मोदी सरकार के सात साल में क्या हुआ, जो सात दशक में नहीं हो पाया?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले और दूसरे कार्यकाल के सात वर्ष पूरे हो चुके हैं. ऐसे अवसरों पर सरकार की तरफ से उपलब्धियों का बखान किया जाता है, लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर की व्यापक मार की वजह से मोदी सरकार जश्न के मूड में बिल्कुल नहीं दिखी. हालांकि पहली लहर पर असरदार लगाम लगाने के लिए सरकार की पीठ पूरी दुनिया में ठोकी जा रही थी, लेकिन दूसरी लहर ने सरकार को परेशान कर रखा है. कोविड-19 से निपटने के लिए हालांकि युद्ध स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों का नकारात्मक प्रोपेगेंडा भी लगातार जारी है.

मोदी सरकार ने पहली बार 26 मई, 2014 को शपथ ली थी और दूसरी बार 30 मई, 2019 को. देश में किसी प्रधानमंत्री के दोनों शपथ ग्रहण समारोहों को अनूठा बनाने का प्रयास किया गया. पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि शपथ ग्रहण के अवसर को क्षेत्रीय एकजुटता का संदेश देते हुए ग्लोबल एप्रोच वाला समारोह बनाया गया हो. सार्क देशों के प्रमुख मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में मेहमान बने. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की मौजूदगी को लेकर मीडिया में संशय प्रकट किया जाता रहा, लेकिन आख़िरकार वे दिल्ली आए

अगले साल यानी 2015 में 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक लाहौर पहुंच कर भी इतिहास रचा. नवाज़ शरीफ़ ने मोदी का तहेदिल से स्वागत किया. पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक तौर पर इसे सद्भावना का इज़हार करार दिया. काबुल से दिल्ली लौटते हुए मोदी का विमान लाहौर की तरफ मुड़ा, तो विश्व कूटनीति के लिए वह पल बेहद चौंकाने और आशान्वित करने वाला था. शरीफ़ के न्यौते पर मोदी पाकिस्तान पहुंचे, तो लाहौर एयरपोर्ट पर नवाज़ शरीफ़ उनके स्वागत के लिए तैयार थे. वहां से दोनों एक ही हेलीकॉप्टर में नवाज़ के पुश्तैनी आवास पर पहुंचे और उनकी नातिन के शाही समारोह में शामिल हुए. उस दिन नवाज़ का जन्मदिन भी था. मोदी ने गर्मजोशी से उन्हें बधाई दी. वापसी में भी नवाज़ शरीफ़ एयरपोर्ट तक मोदी को विदा देने आए.

उस समय इस घटना पर बहुत बहस हुई, लेकिन भारतीय विपक्ष का रवैया इस ‘सद्भावना’ दौरे को लेकर आज भी नकारात्मक ही रहता है. वर्ष 2019 के आम चुनाव में भारत के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी को और ताक़तवर बनाकर संसद भेजा. 30 मई, 2019 को प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बे ऑफ़ बंगाल इनीशिएटिव फ़ॉर मल्टी सेक्टरल टैक्निकल एंड इकनॉमिक को-ऑपरेशन यानी बिम्सटेक देशों के भारत के अलावा बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार और थाइलैंड शामिल हैं. शपथ ग्रहण जैसे औपचारिक समारोह को कूटनैतिक संबंध बनाने, बढ़ाने के अवसर में बदलने की अभिनव सोच ज़ाहिर है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में ही पनपी होगी. ऐसी कोई परंपरा होती, तो 2014 से पहले हुए शपथ ग्रहण समारोहों में भी इस तरह की पहल की गई होती.

