
भिलाई. छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय ने गाय पर चार वर्षों तक रिसर्च किया। प्रदेश की गाय को कोसली के नाम से राष्ट्रीय पशु अनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो करनाल ने 36 वां गोवंश नस्ल के नाम पर पंजीकृत किया। जानकारी के मुताबिक इंडिया कैटल 2600 कोसली 03036 और छत्तीसगढ़ राज्य की पहली पंजीकृत नस्ल होने के बाद देशभर में कोसली के नाम से प्रचलित हो गया है। इस नस्ल का नाम कोसली छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक नाम कोसली प्रदेश से पड़ा है। सर्वेक्षण में पाया गया है कि मैदानी भागों में कोसली नस्ल की पशु की संख्या 31.92 लाख है। प्रदेश के मध्य मैदानी भाग में मुख्यत: अन्य पिछड़ा वर्ग के कृषक व पशुपालक दुध, कृषि कार्य और अपनी जरुरतों के आधार पर 3-7 कोसली नस्ल के मवेशी को पालते हैं। कोसली गाय अन्य गायों की अपेक्षा दूध 1 से डेढ़ लीटर ही देती है। इसका पालन भी आसान है। इस वजह से छत्तीसगढ़ के अधिकांश किसान कोसली को अधिक तादात में पालते है। देश भर में इस गाय का नाम कोसली पड़ने पर छत्तीसगढ़ की अलग पहचान बन गई है। इससे छत्तीसगढ़ का रुतबा तो बढ़ा ही है। इसके अलावा देश भर में कोसली की पूछपरख भी बढ़ गई है। इस कोसली गाय का रंग काला, लाल और विभिन्न प्रकार के होते हैं।
ये हैं गाय के 43 नस्ल (1) अमृत महल-कर्नाटक, (2) बच्चौर बिहार, (3) बरगुर- तमिलनाडू ,(4) डांगी -महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश, (5) दयोनी- महाराष्ट्र और कर्नाटक, (6) गयलाव- महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश, (7) गिर – गुजरात, (8) हल्लीकर – कर्नाटक, (9) हरिआना हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान, (10) कंगायम- तमिलनाडु, (11) कांकरेज- गुजरात और राजस्थान, (12) केंकथा- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, (13) खेरिगढ़- उत्तर प्रदेश, (14) खल्लिार महाराष्ट्र और कर्नाटक, (15) कृष्णा वैली- कर्नाटक, (16) मलवी- मध्य प्रदेश, (17) मेवाती- राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश, (18) नागौरी- राजस्थान, (19) निमारी – मध्य प्रदेश, (20) ओंगोल- आंध्र प्रदेश, (21) पोंवार- उत्तर प्रदेश, (22) पूंगानूर-आंध्र प्रदेश, (23) राठी- राजस्थान, (24) रेड कन्धारी- महाराष्ट्र, (25) रेड सिंधी – केवल संगठित खेतों पर, (26) साहीवाल- पंजाब और राजस्थान, (27) सिरी- सक्किीम और पश्चिम बंगाल, (28) थारपारकर- राजस्थान, (29) अम्बलाचेरी-तमिलनाडू, (30) वेचुर-केरल, (31) मोटू -उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश, (32) घुमसरी – उड़ीसा, (33) बन्झिरपुरी-उड़ीसा, (34) खरीआर-उड़ीसा, (35) पुल्लिकुलम-तमिलनाडू , (36) कोसली- छत्तीसगढ़, (37) मल्नाद गद्धिा – कर्नाटका, (38) बिलाही- हरियाणा और चण्डीगढ़, (39) गंगातीरी – उत्तर प्रदेश और बिहार, (40) बदरी- उत्तराखंड, (41) लखीमी- आसाम, (42) लदाखी- जम्मू और कश्मीर, (43) कोंकण कपिला- महाराष्ट्र। ये सभी गाय देशभर के 43 प्रकार के नस्ल हैं।
गोठान व चारागाह की व्यवस्था कोसली गाय के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने गोठान और चारागाह की व्यवस्था किया गया है। गांव में किसानों के पशुधन को संरक्षित करने छत्तीसगढ़ के करीब 15 प्रतिशत से अधिक गांव में यह व्यवस्था है। गोठान में बाड़ लगाकर, पीने के पानी, पशुओं के लिए शेड, चरवाहा की व्यवस्था, सफाई कर्मी भी रखने का प्रावधान है। गोठान में एक स्थान पर घुरूवा बनाकर उसमें बायोगैस संयंत्र लगाने, पशुओं के इलाज की व्यवस्था भी शामिल है। साथ ही चारागाह में भी घेरा किया जाएगा। इस तरह गाय के लिए छत्तीसगढ़ की सरकार काम में जुटी हुई है। रिसर्च में लगे चार वर्ष दुर्ग स्थित कामधेनु विश्वविद्यालय में इसका रिसर्च हुआ था। यह सेंट्रल प्लेन एरिया में किया गया। जिसके तहत छत्तीसगढ़ के भिलाई-दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर, सरगुजा, सुरजपुर, मनेद्रगढ़, बस्तर, जगदलपुर, दंतेवाडा में अलग-अलग स्थानों में टीम चार वर्षो तक घूमती रही। रिसर्च पूरी तरह कंप्लीट होने के बाद इस पूरी रिपोर्ट को नेशनल ब्यूरों ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज करनाल (राष्ट्रीय पशु अनुवंशिकी संसाधन ब्यूरों करना) को भेजा गया। तब वहां से टीम छत्तीसगढ़ अप्रैल वर्ष 2011 को पहुंचकर जांचा परखा और यहां के गाय को कोसली के नाम से प्रसिद्धि मिली। चार वर्षों तक हुआ रिसर्च चार वर्षो कर वश्वि वद्यिालय द्वारा रिसर्च प्रदेश के अलग-अलग जिलों में किया गया। उसके बाद रिपोर्ट की जानकारी नेशनल ब्यूरों ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज को सौंपा गया। छत्तीसगढ़ राज्य के मवेशियों की केवल पंजीकृत नस्ल की छत्तीसगढ़ राज्य के मवेशियों की पहली नस्ल कोसली को 36 वीं नस्ल के रूप में पंजीकृत किया। इनका उपयोग धान की फसल से खरपतवार की सफाई या फसल में वातन के लिए किया जाता है और इसे स्थानीय रूप से बीवाईएएसआई कहा जाता है।