मनेंद्रगढ़ में मुक्तिधाम की जमीन पर खुल गई दवा की दुकानें, जिम्मेदार अफसरों की नींद टूटती ही नहीं….पढ़िए पूरी खबर

कोरिया। सरकारी जमीन पर कब्जा, दूसरे की जमीन पर कब्जा कर लेने की खबरें तो आपको आए दिन पढ़ने को मिलती होंगी, लेकिन लोग अब श्मशान तक की जमीन को नहीं बख्श रहे हें। कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ में भी ऐसा ही एक दिलचस्प मामला लंबे समय से खिंचा चला आ रहा है। कुछ रसूखदारों ने अवैध तरीके से मुक्तिधाम की जमीन पर कब्जा जमा रखा है। उस जमीन को कब्जे से मुक्त कराने के लिए पिछले डेढ़ दशक से प्रमाणित दस्तावेजों के साथ खुद पर ‌जानलेवा हमले होने के बावजूद एक आरटीआई कार्यकर्ता का संघर्ष निरंतर जारी है। मरने के बाद दो गज जमीन के‌ लिए लोगों को‌ भटकना ना पड़े, इसलिए यह‌ आरटीआई कार्यकर्ता मुर्दो की पैरवी कर रहा है। चिरनिद्रा में लीन आत्माओं के अंतिम पड़ाव मुक्तिधाम, मामना जाता है कि हर मृतात्मा यहां शांति मिलती है। हर मृतात्मा का यहीं जीवन के अंतिम सत्य से सामना होता है। लेकिन वह स्थान यानि मुक्तिधाम आज रसूखदारों के कब्जे से मुक्ति की राह देख रहा है। मनेंद्रगढ़ नगर स्थित मुक्तिधाम की शासकीय भूमि खसरा नम्बर 438 मिशल बंदोबस्त, 1944 – 45 के अनुसार 1944 से मरघट के लिए आबंटित भूमि है। 1954-55 के अधिकार अभिलेख एवं निस्तार पत्रक में भी मरघट के लिए आरक्षित भूमि है। उक्त भूमि के अंश भाग को अवैध कब्जाधारी मेडिकल व्यवसायी को बेच दिया गया। स्टांप पेपर पर भूमि बिक्री की लिखा-पढ़ी के माध्यम से उप संचालक खाद्य एवं औषधि विभाग से मेडिकल दुकान का लाइसेंस प्राप्त कर लिया गया। जब मुक्तिधाम की जमीन पर बेजा कब्जा हुआ तो आरटी आई कार्यकर्ता रमाशंकर गुप्ता ने इसकी शिकायत तत्कालीन कलेक्टर शाहिला निगार से की। शिकायत पर विस्तृत जांच के बाद मेडिकल दुकान का लाइसेंस निरस्त करने का आदेश दिया गया। मरघट की भूमि के एक मात्र ‌कब्जाधारी पर कार्यवाही ना होते देख एक के बाद एक वहां अनेक मेडिकल स्टोर खुलते गये। आज की स्थिति में लगभग डेढ़ एकड़ जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। नतीजतन करोना काल में मृतकों की संख्या में बढोत्तरी के कारण परिजनों को अपनी बारी का इंतजार करते देखा गया। आरटीआई कार्यकर्ता रमाशंकर गुप्ता के लगातार विरोध को‌ देखते हुए मेडिकल दुकान के‌ संचालक ने जानलेवा हमला किया। आरटीआई ‌कार्यकर्ता‌ पर हुए ‌हमले की‌ जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोपी पर कठोर कार्रवाई का आदेश दिया था। महीनों ‌अस्पताल में रहने के बाद भी आरटीआई कार्यकर्ता का हौसला ‌नही‌डिगा है। वह आज‌ भी कुम्भकरणी नींद में सोए‌ सिस्टम को जगाने का प्रयास कर रहे हैं।

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