शिव महापुराण कथा शिव–सती–पार्वती महिमा: जगतजननी के अवतरण से शिव विवाह तक की दिव्य कथा

बेमेतरा:_स्वामी ज्योतिर्मयानंद ने बेमेतरा कृषि उपज मण्डी में गौ प्रतिष्ठा यज्ञ और शिवमहापुराण कथा पर अपने ज्ञानामृत वचनों से उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा शिवमहापुराण में वर्णित शिव और सती की कथा ब्रह्मांडीय शक्ति और दिव्य प्रेम का अद्भुत संगम है। देवी सती, जो जगदम्बा का प्रथम अवतार मानी जाती हैं, जब यज्ञ-अवमानना के कारण देह त्याग करती हैं, तब संसार शोक से भर जाता है। यही समय सृष्टि के नये क्रम का प्रारंभ बनता है—देवी का पुनः अवतरण पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री पार्वती के रूप में होता है। जन्म से ही उनका तप, तेज और शिवभक्ति उन्हें अद्वितीय बनाता है।

ज्योतिर्मयानंद जी नें कहा
पार्वती का शिव-समर्पण और पर्वतराज की शंका का निवारण पुराण में लिखा गया है कि
पार्वती जब शिवजी को वरण करने का प्रण लेती हैं, तब देवतागण उनके तप से प्रसन्न तो होते हैं, पर विवाह की राह सरल नहीं थी। जब स्वयं पार्वती ने शिवजी के समीप जाकर सेवा और साधना से प्रसन्न किया, तब भगवान शिव ने विवाह का विचार अवश्य स्वीकार किया, किंतु पर्वतराज हिमालय के पास स्वयं जाकर वर-मांगने से विनम्रता से मना कर दिया।

इस पर स्वामी ज्योतिर्मयानंद ने कथा विस्तार करते हुए कहा कि यह वचन सुन शिवजी ने कहा — “काल स्वयं उचित मार्ग प्रशस्त करेगा।”
उधर, हिमालय अपनी दिव्य, तपस्वी पुत्री को ऐसे अलौकिक, विरक्त, भस्म-विभूषित योगी के साथ देने में संकोच कर रहे थे। देवताओं ने चिंतित होकर उपाय रचा — क्योंकि वही विवाह संसार के हित और दैत्य-विनाश का आधार था।

स्वामी जी ने कहा देवर्षि नारद समेत अनेक देवगण हिमालय पहुंचकर पार्वती के तप, शिव की महिमा और दोनों के योग से होने वाले सृष्टि-कल्याण को विस्तार से बताते हैं। तब पर्वतराज का हृदय प्रसन्न होकर सहमत हो जाता है।
ऐतिहासिक, अद्वितीय और विराट शिव बारात

सरस्वती जी ने भाव भरे शब्दों में कहा
शिव-पार्वती विवाह का वर्णन संपूर्ण पुराणों में अद्वितीय कहा गया है। शिवजी की बारात ऐसी थी, जैसी न कभी किसी देवता की हुई न किसी मनुष्य की।
इस बारात में—
आकाश लोक के देवगण,पाताल से नागकुल व भैरवगण
पृथ्वी से गंधर्व, यक्ष, सिद्ध, किन्नर,भूत, प्रेत, पिशाच, योगी, तपस्वी,वन्य जीव-जंतु, पशु-पक्षी
सभी लोकों के अनुयायी और भक्त सब सम्मिलित हुए।

स्वामी जी नें कहा ऐसी आलौकिक बारात जो कहीं देखी है ना सुनी गई ,बारात में शक्ति और कल्याणकारी भैरव की गर्जन, अप्सराओं के नृत्य, गंधर्वों के गान और देवताओं की स्तुतियाँ एक साथ गूँज उठीं। ऐसी विराट, अद्भुत और रहस्यमयी बारात ब्रह्मांड के इतिहास में कभी नहीं हुई—न पहले, न बाद में। यही शिव के जगत–बंधन से परे, सर्व-समावेशी स्वरूप का प्रमाण भी है।

स्वामी जी आगे कथा बताते हुए कहते हैं,देवताओं द्वारा जगदम्बा का स्तवन किया गया।जब विवाह का शुभ अवसर आता है, तब देवगण हाथ जोड़कर देवी का स्तवन करते हैं—
“हे जगदम्बे! आप ही देवताओं की माता हैं।”
“आप ही जीवन का सार, शक्ति और मूल आधार हैं।”
“आपकी कृपा से ही दैत्य नाश होगा, धर्म की रक्षा होगी।”
“आप ही जगत जननी, जगत मोहिनी और समस्त ऊर्जा का मूल स्वरूप हैं।”

स्वामी जी कहा भगवत भक्त प्रेमियों देवताओं का यह स्तवन बताता है कि शिव और शक्ति केवल पति-पत्नी नहीं, बल्कि सृष्टि के आधार—चेतना और ऊर्जा, पुरुष और प्रकृति का दिव्य मिलन हैं।
शिवमहापुराण का यह अध्याय हमें सिखाता है कि ब्रह्मांड का संतुलन शिव और शक्ति के योग से ही संभव है—जहाँ शिव हैं स्थिरता, वहीं शक्ति हैं क्रिया। जहां शिव हैं मौन, वहीं शक्ति हैं प्रेरणा। आज कथा स्थल पर मुख्य रूप से श्रीमती नीति अग्रवाल, माधवी शर्मा, मिनू पटेल, वर्षा गौतम, लेखमणी पाण्डेय, गुड्डा गुप्ता, जितेन्द्र शुक्ला, शत्रुघ्न सिंह साहू, प्रांजल गौतम, जय पाण्डेय ,प्रहलाद मिश्रा, हितेंद्र साहू, महेश शर्मा, गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे ।

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