सरकार की उपलब्धियों में आमतौर पर किसी सरकार के महत्वपूर्ण फ़ैसलों का ज़िक्र प्रमुखता से किया जाता है, हम भी इस टिप्पणी में आगे उनका ज़िक्र करेंगे, लेकिन यह देखना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है कि कोई नेता अपनी प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिए किस तरह दूसरों से अलग होने की सहजता का प्रदर्शन अपने स्वाभाविक हाव-भाव के माध्यम से करता है. जहां तक प्रधानमंत्री के तौर पर सात साल का कार्यकाल पूरा करने पर मोदी की उपलब्धियों के बखान का प्रश्न है, तो कृतित्व के साथ ही उनके व्यक्तित्व पर भी थोड़ा ही सही, दृष्टिपात आवश्यक है. पार्टी की तरफ़ से ज़िम्मेदारी मिलने, जीतने और उसके बाद पद संभालने और अपनी सोच के क्रियान्वयन की प्रतिबद्धता का संकल्प मन में लिए आगे बढ़ने की पूरी प्रक्रिया में जब हम किसी व्यक्ति को संसद की सीढ़ियों पर विनम्रता से माथा टिकाते देखते हैं, तो समझ में आता है कि दूसरों की अपेक्षा वह बहुत अलग है.

ठीक है कि हर सरकार अपनी सोच और कार्यपालिका पर अपनी पकड़ के अनुसार देश हित में निर्णय लेती है. हर प्रधानमंत्री और उसकी कैबिनेट का विज़न अलग होता है, लेकिन उद्देश्य एक ही होता है, देश को विकास की राह पर आगे बढ़ाने और देशवासियों को समृद्धि की ओर ले जाने का. इन दो व्यापक उद्देश्यों की पूर्ति योजनाएं बनाकर उनके अधिक से अधिक क्रियान्वयन के माध्यम से की जाती है. मोदी के सात साल के कार्यकाल में सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि इससे पहले ‘भ्रष्टाचार’ नाम का जो शब्द हर भारतीय की ज़ुबान पर रहता था, वह अब कम ही सुनने को मिलता है.

हालांकि यह भी सही है कि भ्रष्टाचार नहीं होने देने की ज़िद की वजह से बहुत बार देश की जनता को काफ़ी परेशान होना पड़ता है। इस ज़िद की वजह से बहुत बार ऐसा लगता है कि सारी शक्तियां प्रधानमंत्री कार्यालय तक सिमट कर, केंद्रीयकृत होकर रह गई हैं। यह भी सुनने को मिलता है कि केंद्र सरकार के मंत्रालय निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं। विपक्ष भी इस तरह के आरोप लगाता रहता है, लेकिन जब हर शाख़ पर उल्लू बैठे होने वाली विरासत किसी को मिले, तो उसका अति-सतर्क होना लाज़िमी है। अगर ग़ौर करें, तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के बाद दूसरे में यह प्रवृत्ति कम दिखाई देती है। ऐसा नहीं है कि देश भर में जो चर्चा गंभीरता से या फिर व्यंग्य के तौर पर हो रही हो, वह सरकार के कानों तक नहीं पहुंचती हो। पीएमओ को सजग रहना ही चाहिए। लेकिन अगर ऐसे आरोप लगने आम हो जाएं कि कोई मंत्री कुछ भी फ़ैसला बिना पीएमओ की मंज़ूरी के नहीं कर सकता, तो स्थिति को बदलना ही चाहिए।दूसरे कार्यकाल के क़रीब सात महीने बाद ही कोविड-19 ने पूरी दुनिया को अपनी जानलेवा चपेट में ले लिया। साफ़ है कि दिसंबर, 2019 के बाद से तो दुनिया की सारी सरकारें कोरोना से निपटने के प्रयासों में लगी दिखाई दे रही हैं। इस दौरान तो सभी देशों की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि कैसे मरने वालों के आंकड़े पर काबू पाया जा सके। इंसानियत के वजूद की हिफ़ाज़त की जा सके। ज़ाहिर है कि मोदी सरकार भी फ़िलहाल इसी संकट से जूझ रही है। इस भयावह दौर में कोरोनारोधी स्वदेशी टीका शेष विश्व के क़रीब-क़रीब साथ ही विकसित होना भारत की बड़ी उपलब्धि कही जाएगी। इसका श्रेय मोदी सरकार को देना ही पड़ेगा।

