
एक सिटी बस में धीरे-धीरे लोग बैठ रहे हैं। कंडक्टर छोटे से लाउडस्पीकर में आवाज दे रहा है- नगर घड़ी, पचपेढ़ी नाका, भाठागांव बस स्टैंड जाने वाले यात्रियों के लिए सिटी बस थोड़ी ही देर में छूटेगी। थोड़ी देर करते-करते बस छूटी 1.35 बजे। खचाखच भरने के बाद ही इसे रवाना किया गया। कंडक्टर ने टिकट काटना शुरू किया। कहीं का किराया 10 रुपए लिया तो कहीं का 20 रुपए। महिलाएं कहने लगीं- यह तो ज्यादा है, इतना तो आटो में लगता है। इससे अच्छा आटो में नहीं चले जाते…।
बस चलती-रुकती रही और नगरघड़ी में भीड़ कम हुई तो कंडक्टर उतरकर फिर आवाज लगाने लगा… भाठागांव, एमएमआई…। जहां स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के स्टापेज बने हैं, वहां बस रुकती ही नहीं दिखी। लगभग डेढ़ घंटे के सफर में ऐसा ही नजारा बार-बार इस सिटी बस में होता रहा। यह दृश्य ही साबित कर रहा है कि रायपुर में सिटी बसों का कोई सिस्टम नहीं है। न टाइम फिक्स है और न ही कोई रेट। कंडक्टर कहते हैं कि बस भरती है तब छोड़ते हैं। दिन में तीन-चार चक्कर लगा लेते हैं।
न सूचना न कोई बताने वाला
समझा जा सकता है कि कोई सिस्टम होता तो लोगों को एक फिक्स जगह पर सिटी बस का इंतजार करते हुए पाया जा सकता था। एक स्टापेज पर बस के पहुंचने का समय होता। कौन सी बस कितने बजे जाती है, इसकी सूचना बस प्रस्थान करने के निर्धारित स्थान रेलवे स्टेशन पर दी जाती। ना तो कोई सूचना देने वाला है और ना ही कोई यह बताने वाला कि िकस रूट के लिए कितनी बसें, कब-कब जाएंगी। मामला पूरी तरह भगवान भरोसे है। बस के भरने के बाद छूटने के समय जो पहुंच गया, उसको सिटी बस मिल गई, वरना निजी टैक्सी या आटो का ही सहारा लेना होगा। रायपुर शहर की इस सबसे बड़ी जरूरत को इसलिए आसानी से समझा जा सकता है कि शहर की सड़कों पर निजी वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है।
दरअसल, रायपुर शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पर केवल खानापूर्ति हो रही है। यहां का पब्लिक ट्रांसपोर्ट दयनीय स्थिति में है। कोरोना के पहले भी और उसके बाद भी। रायपुर में सिटी बसें केवल और केवल दिखावे के लिए चल रही हैं। लोगों को वैसी परिवहन सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं जिससे राहत मिल सके। सरकारी रिपोर्ट में आकलन किया गया था कि शहर में 250 से अधिक सिटी बसें चलाए जाने की जरूरत है। जरूरत के हिसाब से यह तो उल्टी चाल हो गई। शहर की आबादी अब 18 लाख से पार हो चुकी है। बाहर से आने वाले लोगों को जोड़ लिया जाए तो यह 20 लाख से अधिक होने जा रही है। ऐसे में सिटी बसों की संख्या बढ़ने के बजाए उल्टा घटती जा रही है।
इंदौर-भोपाल से काफी पीछे हो गए
छत्तीसगढ़ से लगे दो प्रमुख शहर भोपाल और इंदौर की तुलना में देखें तो रायपुर शहर काफी पीछे है। इस समय भोपाल में करीब 250 बसें चल रही हैं। इंदौर में बीआरटीएस की 80 एयर कंडीशनर मिलाकर कुल 430 बसें दौड़ रही हैं। इंदौर और भोपाल दोनों ही शहरों में इस समय मेट्रो ट्रेन के पिलर बनने का काम भी शुरू हो गया है।
कारण… कांसेप्ट ही फेल|रायपुर में सिटी बस का कांसेप्ट ही लगभग फेल है। अभी 100 बसें मंत्रालयीन कर्मचारियों के लिए लगाई गई हैं। कोविड के पहले 67 बसें चल रहीं थीं, अब 33 ही चलाई जा रही हैं। जो बची हैं वो कंडम हो रही हैं।
समाधान… संख्या बढ़ानी होगी| बसों की संख्या बढ़ाकर, टाइमिंग और रूट फिक्स करके यात्री सुविधाएं बढ़ाई जा सकती हैं। प्राइवेट आटो का भी सिस्टम नहीं है। उन्हीं प्रमुख कालोनियों और सड़कों पर आटो मिलेंगे, जो बस स्टैंड या स्टेशन के मार्ग में हैं।
इन रूट पर प्रस्तावित
रेलवे स्टेशन से खरोरा, भानसोज, भाठागांव, कौशल्या मंदिर, उरला, और सिलयारी, दुर्ग से रायपुर एयरपोर्ट, राज टाकीज से खैरखूट।
मेयर ने कहा- जिम्मेदार कहते हैं- 9 इलेक्ट्रिक बसों से बढ़ेगी संख्या
कोविड में प्रभावित शहर का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम वापस शुरू किया है। सेवा को सुचारु बनाने के प्रावधान किए हैं, लेकिन टैक्सी और आटो वाले व्यवधान उत्पन्न करते हैं। बसों की टाइमिंग और रेट की सूचना पटि्टयां निकाल देते हैं। हालांकि जल्दी ही 9 इलेक्ट्रिक बसों की खरीदी करने वाले हैं। इनसे शहर में संख्या बढ़ेगी। सिटी बस की मानीटरिंग का सिस्टम भी बना रहे हैं।
मेट्रो-मोनो रेल भी फाइलों में
शहर की जरूरत को देखते हुए पिछली सरकार ने 2008 में रायपुर में मेट्रो ट्रेन चलाने का वादा किया था। उसके बाद मोनो रेल चलाने के बारे में भी विचार हुआ। लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहतर करने की दिशा में दोनों ही मामले फाइलों से बाहर नहीं आ पाए।