छत्तीसगढ़- पर्यटक की नजर से : सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान मां बम्लेश्वरी का धाम डोंगरगढ़…

छत्तीसगढ़ की माटी खुद में प्रदेश की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, प्राकृतिक संपदाओं को समेटे हुए है. यहां की लोक- कला, जंगल, नदियाँ, संस्कृति, ऐतिहासिक विरासत बेजोड़ है. बेमिसाल बस्तर से शानदार सरगुजा तक छत्तीसगढ़ में पर्यटन की अपार संभावनाएं है, जो एक पर्यटक के तौर पर आप देखना चाहते हैं. हमारी पेशकश के जरिए हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे ही जगहों से आपको रूबरू करा रहे हैं. आज हम आपको दे रहे हैं छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी धाम की जानकारी… 2200 साल पुराना है इतिहास : ऐसी मान्यता है कि 2200 साल पहले डोंगरगढ़ जिसका प्राचीन ग्राम कामाख्या नगरी था. यहां राजा वीरसेन का शासन था. राजा निस्तान थे. संतान की कामना के लिए राजा ने महिष्मती पूरी स्थित शिवजी और भगवती दुर्गा को उपासना की. जिसके फलस्वरूप रानी को एक वर्ष पश्चात पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा वीरसेन ने कामाख्या नगरी में माँ बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया. डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकला और माधवान की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है. इससे जुड़े हालात ऐसे बने कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया. जीतने के बाद राजा विक्रमादित्य ने मां बम्लेश्वरी देवी की आराधना की. देवी प्रकट हुई और विक्रमादित्य माधवानल कामकन्दला के जीवन के साथ ये वरदान भी मांगा कि मां बगुलामुखी अपने जागृत रूप में पहाड़ी में प्रतिष्ठित हो.

1964 में हुई ट्रस्ट स्थापना करीब 22 सौ साल प्राचीन कलचुरी काल में बने इस मंदिर में नवरात्र के दौरान लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. कामाख्या नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है. माँ बम्लेश्वरी का धाम डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी धाम माता का मंदिर करीब 16 सौ फीट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. खैरागढ़ रियासत भूतपूर्व नरेश राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट सौंप दिया था. प्रज्ञागिरी- दर्शनीय बौद्ध तीर्थ मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध एतिहासिक और धार्मिक नगरी डोगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो नंदिर विश्व प्रसिद्ध है. एक मंदिर 16 सौ फीट ऊर्चा पहाड़ी पर स्थित है. जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है. वहीं नीचे स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है. ऊपर पहाड़ी पर मुख्य मंदिर स्थित है. जहां पहुंचने के लिए करीब 11 सीढ़ियां बनी है. वही भक्तों की सुविधा के लिए रोप वे भी है. यात्रियों की सुविधा के लिए रोपवे का निर्माण किया गया है. रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम सात तक चालू रहता है. डोंगरगढ़ शक्तिपीठ के साथ ही प्राकृतिक रूप से कई पर्यटन स्थलों को समेटे हुए है. इन्हीं में से एक है प्रज्ञागिरी पर्वत. इस पर्वत पर भगवान गौतम बुद्ध की 30 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है. महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के मध्य एक दर्शनीय बौद्ध तीर्थ के रूप में स्थापित प्रज्ञागिरि दोनों राज्यों के मध्य बौद्ध धर्म की समरसता का प्रतीक है. सघन वनों से आच्छादित छोटी छोटी डोंगरी से घिरे हुए गढ़- डोंगरगढ़ की पर्वतीय श्रृंखला में कई डोंगर यानि पहाड़ियां हैं. इन्हीं में माँ बम्लेश्वरी की पहाड़ी के उत्तर-पूर्व दिशा में गंगारा डोंगरी है. इस पर्वत पर भगवान गौतम बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा में प्रतिमा स्थापित की गई है. इस पर्वत का नाम प्रज्ञागिरि रखा गया था.

ऐसे पहुंचे डोंगरगढ़ सड़क मार्ग से : डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. वहां जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस या खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था. ट्रेन से : अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते हैं तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़. फ्लाइट से : निकटतम डोंगरगढ़ हवाई अड्डा है रायपुर. जो घरेलू उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है.

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