
पिछड़ी जनजाति की कमार महिला को नहीं मिल पा रही है प्रशासनिक मदद
भूपेंद्र गोस्वामी
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पिछड़ी जनजाति की कमार महिला दो बच्चों के साथ एक झोपड़ी में जीवन गुजारने मजबूर प्रशासनिक मदद की है आस
छुरा== गरियाबंद जिले के छुरा विकास खंड के ग्राम जुनवानी की रहनेवाली देवन्तीन बाई कमार अपने दो बच्चों के साथ एक कमरे की पोलीथिन से ढके झोपड़ी में जिंदगी गुजारने मजबूर है। देवन्तीन के पति का आज से पांच वर्ष पहले देहांत हो गया, उनके दो छोटे बच्चे हैं जिनको किसी तरह रोजी मजदूरी कर पालन पोषण करती हैं, क्योंकि उनके पास न ही अपनी जमीन है और न ही जीने का कोई साधन उनको न ही सरकार के बिजली योंजनाओं का लाभ मिला न ही प्रधानमंत्री आवास का, बिजली नहीं होने के चलते रात के अंधेरे में बस्ती से बाहर आखिरी घर में दोनों बच्चे के साथ रात गुजारती है। देवन्तीन बताती हैं कि बारिश के दिनों एक कमरे की झोपड़ी में रहना,खाना,और गुजारा करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। उनके बच्चे गांव के स्कुल में जाकर पढ़ाई करते हैं तो एक समय का खाना बच्चों को वहीं मिल जाता है।
उनके बड़े बच्चे का अक्सर तबियत खराब हो जाता है जिसे कुछ माह पहले मेकाहारा से ब्लड लगवाकर लाई है। पहले राशनकार्ड नहीं था और नहीं मनरेगा जाब कार्ड ,लेकिन कुछ माह पहले सरपंच और गांव के कुछ जागरूक लोगों के सहयोग से बन पाया है,और पिछले कुछ महीने से विधवा पेंशन मिलना शुरू हुआ है। वे कहतीं है कि सरकार के बिजली योजना का लाभ मिल जाये बच्चे रात में पढ़ाई कर सकते हैं और आवास योजना का लाभ मिल पाये तो बारिश के दिनों मे हमें तकलीफों का सामना करना नहीं पड़ता। जहां छुरा नगर के समाज सेवक मनोज पटेल ने पहुंच कर उनसे मुलाकात की।
विशेष पिछड़ी कमार जनजातियों के लिये सरकार व प्रशासन करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन धरातल पर ये तस्वीरें कुछ और ही बयां करते नजर आती हैं।