और संस्कृत के विद्वान हैं। जबकि संत आशुतोष पुरी भी पीएचडी कर रहे हैं। अखाड़े का हरिद्वार में संस्कृत और कॉलेज भी हैं।
अखाड़ा हरिद्वार और प्रयागराज में पांच स्कूल और कॉलेज भी बना रहा है। शिक्षित संत अखाड़े की शैक्षणिक संस्थानों की व्यवस्था संभालते हैं और छात्रों को पढ़ाते भी हैं।
पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी की स्थापना वर्ष 904 (विक्रम संवत 960) को गुजरात की मांडवी में हुई थी। अखाड़े का मुख्यालय प्रयागराज में है। हरिद्वार, उज्जैन, त्रयंबकेश्वर और उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं।
महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़े की स्थापना की थी।