अब उन कुछ बड़े फ़ैसलों का ज़िक्र कर लेते हैं, जो मोदी हैं, तभी मुमकिन हुए हैं। उरी अटैक और पुलवामा हमले के बाद पीओके में आतंकी लॉन्च पैड पर सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर भारत ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि अब आतंक के ख़िलाफ़ उसने नीति बदल ली है। आतंकी हिमाक़त करेंगे, तो उन्हें पाकिस्तान में घुस कर सबक़ सिखाया जाएगा। यह पहले नहीं हुआ था। एक बार में तीन तलाक़ बोलकर मुस्लिम महिलाओं को प्रताड़ित करने के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की हिम्मत मोदी सरकार ने ही की है। हालांकि इसके लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से समर्थन मिला था। फिर भी सरकार की इच्छाशक्ति थी, इसलिए ही क़ानून बना और मुस्लिम महिलाओं ने इसके लिए बहुत से अवसरों पर मोदी सरकार को धन्यवाद भी दिया।
जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने साहसिक क़दम उठाया। जिस तरह राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश से संविधान में अनुच्छेद 35-ए जोड़ा गया था, उसे ठीक उसी प्रक्रिया से रद्द कर दिया गया। संवैधानिक प्रक्रिया से अनुच्छेद 370 के दांत भी तोड़ दिए गए। सरकार ने कश्मीर, जम्मू और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया। अब वहां आतंक के सियार मनमाफ़िक हू-हू नहीं कर पा रहे हैं, तो इसके लिए मोदी सरकार की पीठ थपथपाई जानी चाहिए। यह बहुत दुरूह काम पहले की सरकारों के दौरान सोचा भी नहीं जा सकता था। बहुत समय से 370 और 35-ए का मामला सप्रीम कोर्ट में लंबित था, जिसे जड़ से ही ख़त्म कर दिया गया।
देश की तीनों सेनाओं को शक्तिशाली बनाने के लिए भी मोदी सरकार को लंबे समय तक याद किया जाएगा। तीनों सेनाओं में तालमेल के लिए मोदी सरकार ने चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ जैसे पद का सृजन किया। सेनाओं के आयुध और दूसरी सामरिक आवश्यकताओं के मामले में आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस क़दम उठाने का निर्णय भी मोदी सरकार ने किया, जिसके दूरगामी परिणाम निकलेंगे। कई तरह की आयुध सामग्री समेत सेना की आवश्यकता वाली 100 चीजों को आयात लिस्ट से हटाकर उन्हें देश में ही बनाने का निर्णय वास्तव में मील का पत्थर साबित होगा। फ्रांस के साथ राफैल युद्धक विमान के सौदे को अंजाम किया। इसी तरह संचार क्रांति को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार का उल्लेख भविष्य में भी होता रहेगा। इसरो ने एक साथ 100 से ज़्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करने का रिकॉर्ड मोदी सरकार के कार्यकाल में ही बनाया।

