महाशिवरात्रि का बहाना.. सरकार पर निशाना, क्या महाशिवरात्रि के राजनीतिकरण के पीछे का मकसद मिशन 2023 है?

भोपालः  महाशिवरात्रि है। इस मौके पर शिवभक्त शिवालयों मे विशेष पूजा अर्चना करेंगे। लेकिन मध्यप्रदेश में इस पावन मौके को लेकर सियासत तेज है। दरअसल शिवराज सरकार महाशिवरात्रि के मौके पर उज्जैन में 21 लाख दीये जलाकर शिव ज्योति अर्पणम महोत्सव की शुरुआत करेगी। बीजेपी के तमाम बड़े नेता शिव मंदिर पहुंचेंगे। जिसे लेकर कांग्रेस ने सरकार पर धर्म के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। हालांकि बीजेपी ने भी जवाबी पलटवार करते हुए कांग्रेस को हिंदू विरोधी बता दिया। अब सवाल ये है कि महाशिवरात्रि के राजनीतिकरण के पीछे मिशन 2023 है..?

मध्यप्रदेश की सियासत में एक बार फिर धर्म का तड़का लगने जा रहा है। भगवान राम को अपना ब्रांड एम्बेसडर मानने वाली बीजेपी ने अब भगवान शिव की तरफ रुख कर लिया है। मकसद साफ है 2023 की विधानसभा चुनावों के पहले बहुसंख्यक वोटर्स को अपने एजेंडे में सेट करना। जाहिर है बड़े वोट बैंक को साधने के लिए न सिर्फ बीजेपी संगठन बल्कि सरकार भी पार्टी के साथ ही कदमताल कर रही है। बीजेपी शिवरात्रि के मौके पर उज्जैन के शिप्रा तट पर 21 लाख दीये जलाकर शिव ज्योति अर्पणम महोत्सव की शुरुआत कर रही है। महोत्सव के जरिए बीजेपी की तरफ से वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के दावे भी किए जा रहे हैं। धर्म, संस्कृति विभाग भी प्रदेश के सभी बड़े शिवालयों उज्जैन के महाकाल मंदिर, खंडवा के ओमकारेश्वर, मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर, भोपाल के भोजपुर मंदिर, टीकमगढ़ के कुंडेश्वर धाम सरीखे मंदिरों में धर्म आध्यात्म से जुड़े कार्यक्रम करेगी।

बीजेपी के इस मेगा इवेंट से कांग्रेस सहम गई है। कांग्रेस को डर है कि ऐसे इंवेट्स के जरिए अगर 10 से 20 फीसदी बहुसंख्यक वोटर्स भी बीजेपी की तरफ शिफ्ट हुए तो 2023 में कांग्रेस की वापसी का सपना अधूरा ही रह जाएगा। लिहाजा कांग्रेस इसे सिर्फ पॉलिटिकल इवेंट बता रही है। कांग्रेस इस कोशिश में भी है कि बहुसंख्यक वोटर्स को ये बताया जाए कि बीजेपी ने धर्म आध्यात्म से जुड़े जो वादे किए थे वो हवा हो गए। बीजेपी के इस इवेंट के मुकाबले कांग्रेस अपने कार्यकाल के राम वन गमन पथ, महाकाल मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 300 करोड़ का बजट, महाकाल से ओंकारेश्वर तक ओम सर्किट के निर्माण, पुजारियों को मानदेय, 1000 गौशालाओं का निर्माण, पवित्र नदियों की स्वच्छता, संरक्षण के काम भी गिना रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि वोटर्स को रिझाने की इस कवायद में वो भी कामयाब होंगे।

कुल मिलाकर भगवान राम के बाद बीजेपी अब शिव की साधना में जुट गई है। तमाम कोशिशों के जरिए बीजेपी 2023 के चुनावों में माइलेज लेना चाहती है। अब चुनौती कांग्रेस के सामने है कि बीजेपी के वोटों की इस तपस्या की काट के लिए कौन सा ब्रम्हास्त्र इस्तेमाल करेगी। जो भी हो ये साफ है 2023 का सियासी दंगल बेहद दिलचस्प होने वाला है।

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