
भागवत कथा के श्रवण से जीव को मिलता है मोक्ष
दिनेश दुबे
आप की आवाज
भागवत कथा के श्रवण से जीव को मिलता है मोक्ष
श्रीमदभागवत कथा में कृष्ण सुदामा चरित्र का किया वर्णन
बेमेतरा—भगवान भाव के भूखे होते हैं, जो प्राणी अपनी अंतर आत्मा से भगवान को पुकारता है। भगवान सदा उसकी रक्षा करते हैं। संसार परमात्मा की ही सत्ता है। इसके बाद भी जीव मूर्खतावश संसार की वस्तुओं को अपना समझ बैठता यह जीव की सबसे बड़ी भूल है। जीव को चाहिए कि वह परमात्मा की सबसे बड़ी सत्ता का अनुभव और चिंतन करते हुए जीवन निर्वाहन करें। ताकि इस माया रूपी संसार में रहते हुए जीव मोक्ष को प्राप्त करें। उक्त बातें धनगांव के तिवारी परिवार में चल रहे सप्तम दिवस की श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कही।
—–निस्वार्थ प्रेम में अमर मूरत है मित्रता—-
कथा व्यास अमर कृष्ण शास्त्री ने सुदामा चरित की कथा में कहां की मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी को देखकर रोते हुए अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें उलाहना दिया कि जब गरीबी में रह रहे थे तो अपने मित्र के पास तो आ सकते थे। लेकिन सुदामा ने मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा। उन्होंने बताया कि सुदामा चरित्र हमें जीवन में आई कठिनाईयों का सामना करने की सीख देता है। सुदामा ने भगवान के पास होते हुए अपने लिए कुछ नहीं मांगा। अर्थात निस्वार्थ समर्पण ही असली मित्रता है। कथा के दौरान परीक्षित मोक्ष व भगवान सुखदेव की विदाई का वर्णन किया गया। कथा के बीच-बीच में भजनों पर श्रद्धालुओं ने नृत्य भी किया। इस दौरान कृष्ण-सुदामा की सजीव झांकी सजाई गई। जिसे देखकर श्रोता भावविभोर हो गए।कथा के विश्राम दिवस पर सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता और आपसी प्रेम का संदेश दिया
—–भागवत कथा के प्रभाव से परीक्षित को हुआ मोक्ष—
श्रंगी ऋषि के श्राप को पूरा करने के लिए तक्षक नामक सांप भेष बदलकर राजा परिक्षित के पास पहुंचकर उन्हें डंस लेते हैं और जहर के प्रभाव से राजा का शरीर जल जाता है और मृत्यु हो जाती है। लेकिन श्री मद् भागवत कथा सुनने के प्रभाव से राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्त होता है। पिता की मृत्यु को देखकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय क्रोधित होकर सर्प नष्ट हेतु आहुतियां यज्ञ में डलवाना शुरू कर देते हैं जिनके प्रभाव से संसार के सभी सर्प यज्ञ कुंडों में भस्म होना शुरू हो जाते हैं तब देवता सहित सभी ऋषि मुनि राजा जनमेजय को समझाते हैं और उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं। आचार्य ने कहा कि कथा के श्रवण प्रवचन करने से जन्मजन्मांतरों के पापों का नाश होता है और विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
—–श्रेष्ठ कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का साधन—-
कथा व्यास अमर कृष्ण शास्त्री ने कथा करते हुए कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं।संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि श्लोक कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेसु कदा चनि:। मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र की लीला का भावपूर्ण वर्णन किया गया। जिसमें भजन’अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है’पर भाव विभोर हो गये।

