हां मैं एक हॉकर हूँसुबह की चुप्पी में गूंजती साइकिल की घण्टी



*कार्यालय प्रतिनिधि*

*साइकिल की पहियों में घूमती उम्मीद, मेहनत और विश्वास*
*सुबह चार बजे उठकर सबको शुभ समाचार सुनना एवम गुड मर्निग से अभिवादन करना*
जब सूरज की पहली किरण भी धरती पर नहीं पहुंची होती, जब शहर की सड़कें अभी खाली होती हैं और जब अधिकांश लोग अपनी नींद पूरी कर रहे होते हैं, तभी एक साइकिल की घंटी सुनाई देती है। वह कोई आम आवाज़ नहीं, बल्कि आपके दरवाजे तक जानकारी, जागरूकता और दुनिया की हलचल लाने वाले हॉकर की दस्तक होती है।

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों युवाओं की असली ज़िंदगी की दास्तां है, जो हर सुबह अपने गांव, कस्बे, शहर और प्रदेश के कोने-कोने में अखबार पहुंचाने का काम करते हैं। ये वो लोग हैं, जिनकी मेहनत, समर्पण और अनुशासन के दम पर हर घर तक खबरें पहुंचती हैं, वो भी समय से पहले!

जब आम लोग दौड़ने के लिए मैदान में निकलते हैं, कोई जिम में पसीना बहा रहा होता है, कोई परीक्षा की तैयारी में जुटे होते हैं, कोई पढ़ाई कर रहे होते हैं, कोई गहरी व सुकून की नींद में होते हैं, कोई चाय की चुस्कियों ले रहे होते हैं, कोई ब्रश कर रहा होता है, तभी ये हॉकर साइकिल पर अखबारों का बंडल लादे, शहर के सड़कों पर, गांव की गलियों पर निकल पड़े होते हैं। बारिश की बौछार हो, ठंड की ठिठुरन हो या गर्मी की तपिश, उनकी दिनचर्या कभी नहीं रुकती।

साइकिल की चेन टूट जाना, टायर पंचर हो जाना, ब्रेक फेल होना, इन सबके बावजूद वे अपने पाठकों तक समय पर अखबार पहुंचाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं। देरी होने पर पाठकों की नाराज़गी भी झेलते हैं, पर उनका हौसला नहीं डगमगाता।

ये हॉकर न सिर्फ अखबार पहुंचाते हैं, बल्कि अपने काम के प्रति निष्ठावान रहते हुए पूरे समाज को सूचना से जोड़ते हैं। अखबार बांटने के बाद कई हॉकर स्कूल-कॉलेज जाते हैं, प्रतियोगी परीक्षा में जुट जाते हैं, कुछ मजदूरी के लिए निकल जाते हैं और कुछ अपने भविष्य के सपने को साकार करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। इनमें से कई ऐसे भी होते हैं, जो संघर्ष की सीढ़ियां चढ़ते हुए किसी अखबार, चैनल के संवाददाता, संपादक, सरकारी विभागों में अधिकारी, कर्मचारी बन जाते हैं, यहां तक कि अखबार मालिक तक बन जाने के किस्से हैं। उनका जुनून, उनकी लगन और काम के प्रति ईमानदारी उन्हें आगे बढ़ाती है।

हॉकरों का जीवन सिर्फ मेहनत तक सीमित नहीं होता, वे समाज से भी गहरे रूप से जुड़े होते हैं। इस दौरान उनकी क्षणिक, लेकिन नियमित मुलाकातें जनप्रतिनिधियों, अफसरों, नेताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों, व्यापारियों, डॉक्टरों, वकीलों, इंजीनियरों से होती हैं। वे समाज के हर वर्ग की नब्ज को समझते हैं। यही कारण है कि उनकी नजर में पाठक सिर्फ ग्राहक नहीं, बल्कि एक परिवार का हिस्सा होते हैं।

जब किसी परीक्षा परिणाम का नतीजा देखना हो, खेल, मनोरंजन, राजनीति, प्रशासन, प्रतियोगिता हो यह फिर मौसम व भविष्यफल या निधन की खबर से लेकर शब्द सागर और सोने-चांदी की भाव आदि भी जानने के लिए हॉकर का बेसब्री इंतजार भी करते नहीं थकते!लेकिन सच यह भी है..इन ‘गुमनाम नायकों’ की जिंदगी कभी किसी मंच पर रोशन नहीं होती, पर हर सुबह की पहली खबर उन्हीं की मेहनत का नतीजा होती है। उनके पास कोई बड़ा ओहदा नहीं, कोई सम्मानजनक पद नहीं, लेकिन उनका योगदान किसी भी सम्मान से कम नहीं और इस तरह बिना झिझक ‘हां मैं एक हॉकर हूँ’ कहने में शर्म महसूस किए बिना सुबह की चुप्पी में साइकिल की गूंजती घण्टी से हॉकर की आवाज़ निकलती है.. और साइकिल की पहियों में घूमती उम्मीद, मेहनत और विश्वास उन्हें आगे बढ़ने के लिए हरदम प्रेरित करती है..!

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