आज पुरे देश में परशुराम जयंती मनाई जा रही है। पंचांग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यानी अक्षय तृतीया के दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। हनुमानजी की ही भांति इन्हें भी चिरंजीव होने का आशीर्वाद प्राप्त है।
भगवान शिव ने इनकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर इन्हें फरसा दिया था। फरसा को परशु भी कहा जाता है, इसी वजह से इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। कहा जाता है कि परशुराम अपनी माता-पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे। इसके बाद भी उन्होंने अपनी माता की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या वजह थी…
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, प्रभु परशुराम माता रेणुका तथा ॠषि जमदग्नि की चौथी संतान थे। वे आज्ञाकारी होने के साथ-साथ उग्र स्वभाव के भी थे। प्रभु परशुराम को एक बार उनके पिता ने आज्ञा दी कि वो अपनी मां का वध कर दे। प्रभु परशुराम बहुत आज्ञाकारी पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता के आदेशानुसार तत्काल अपने परशु से अपनी मां का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया। ऐसा देख प्रभु परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र से बहुत खुश हुए तथा प्रभु परशुराम के आग्रह करने पर उनकी मां को पुन: जीवित कर दिया।
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