
रायगढ़वासियों आज मैं शायद अंतिम बार आपसे बात कर रही हूं आप सोच रहे होंगे अरे! कौन है जो अंतिम बार बात करने की बात कह रही है। क्या किसी का स्थानांतरण हो गया है या कोई बाहर का व्यक्ति वापस जा रहा है या कोई मरणासन्न दशा में हैं। तो मैं आपको बताना चाहती हूं कि हां मैं अब मरणासन्न स्थिति में नहीं हूं बल्कि मर चुकी हूं। शायद जाने से पहले मेरी आत्मा रायगढ़वासियों से बात करना चाहती है। जी हां अब आप कुछ-कुछ समझ रहे होंगे। मैं आपकी देशख्याति स्कूल नटवर स्कूल हूं। जिसकी चिता सजायी जा चुकी है। नेस्तानाबूत करने की व्यवस्था हो चुकी है। मैं तो अजीव हूं। लेकिन रायगढ़ की जीवंतता मेरे अंदर हमेशा रही है। जब मुझे बनाने के लिए, जिले एवं आस-पास के क्षेत्र में शिक्षा का विस्तार करने के लिए, बड़े-बड़े पदों पर स्थानीय लोग जाएं यह सोचकर रायगढ़ रियासत के राजा नटवर सिंह के नाम पर जमीन दी गई और इस संस्कारधानी के देश प्रसिद्ध समाजसेवी सेठ किरोड़ीमल ने इस स्कूल को बनवाया होगा तब सपने में भी उन्होंने नहीं सोचा होगा कि एक दिन इस नटवर स्कूल की अघोषित अर्थी निकलते हुए रायगढ़वासी देखेंगे। मेरे सीने पर कई बड़े-बड़े पदो पर बैठे हुए हजारो-लाखों लोगों की शिक्षा का अवदान समाया हुआ है। कई मजिस्ट्रेट, नामी वकील, नामी खिलाड़ी, नामी व्यापारी, नामी उद्योगपति, नामी डॉक्टर, नामी इंजीनियर, नामी ठेकेदार, नामी आईएएस, नामी पुलिस अधिकारी, नामी राजनेता, नामी पत्रकार आदि कई ऐसे मेरे पुत्र हैं जो मुझसे शिक्षा ग्रहण कर जिले और राज्य का नाम रोशन कर रहे हैं। मुझे ऐसा लगा था कि जब मेरी चिता की तैयारी चल रही थी तो इनमें से कोई तो मुझसे प्राप्त शिक्षा के बदले गुरू दक्षिणा देते हुए मुझे नेस्तानाबूत करने का विरोध करेगा। मैं बहुत सारे नाम कह सकती थी पर उससे भेदभाव झलक जाता। इसलिए बिना नाम कहे यह कहना चाहती हूं कि एक माँ की तरह मेरी छाती का शिक्षारूपी दूध पीकर आज इतने ऊंचे-ऊंचे पायदान पर पहुंच तो गए पर दूध का कर्ज नहीं चुका सके। रायगढ़ शहर में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जहां के दादा-पिता-बेटा ने मुझसे शिक्षारूपी दूध न पिया हो। लेकिन मैं किसके पास अपना रोना रोऊ। अब तो मैं जा रही हूं। मेरे इस दर्द को कोई यह न समझे कि मैं अंग्रेजी माध्यम की स्कूल का विरोध कर रही हूं। आखिर वह भी मेरी बहन ही है पर यह जरूर कहना चाहती हूं कि एक बहन का घर बसाने के लिए दूसरी बहन का घर उजाडऩा जरूरी नहीं था। शासन के पास जमीन की कमी नहीं है और उसने मेरे जीर्णाेद्धार के लिए अंग्रजी स्कूल के नाम पर तीन करोड़ रुपये खर्च कर दिये। शासन चाहती तो इतनी रकम में एक नई स्कूल बनाकर स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल आरंभ कर सकती थी। ऐसे में मेरी बेसमय मौत न होती। मैं भी आनेवाले समय में जिले को शिक्षारूपी दान बांटते रहती। मैं शायद अंतिम बार बात कर रही हूं इसलिए मेरा दर्द बहुत ज्यादा छलक रहा है। मैं ऐसा मानती थी कि रायगढ़ शहर सहित जिले के पूरे निवासी मुझे रायगढ़ की चुनिंदा धरोहरों में से एक प्रमुख धरोहर मानते हैं। और कभी ऐसा मौका आया कि मुझे मिटाने की कोशिश होगी तो प्रत्येक नागरिक जिसने शिक्षा के हवन से एक भी ज्योति मुझसे पायी है उस ज्ञान रूपी ज्योति पाने के बदले वह गलत निर्णय पर लोहा लेने के लिए तैयार रहेगा। पता नहीं मेरी आवाज शासन तक, राजनेता तक, प्रशासन तक, जनता तक, मीडिया तक पहुंचेगी या नहीं लेकिन क्या करूं बहुत ही दु:खी और द्रवित हूं। इसलिए अपनी बात आज पूरे रायगढ़वासियों को अपने आत्मिक मन से कह रही हूं। मेरा शरीर तो किसी अन्य को दे दिया गया है परंतु आत्मा हमेशा जिंदा रहेगी। इस जिले की फिजाओं में भटकते हुए। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि रायगढ़ शहर वासियों को मेरी मौत के लिए जिम्मेदार होते हुए भी क्षमा कर दें। कहने को तो बहुत कुछ हैं परंतु नपुंसक शहर के नपुंसक लोगों को ज्यादा कहने का कोई अर्थ नहीं है। भारतीय संस्कृति में पुर्नजन्म की अवधारणा मानी जाती है इसी आधार पर सोचती हूं कि आने वाले समय में शायद शासन की मति ठीक हो तो वह स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल के लिए पृथक से बिल्डिंग का निर्माण कर मुझे पुर्नजन्म दे दें। यदि ऐसा हुआ तो आपके बीच फिर से आकर शिक्षा दान दे सकूंगी। फिलहाल इसकी उम्मीद बहुत कम नजर आती है। रूंधे गले से और बहते आंसूओं के साथ चिता पर लेटी हुई नटवर हायर सेकेण्डरी स्कूल आप सबसे अंतिम बिदाई ले रही है। आप सभी को मेरा अंतिम प्रणाम, अलविदा रायगढ़ हमेशा के लिए।
आपकी अपनी मृत
नटवर हाई स्कूल
रायगढ़ की तरफ से
रामचन्द्र शर्मा
पूर्व विद्यार्थी
नटवर स्कूल
