‘मां’ का दर्शन माताओं के लिए वर्जित : छत्तीसगढ़ में एक मंदिर ऐसा भी, महिलाएं नहीं लांघ सकतीं मंदिर की देहरी, सदियों से चली आ रही परंपरा…

बालोद से जिला मुख्यालय से 36 किमी दूरी पर नेशनल हाईवे-30 ग्राम पुरूर में स्थित आदि शक्ति माता मावली के मंदिर की अनोखी परंपरा है. यहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. जिसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं. मंदिर की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती है. माता की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं. माता के इस मंदिर की मान्यता है कि जो भी मां के दर्शन करने आता है, उसकी मन्नत दर्शन मात्र से पूरी हो जाती है. माता के दर्शन करने प्रदेश के कई हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं और सबसे अनोखी बात जो है, वह यह कि माता मावली के मंदिर में सिर्फ चैत्र नवरात्र को ही ज्योत जलाई जाती है. क्वांर नवरात्र में सिर्फ पूजा पाठ की जाती है. इस चैत्र नवरात्र में भी मनोकामना ज्योत जलाई गई है.
बालोद जिले के नेशनल हाईवे-30 में स्तिथ ग्राम पुरुर में माता मावली मंदिर की अनोखी परंपरा के चर्चे आसपास के क्षेत्र सहित पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश में है. मंदिर समिति के लोगों और पुजारी की मानें तो यह मावली माता मंदिर वर्षों पुराना है. जिस स्थान में माता मावली का मंदिर स्थित है. वहां वर्षों पहले घनघोर जंगल हुआ करता था. यहां के पुजारी को एक बार सपने में भूगर्भ से निकली माता मावली दिखाई दी और माता ने उस पुजारी से कहा था कि वह अभी तक कुंवारी हैं, इसलिए मेरे दर्शन के लिए महिलाओं का यहां आना वर्जित रखा जाए. तब से इस मंदिर में सिर्फ पुरुष ही दर्शन के लिए पहुंचते हैं. माता मावली के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंचते हैं. ग्राम पटेल कीर्तन राम साहू की माने तो मावली माता मंदिर करीब 200 वर्षों पुराना है. कई पीढियां निकल गई और माता के प्रति आस्था और वर्षों से चली आ रही परंपरा आज भी जारी है. कीर्तन राम साहू बताते है कि सिर्फ 10 वर्ष से 12 वर्ष तक की बच्ची माता के मंदिर में प्रवेश कर सकती है. चूंकि ऐसी मान्यता है कि माता मावली कुंवारी हैं तो महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित है. जैसा कि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा है. पूजा-अर्चना के लिए परिसर में एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया गया है. जहां महिलाएं माता के दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगती हैं. महिलाएं नमक, मिर्च, चावल, दाल, साड़ी, चुनरी आदि चढ़ावा के रूप में चढ़ाती हैं.

गांव की महिलाओं ने बताया कि परंपरा क्यों चल रही है, यह उन्हें नही मालूम. बस पीढ़ी दर पीढ़ी सभी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं. मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा है, लेकिन उनके लिए एक और व्यवस्था की गई है. पूजा-अर्चना के लिए परिसर में एक छोटे-से मंदिर का निर्माण कराया गया है. जहां महिलाएं माता के दर्शन कर मन्नतें मांगती हैं. इसके अलावा मंदिर परिसर के बाहर माता मावली की तस्वीर लगाई गई हैं, जिसे देख महिलाएं दर्शन कर लेती हैं. माता की कुंवारी होने की वजह से महिलाएं अंदर नहीं जाती हैं और यह परंपरा सालों से चली आ रही है. निश्चित ही यह एक अनोखी परंपरा है inh न्यूज़ इसे ग्रामीणों की परंपरा मानता है लेकिन कहने को तो एक यह रूढ़िवादी परंपराओं में एक है लेकिन यहां ग्रामीणों की अपनी आस्था है.

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