रेडी-टू-ईट : हंगामे के बाद विभाग ने दिया सुप्रीम कोर्ट का हवाला, स्व-सहायता समूहों से निर्माण का काम छिना

छत्तीसगढ़ में चल रही रेडी टू ईट योजना से महिला स्व सहायता समूहों को पूरी तरह से बाहर नहीं किया गया है। वह इसका निर्माण कार्य नहीं करेंगी, पर फूड का परिवहन और वितरण की जिम्मेदारी उनके ही पास रहेगी। इसे बनाने का जिम्मा अब राज्य सरकार ने राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम को सौंप दिया है। महिला एवं बाल विकास विभाग का कहना है कि पोषण आहार की गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए यह निर्णय लिया गया है। पढ़िए पूरी खबर- रायपुर। 22 नवंबर को हुई कैबिनेट बैठक में रेडी-टू-ईट योजना के केन्द्रीकरण का फैसला लिया गया था। इसके बाद मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी। खबर सामने आते ही सबसे पहले कवर्धा में प्रदर्शन शुरू हो गया। स्व सहायता समूह से जुड़ी सैकड़ों महिलाओं ने गुरुवार को कलेक्ट्रेट का घेराव कर दिया। इसके बाद महिलाएं शुक्रवार को मंत्री मोहम्मद अकबर से मिलने के लिए रायपुर पहुंची और वहां पर उनसे मुलाकात कर अपनी मांगे रखीं।

हंगामा बढ़ने पर महिला एवं बाल विकास विभाग ने शुक्रवार को इसे लेकर जानकारी साझा की। बताया गया कि आंगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से महिलाओं और बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए रेडी-टू-ईट पोषण आहार का वितरण किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और फूड सेफ्टी हाइजीन निर्देश 2013 में पूरक पोषण आहार निर्माण में स्वच्छता संबंधी मानक निर्देश दिए गए हैं। ऐसे में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए केंद्रीयकरण किया गया है। विभाग की ओर से बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने हितग्राहियों को दिए जा रहे रेडी टू ईट में निर्धारित ऊर्जा, माइक्रो न्यूट्रीएंट्स (कैलोरी, प्रोटीन, फोलिक एसिड, राइबोफ्लेविन, नाइसीन, कैल्शियम, थायमिन, आयरन, विटामिन ए, बी12, सी एवं डी) होने की बात कही है। साथ ही वह फोर्टिफाइड एवं फाइन मिक्स होना चाहिए। वहीं मानव स्पर्श रहित, स्वचलित मशीन से निर्मित और जीरो संक्रमण वाला होना चाहिए। इससे गुणवत्ता बेहतर रहेगी।

विभाग ने बताया है कि केंद्रीयकृत व्यवस्था लागू होने से खाद्य सामग्री की वैधता अवधि अधिक होगी और उसकी गुणवत्ता बनी रहेगी। आसानी से आहार की गुणवत्ता की मॉनिटरिंग और उस पर नियंत्रण हो सकेगा। जीपीएस ट्रेकिंग सिस्टम के माध्यम से सामग्री की आपूर्ति एवं पैकेजिंग में क्यूआर कोड का उल्लेख होगा। इससे सभी हितग्राहियों को उच्च गुणवत्ता और मानक अनुसार एक समान पूरक पोषण आहार मिलेगा। विभाग ने जानकारी दी है कि केन्द्रीयकृत व्यवस्था के तहत गुजरात राज्य में गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के 3 जिला सहकारी दूग्ध उत्पादक संस्थाओं, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में तेलंगाना फूड्स व मध्यप्रदेश में एमपी एग्रो फूड कार्पोरेशन द्वारा भी स्वचलित मशीनों से निर्मित फोर्टिफाइड एवं माइक्रोन्यूट्रीएंट्स युक्त पोषण आहार हित ग्राहियों को प्रदान किया जा रहा है। आपको बता दें कि राज्य में यह योजना साल 2009 से संचालित है। इसमें प्रदेश के 30 हजार स्व सहायता समूहों की 3 लाख महिलाएं जुड़ी हैं। इसके लिए 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट तय किया गया है। जिसे महिला बाल विकास विभाग के जरिए आंगनवाड़ी केंद्रों के बच्चों के साथ ही अन्य लोगों को दिए जाने वाले रेडी-टू ईट फूड पर खर्च किया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा आंगनवाड़ी केंद्रों में आने वाले बच्चों पर जाता है। फूड में मिलाए जाने वाले खाद्य पदार्थों में गेहूं का आटा, सोयाबीन, सोयाबीन तेल, शक्कर, मूंगफली, रागी और चना शामिल हैं।

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