राज्यउत्सव के मंच पर अनेक राज्यों की सांस्कृतिक झलकी…. नृत्य में प्राकृतिक पारंपरिक रीति रिवाज को दर्शाया

रायपुर। Chhattisgarh Rajyotsava 2022: छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर मनाए जा रहे राज्योत्सव के दूसरे दिन साइंस कालेज मैदान के विशाल मंच पर अनेक राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की पारंपरिक रीतिरिवाज एवं संस्कृति की झलक नृत्य के जरिए प्रस्तुत की गई।

सुबह 11 से लेकर शाम सात बजे तक अनेक राज्यों के कलाकारों ने नृत्य की प्रस्तुति दी। शाम सात से रात्रि 10 बजे तक विदेश से आए आदिवासी कलाकारों ने अपने-अपने देश में प्रसिद्ध नृत्य से समां बांधा।

राजस्थान का चकरी नृत्य

राजस्थान के कंजर जाति की महिलाओं ने 80 कली का घाघरा पहनकर चकरी नृत्य किया। तेज रफ्तार से गोल चक्कर लगाती महिलाओं ने बेहतर संतुलन बनाया। यह नृत्य पहले युद्ध में विजय के अवसर पर किया जाता था। अब मांगलिक उत्सवों में किया जाने लगा है।

गैर घूमरा नृत्य

राजस्थान का एक और नृत्य गैर घूमरा नृत्य जो भील-मीणों द्वारा किया जाता है। अलग-अलग घेरे में पुरुष, महिलाओं ने नृत्य किया। महिलाओं का घेरा घूमरा और पुरुषों का घेरा गैर नाम से जाना जाता है। एक-दूसरे के घेरे को बदलते हुए किया गया नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा।

सिक्किम की तमांग शैली

सिक्किम में तमांग जनजाति के लोगों ने तमांग शैली का नृत्य पेश किया। इसमें उपयोग में लाए जाने वाले वाद्य यंत्रों को भगवान बुद्ध के प्रतीक के रूप में माना जाता है। नृत्य का आरंभ प्रकृति की सुंदरता और कोयल की कूहू-कूहू से होता है। बौद्ध धर्म की आध्यात्मिक परंपराओं की झलक भी दिखाई दी।

ओड़िसा का घुड़का नृत्य

ओड़िसा के कलाकारों ने घुड़का नृत्य की प्रस्तुति दी। घुमंतु जनजाति के सदस्यों ने लकड़ी और चमड़े से बने वाद्ययंत्रों के साथ मनमोहक प्रस्तुति दी। समूह की महिलाओं ने कपटा (साड़ी), हाथों में भथरिया और बदरिया, गले में पैसामाली, भुजाओं में नागमोरी पहना और पुरुषों ने लंगोट (धोती) और सिर में खजूर की पत्ती से बनी टोपी पहनी। घुमंतू जनजाति के लोग नृत्य का प्रदर्शन जंगल से बाहर भ्रमण के दौरान करते हैं।

लद्दाख का बल्की नृत्य

विवाह के अवसर पर वर-वधु पक्ष के लोग बल्की नृत्य करते हैं। विवाह की रस्मों को नृत्य से प्रस्तुत किया। वाद्ययंत्रों की लोकधुन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

मणिपुर का खरिमखरा नृत्य

मणिपुर के कलाकारों ने खरिमखरा नृत्य की प्रस्तुति दी। जनजातीय क्षेत्रों में झूम खेती होती है, झाड़ियों को आग लगाकर साफ किया जाता है, खेती की जमीन तैयार होती है। इसे डांस आफ लाइवलीहुड भी कहा जाता है। नृत्य में दिखाया गया कि कैसे खेती के लिए उपयोगी जमीन चिन्हांकित होती थी, फिर इसे तैयार किया जाता और बीज रोपा जाता है। नृत्य की खास विशेषता रही कि घुटने में पहने हुए आभूषणों से धुन निकाली

असम का बोरो नृत्य

असमिया लोक कलाकारों ने बोरो नृत्य की प्रस्तुति दी। कलाकारों ने गले में मोतियां और बालों में फूलों से साजसज्जा की। लय के साथ कलाकारों ने कृषि संस्कृति पर आधारित असम की लोककलाओं को दर्शकों के सामने जीवंत किया।

अरुणाचल का इगु नृत्य

आत्मा से संवाद का उत्सव है अरुणाचल का लोक नृत्य इगु। इदुमिस्थि जनजाति के लोग मृत्यु उपरांत व्रत करके मृतात्मा से संवाद करते हैं। यह नृत्य केवल सामान्य मृत्यु पर हाेता है। मृतक के स्वजन चार-पांच दिन व्रत रखते हैं और नृत्य के माध्यम से अपनी भावनाएं मृतात्मा से संवाद करते हुए कहते हैं।

असम का बालमफा नृत्य

असम के कलाकारों ने बालमफा नृत्य की प्रस्तुति दी। बंशी की धुन पर आकर्षक वेशभूषा में महिलाओं ने नृत्य पेश किया। लाल, पीला परिधान, गले में मोती की माला, और बालों को रिबन से बांधकर साजसज्जा की गई। खुशी के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है।

महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटा नृत्य

पौराणिक कथाओं में नरसिंह अवतार की कथा आती है जिसमें भगवान विष्णु नरसिंह का रूप लेकर हिरण्यकश्यप का वध करते हैं। यह कथा असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। इसी कथा को आधार बनाकर महाराष्ट्र में सोंगी मुखौटा लोकनृत्य किया जाता है। चैत्र पूर्णिमा पर देवी पूजा से शुरू होता है, होली पर्व के बाद यह नृत्य किया जाता है। दो कलाकार नरसिंह का रूप धारण कर नृत्य करते हैं। अन्य नर्तक काल भैरव और बेताल के मुखौटे पहनते हैं। ढोल, पावरी तथा संबल वाद्य इस नृत्य में प्रमुख रूप में उपयोग किए जाते हैं। पावरी वादक हरे रंग का चोंगा पहनते हैं तथा सिर पर मोर के पंख बांधते हैं।

धनगरी गजा की प्रस्तुति

महाराष्ट्र के एक और धनगरी गजा की प्रस्तुति दी गई। नृत्य में दिखाया कि जब माता पार्वती रूठ गईं तो उन्हें कैसे मनाया गया। उन्हें मनाने के लिए किस तरह से सुंदर नृत्य संगीत की प्रस्तुति दी गई और इसके चलते माता प्रसन्न हो गईं। नृत्य का प्रमुख आकर्षण ध्वज छत्र में है।

नागालैंउ का माकू हिमीशी नृत्य

बिना वाद्य यंत्रों के नागालैंड के लोक कलाकारों ने युद्ध के पश्चात विजय से लौट रही सेनाओं के उत्साह काे प्रदर्शित किया। माकू हिमीशी नृत्य पुरुषों द्वारा शिकार में सफलता मिलने के बाद अथवा लड़ाई में विजय के पश्चात किया जाता है। पारंपरिक अस्त्र शस्त्र से सजे पुरुष जीत की अभिव्यक्ति लोक नृत्य के माध्यम से करते हैं। परिवार की महिलाएं उनका उत्साह बढ़ाने स्वागत में नृत्य करती हैं।

उत्तराखंड का हारूल नृत्य

उत्तराखंड में जौनसार जनजाति महाभारत की कथाओं पर आधारित लोककथाओं का प्रदर्शन नृत्य में किया जाता है। इसमें पांडवों के शौर्य का यशोगान किया जाता है। नृत्य में एक लोक कलाकार ने अपने सिर पर केतली रखकर आग लगाकर चाय तैयार की। इस दृश्य को देखकर दर्शक आश्चर्यचकित रह गए। इसके साथ ही अर्धचंद्राकर गोले में भगवान गणेश की पूजा की गई। साथ ही हाथी पर बैठे व्यक्ति ने शस्त्र चालन का प्रदर्शन किया।

मध्यप्रदेश का शैला गेड़ी नृत्य

मध्यप्रदेश के लोक कलाकारों ने शैला गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी। लोक कलाकार पिरामिड के रूप में उठे तो खूब तालियां बजी। महिला नर्तकों के सिर में एक के बाद एक घड़े थे और उनके ऊपर दीपक। अद्भुत संतुलन कलाकारों ने दिखाया। साथ ही इन लोककलाकारों ने धुरवा नृत्य भी किया।

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