
टिल्लू का पुलिस को खुला चैलेंज: मंदबुद्धि कहकर धमकी, वॉइस क्लिप वायरल
छठ आस्था अपमान विवाद: तीर्थ यात्रा का बहाना या पुलिस का भय ?
रविवार कों आठ बजे से मोबाइल बंद बताने वाली पुलिस, अब लाइव इंटरव्यू में आरोपी — सवाल तेज
रायगढ़। उत्तर प्रदेश और बिहार का सबसे प्रमुख पूजा छठ महापर्व को माना जाता है उसी प्रकार वहां पर एक कहावत काफी लोकप्रिय है चोर चोरी से जाए पर सीना जोरी से ना जाए जी हां इसी कहावत को चरितार्थ करता चंद्रकांत को टिल्लू शर्मा ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर ही या फिर यूं कहें कि उनके कार्रवाई पर ही सवालिया निशान लगा दिया है मामला छठ पर्व की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाने वाले आरोपी टिल्लू शर्मा की हिम्मत अब कानून को चुनौती देने तक पहुँच गई है। सोशल मीडिया पर वायरल वॉइस क्लिप में टिल्लू न सिर्फ रायगढ़ पुलिस को ‘मंदबुद्धि’ कहता सुना गया है, बल्कि खुद को तीर्थयात्री बताते हुए गिरफ्तारी से बचने का सार्वजनिक बयान भी दे रहा है।
इस विवाद में नया तथ्य यह है कि यह वॉइस रिकॉर्डिंग कोई गुप्त क्लिप नहीं, बल्कि उसके ही एक साथी द्वारा लिए गए इंटरव्यू का हिस्सा है। क्लिप में टिल्लू खुद लाइव आकर पुलिस को चुनौती देता और अपनी सफाई देता सुना जा सकता है। यह स्थिति बताती है कि वह न सिर्फ फरारी का दावा झुठला रहा है, बल्कि सोशल मीडिया पर खुद को निर्भीक साबित करने और कानून को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है।
दूसरी ओर, जब शहर के सामाजिक प्रतिनिधि कोतवाली पहुँचे थे, तब पुलिस ने आरोपी को फरार बताया था, कहा था कि उसका मोबाइल दो दिन से बंद है और लोकेशन ट्रेस करने की प्रक्रिया चल रही है। समाज को आश्वासन दिया गया था कि आरोपी की तलाश गंभीरता से की जा रही है।
अब जबकि आरोपी स्वयं इंटरव्यू देता घूम रहा है, पूरा शहर पूछ रहा है — फरार आरोपी लाइव इंटरव्यू कैसे दे रहा है? क्या पुलिस को भ्रमित किया गया या पुलिस ही भ्रमित कर रही थी? दोनों स्थिति पुलिस की साख पर चोट हैं।
शहर के सामाजिक संगठनों का कहना है कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले आरोपी को खुलेआम चुनौती देने का अवसर देना गलत संदेश देगा। पुलिस को तत्काल गिरफ्तारी कर कानून की प्रतिष्ठा और समाज के विश्वास को मजबूत करना चाहिए। यह सिर्फ आस्था का मामला नहीं — यह कानून, पुलिस की विश्वसनीयता और सामाजिक अनुशासन का प्रश्न है। पुलिस की दृढ़ कार्रवाई ही इस तनाव को समाप्त कर सकती है।
आरोपी पर निम्न प्रावधान भी लागू हो सकते हैं
- BNS धारा 196: धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना
- BNS धारा 351: भड़काऊ और उत्तेजक बयान
- BNS धारा 353: पुलिस को खुलेआम चुनौती देना व अवमानना स्वरूप व्यवहार
- IT Act प्रावधान: सार्वजनिक मंच पर आस्था-विरोधी और उकसाने वाली सामग्री
कानूनज्ञों के अनुसार, आरोपी का व्यवहार न सिर्फ अपराध है, बल्कि दंड प्रक्रिया की खुली अवमानना भी है। गिरफ्तारी आवश्यक और न्यायसंगत कदम है। सवाल साफ है
पुलिस ने मोबाइल बंद कहा — फिर लाइव इंटरव्यू कैसे?
क्या पुलिस को आरोपी के लोकेशन का वास्तविक पता नहीं था?
क्या गिरफ्तारी में कोई दबाव या राजनीतिक-सामाजिक संरक्षण?
क्या यह देरी आरोपी को जमानत का लाभ दिलाने की कोशिश है?
पुलिस का निष्पक्ष रुख कब सामने आएगा?
समाज का सवाल स्पष्ट — या गिरफ्तारी करें, या मजबूरी बताएं।
विशेष तथ्य का खुलासा
यह वॉइस क्लिप किसी छुपे रिकॉर्डिंग की नहीं, बल्कि आरोपी के एक पत्रकार साथी द्वारा लिए गए इंटरव्यू की है, जिसमें आरोपी खुद लाइव पुलिस को चुनौती देता दिखाई देता है। यानी फरारी का दावा सिर्फ भ्रम फैलाने का हथियार था। यह हरकत दिखाती है कि आरोपी कानून का मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहा है।
कानून बनाम बेहूदगी
छठ पर्व की पवित्रता पर की गई टिप्पणी से उपजा विवाद अब केवल धार्मिक नहीं रहा। अब यह सवाल है कि क्या कानून चलेगा या बेवगुफी ? आरोपी का खुलेआम पुलिस को चुनौती देना केवल व्यक्तिगत दुस्साहस नहीं, बल्कि प्रशासनिक संयम और सामाजिक विश्वास पर चोट है।
जब आरोपी खुद इंटरव्यू देकर पुलिस को ‘मंदबुद्धि’ कहे और शहर को चुनौती दे, तो यह कोई साधारण अपराध नहीं रह जाता — यह सामाजिक अनुशासन और शासन की प्रतिष्ठा का परीक्षण है।
यह वह समय है जब कानून को अपनी ताकत दिखानी चाहिए। पुलिस की कार्रवाई केवल गिरफ्तारी नहीं होगी — यह संदेश होगा कि इस शहर में कानून का राज चलता है, किसी व्यक्ति के प्रभाव या बेहूदगी का नहीं।