भारत में आरक्षण का मुद्दा सबसे ज़्यादा चर्चित और विवादित मसला रहा है। मोदी सरकार ने बाक़ायदा क़ानून बनाकर सरकारी नौकरियों में विपन्न सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया, तो यह क्रांतिकारी निर्णय ही कहा जाएगा। राजनैतिक बाड़ेबंदी इस तरह हुई कि कोई भी पार्टी मोदी सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना नहीं कर पाई। इसी तरह नोटबंदी का ज़िक्र न किया जाए, तो मोदी सरकार की उपलब्धियों का ज़िक्र अधूरा रह जाएगा। इसी तरह एक देश-एक टैक्स की दिशा में जीएसटी क़ानून बनाना मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि है।
जन-कल्याण की बहुत सी योजनाओं का ख़ाका मोदी सरकार ने खींचा और उन पर ईमानदारी से अमल के प्रयास भी किए। आज़ादी के सात दशक बाद आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए जनधन खाते बैंकों में पहली बार खोले गए। आयुष्मान योजना से ग़रीबों का पांच लाख रुपये तक मुफ़्त इलाज़ निजी क्षेत्र के अस्पतालों में संभव हुआ, तो उज्ज्वला योजना के तहत मुफ़्त एलपीजी कनेक्शन से करोड़ों विपन्न परिवारों को रसोई में धुंए और घुटन से मुक्ति मिली। सबके घर बिजली की सौभाग्य योजना हो, या सबको पक्के प्रधानमंत्री आवास, आम देश वासी से गौरव और आत्म सम्मान का ध्यान मोदी सरकार ने रखने की कोशिश की। अटल पैंशन योजना समेत और भी बहुत सी योजनाओं के नाम गिनाए जा सकते हैं, जिनके ज़रिए मोदी सरकार ने कमज़ोर तबक़े को शक्तिशाली बनाने का काम किया है। इन योजनाओं की समीक्षा समय-समय पर किए जाने की ज़रूरत है, ताकि मोदी विरोधियों के सामने वस्तुस्थिति चरणबद्ध रूप से रखी जा सके।

वोकल फ़ॉर लोकल जैसे सूत्रों के साथ मोदी सरकार ने आत्मनिर्भता का मूल मंत्र आम भारतीय की चेतना में फूंका है, तो ऐसा पहली बार ही किया गया है। आज़ादी के समय महात्मा गांधी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के प्रबल पक्षधर थे। लेकिन किन्हीं कारणों से प्राथमिकताएं बदल गईं और आज़ादी का असल लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हो पाया। किसानों की हालत बद से बदतर होती गई। कर्ज में डूबे लाखों किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा। अब मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के इरादे से तीन कृषि विपणन क़ानून बनाए हैं, तो विपक्ष के इशारे पर कुछ कथित किसान संगठन इस पर जमकर राजनीति कर रहे हैं।
किसानों की मांग है कि तीनों क़ानून रद्द किए जाएं। किसान नेता कह रहे हैं कि उनका आंदोलन जून-जुलाई, 2024 तक जारी रहेगा। यानी वे मान चुके हैं कि मोदी सरकार उनकी अलोकतांत्रिक मांगें हरगिज़ पूरी नहीं करेगी। किसानों के इस तरह के बयानों से यह भी साफ़ है कि वे मानते हैं कि वर्ष 2024 में मोदी सरकार बदल जाएगी। देश की राजधीनी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के जमावड़े के प्रति केंद्र की मोदी या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कोई सख़्ती अभी तक नहीं की है, क्योंकि यह कथित आंदोलन अब अपने ही अंतर्विरोधों के कारण खोखला होता जा रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

मोदी सरकार सात साल पूरे कर चुकी है। कोविड-19 से सरकार की जंग जारी है। ऐसे समय में जब देशव्यापी अफ़रा-तफ़री और अनिश्चितता का वातावरण बना हो, तब स्वाभाविक रूप से किसी भी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी होती हैं और कृत्रिम रूप से मुश्किलें खड़ी की भी जाती हैं। देश में अप्रैल के अंतिम और मई के शुरुआती दिनों में बना माहौल क़रीब-क़रीब ख़त्म हो चुका है। सरकार का दावा है कि कोविड-19 को हराने के लिए तमाम ज़रूरी इंतज़ाम नित्य बढ़ाए जा रहे हैं। तीसरी लहर को निष्प्रभावी करने की तैयारियां भी समय रहते की जा रही हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि कोविड-19 की परिस्थितियों के क़ाबू में आने के बाद भारत नई शक्ति, नई ऊर्जा के साथ शेष विश्व के साथ क़दमताल में अग्रणी दिखाई देगा, इसमें अधिसंख्य भारतीयों को कोई संदेह नहीं है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने जो नया नारा दिया है, वह भी जान लीजिए- हम साधक, वे बाधक। यानी सरकार साधक और विपक्ष बाधक।

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