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बिलासपुर =नवागढ़ जांजगीर निवासी 73 वर्षीय महिला के विरुद्ध शिवरीनारायण आबकारी इंस्पेक्टर के द्वारा जमानतीय अपराध का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें उसे बेल बॉन्ड भरवाकर थाने से ही जमानत दे दी गई थी। जिसके बाद आबकारी पुलिस ने उक्त महिला को बिना सूचना दिए जांजगीर न्यायालय में चालान प्रस्तुत कर दिया। महिला की उपस्थिति के लिए न्यायालय ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था जिसकी तामिली और सूचना भी महिला को कभी नहीं हुई, जिसके बाद महिला को उसके अधिवक्ता के माध्यम से जानकारी हुई की न्यायालय से उसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया है, जिसकी सूचना पर उसने तुरंत न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर वारंट निरस्त करने का आवेदन प्रस्तुत किया लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसे जेल भेज दिया, जिसके 7 दिन बाद सत्र न्यायालय से उसकी जमानत हुईं।
उक्त मजिस्ट्रेट के आदेश एवं अवैध गिरफ्तारी के आदेश के विरुद्ध उसने अधिवक्ता गौरव सिंघल के माध्यम से उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर उचित कार्यवाही और क्षतिपूर्ति की मांग की जिस पर चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच ने सुनवाई की और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकारों का हनन मानते हुए मजिस्ट्रेट के उक्त आदेश को गलत ठहराया और महिला को 30 दिन के भीतर 25000/- रूपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया।