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बिलासपुर सिम्स की बड़ी उपलब्धि, सिकलसेल जांच के साथ अब हो सकेगा जीन परीक्षण

वर्तमान में सिम्स में केवल सिकलिंग के लिए स्क्रीनिंग परीक्षण होता रहा है। जिससे सिकलसेल है कि नहीं, इसकी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाती थी। सिकलसेल है कि नहीं यह जानने के लिए निजी अस्पताल का रुख करना पड़ता था, लेकिन अब इस सहयोग के बाद सिकलसेल रोग की पुष्टि भी सिम्स में की जा सकेगी। इससे मरीजों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं मिलेंगी।

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के साथ बिलासपुर को स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धी मिली है। भारत सरकार के उपक्रम सेंटर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी हैदराबाद से सिम्स (छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान) का एमओयू हुआ है। इस एमओयू पर हस्ताक्षर करने के साथ अब छत्तीसगढ़ के सिकलसेल रोगियों का बेहतर इलाज होगा। इसके साथ ही सिकलसेल रोग का जीन परीक्षण हो सकेगा। इससे छत्तीसगढ़ में सिकलसेल के लक्षण व होने वाले अन्य तकलीफों पर शोध होगा। इस शोध के आधार पर मरीजों की तकलीफों दूर करने के साथ ही सिकलसेल को पूरी तरह से खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।

छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (सिम्स), बिलासपुर और सेंटर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी हैदराबाद के बीच सिकलसेल रोग के जीन परीक्षण और सिकलसेल रोगियों की जीन परामर्श के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ है। इसमे हैदराबाद के प्रमुख विज्ञानी और जेसी बोस फेलोशिप डा. गिरिराज चांडक ने सिम्स का दौरा कर एमओयू पर हस्ताक्षर किए। सिम्स की ओर से डीन डा. कमल किशोर सहारे ने हस्ताक्षर किया।

जांच होगी पूरी तरह से निशुल्क

सिकलसेल जांच के लिए निजी सेंटर में 700 रुपये तक खर्च करना पड़ता है। इसी वजह से आर्थिक रूप से कमजोर लोग यह जांच नहीं करा पाते हैं। लेकिन अब यह जांच पूरी तरह से निश्शुल्क होगी। अब तक मरीजों को जीन परीक्षण के लिए अन्य शहरों में जाना पड़ता था, लेकिन यह सुविधा भी आने वाले दिनों में सिम्स में उपलब्ध होगी।

स्थापित होगा अत्याधुनिक आनुवंशिक प्रयोगशाला

सीसीएमएस हैदराबाद अब सिम्स के बायोकैमिस्ट्री विभाग में एक अत्याधुनिक आनुवंशिक प्रयोगशाला स्थापित करेगा। इसमें पीसीआर (पालीमरेज़ चेन रिएक्शन), जेल डाक्यूमेंटिशन सिस्टम और अन्य उन्नत उपकरण शामिल होंगे। यह प्रयोगशाला न केवल सिकलसेल जीन परीक्षण के लिए बल्कि अन्य जीनोमिक्स और बायोटेक्नोलाजी संबंधित अनुसंधानों के लिए भी उपयोगी होगी। इस प्रयास में डीन डा़ केके सहारे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने इस एमओयू को संभव बनाया।

भविष्य में होंगे बड़े अनुसंधान

सिम्स और सीसीएमबी ने मिलकर भविष्य में और भी बड़े अनुसंधान प्रस्तावों के लिए सहयोग करने का निर्णय लिया है, जो मल्टीसेंट्रिक अनुसंधानों को बढ़ावा देगा। इस एमओयू के माध्यम से सिम्स में जल्द ही एचपीएलसी तकनीक को भी लागू किया जाएगा। इससे अनुसंधान और चिकित्सा सेवाओं में और भी सुधार होगा। यह समझौता निश्चित रूप से राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित करेगा और सिकलसेल रोग से प्रभावित लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा।

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