
देश भर में लगे लॉकडाउन से महिलाओं की हेल्थ पर निगेटिव प्रभाव : अध्ययन
नयी दिल्ली . भारत में 2020 में कोविड-19 वैश्विक महामारी (global pandemic) के कारण लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन (Lockdown) ने देश में कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया जिससे महिलाओं की पोषण स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला. एक नये अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है. ‘इकोनोमिया पॉलिटिका जर्नल’ पत्रिका में प्रकाशित शोध में दिखा कि भले ही खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं एवं संबद्ध गतिविधियों को लॉकडाउन से छूट दी गई थी लेकिन महिलाओं की खाद्य विविधता – खाद्य समूहों की उपभोग की गई संख्या- 2019 की तुलना में इस अवधि के दौरान घटी थी.
नयी दिल्ली के कृषि एवं पोषण के लिए टाटा-कोर्नेल संस्थान ने पाया कि यह गिरावट मांस, अंडा, सब्जी और फल जैसे खाद्यों के घटे उपभोग के कारण आई है जो सूक्ष्म पोषक तत्वों से युक्त होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य एवं विकास के लिए आवश्यक होते हैं. अध्ययन की सह-लेखक, टीसीआई में शोध अर्थशास्त्री सौम्या गुप्ता ने कहा, “महिलाओं के आहार में वैश्विक महामारी से पहले भी विविध खाद्यों की कमी थी लेकिन कोविड-19 ने स्थिति को और खराब कर दिया.”
उन्होंने कहा, “पोषण संबंधी परिणामों पर वैश्विक महामारी के प्रभाव को देखने वाली किसी भी नीति को लैंगिक पहलु से देखना होगा जो महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट, और अक्सर लगातार बनी रहने वाली कमजोरियों को दर्शाता है.” टीसीआई निदेश प्रभु पिनगली, सहायक निदेशक मैथ्यू अब्राह्म और कंसल्टेंट पायल सेठ समेत अन्य शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा में राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर खाने पर होने वाला खर्च, आहार विविधता एवं अन्य पोषक संकेतों के सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि लॉकडाउन के दौरान आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने के कारण भी महिलाओं पर असमान बोझ पड़ा.
ये केंद्र जो स्तनपान कराने वाली एवं गर्भवती महिलाओं को घर ले जाने के लिए राशन एवं गर्म पका हुआ भोजन उपलब्ध कराते हैं, वे महिलाओं एवं बच्चों के लिए पोषण का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं. सर्वेक्षण में शामिल किए गए 155 घटों के आंकड़े दिखाते हैं कि वैश्विक महामारी के दौरान 72 प्रतिशत पात्र घरों की आगंनवाड़ी सेवाओं तक पहुंच बाधित हो गई. अध्ययन में पाया गया कि बाद में कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव आया, विशेष रूप से गैर-प्रधान खाद्य पदार्थों की कीमतों में. सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने कम खाना खाने की जानकारी दी, जबकि 95 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने कम प्रकार के भोजन का सेवन किया.