
वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देने घर-घर जा रहे आचार्य, आधुनिकता के बीच जगा रहे हैं एकता का भाव
पढ़ने-पढ़ाने के साथ सामाजिक सरोकार भी जरुरी है। भारतीय परिवारों की स्थापित परंपरा आधुनिकता की चकाचौंध में प्रभावित हुई है। वसुधैव कुटुंबकम के भाव को जगाने के लिए सरस्वती शिशु मंदिरों के आचार्य छात्रों के घर जा कर आदर्श परिवार की सीख दे रहे हैं।
रायपुर।। आज वर्तमान समय में बच्चे बाहरी दुनिया से अधिक प्रभावित हो रहे हैं। घर में अच्छे संस्कार दिए जाने के बावजूद बाहरी तत्वों के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। यही वजह है कि आज के बच्चों में संस्कार की कमी देखी जाती है। जितने ही अच्छे स्कूलों में पढ़ या चाहे जितने अच्छे कपड़े पहन ले या कोई मंहगी चीज अपने पास रख लें, संस्कार तो खुद के स्वभाव से आती है और इसके लिए लिए जरूरी है आप दूसरों से बुरी नहीं अच्छी आदतों की सीख लें। जहां आज बच्चों से लेकर बड़ों तक में एकता का अभाव और अपना पराया की छवि दिखने लगी है और लोग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, वहीं एक ऐसे भी व्यक्ति कहें या आचार्य कहें हैं, जो एकता के भाव को बरकरार रखने की प्रयास में लगे हुए हैं।
पढ़ने-पढ़ाने के साथ सामाजिक सरोकार भी जरुरी है। भारतीय परिवारों की स्थापित परंपरा आधुनिकता की चकाचौंध में प्रभावित हुई है। वसुधैव कुटुंबकम के भाव को जगाने के लिए सरस्वती शिशु मंदिरों के आचार्य छात्रों के घर जा कर आदर्श परिवार की सीख दे रहे हैं। एकता का पाठ पढ़ा रहे हैं और संस्कार को फिर से जगाने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि हमारा परिवार ही नहीं देश फिर से एकता का परिचायक बन सके।
सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य संस्कार श्रीवास्तव ने बताया भारतीय परंपरा और संस्कृति के परिपेक्ष्य में अपने नैतिक दायित्व को आचार्य समझते हैं। वे परिवार भाव को मजबूत करने निकल पड़े हैं। आचार्य पेरेंट्स को अनुशासन और आदर्श भारतीय कुटुंब प्रबोधन के कंसेप्ट से अवगत करा रहे हैं। बच्चों के पालन पोषण और संस्कारों के संवर्धन संबंध में जानकारी दी जा रही है। बच्चों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को ध्यान में रखते हुए उनके संस्कार पक्ष को मजबूत किया जाना बहुत जरूरी है। जहां आज लोग एक-दूसरे के लिए बहुत मुश्किल से वक्त निकालते हैं, वहीं ये लोगों के घर-घर जा कर अपने समय दे रहें, ताकि वसुधैव कुटुंबकम फिर से लोगों के मन में रच-बस सके।