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किसान आंदोलन को तेज करने का प्रयास, आज धिक्कार दिवस मना रहे किसान

नयी दिल्ली । कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसान संगठन का आंदोलन 31वें दिन भी जारी है । किसान संगठन की ओर से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है ।इस बीच सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया है। संयुक्त किसान मोर्चा की आज बैठक होने वाली है जिसमे सरकार की ओर से आए बातचीत के प्रस्ताव तथा अन्य मुद्दों पर चर्चा की जाएगी ।

किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का राजधानी में आना शुरु हो गया है । ये लोग पंजाब , हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कई अन्य राज्यों से आए रहे हैं । भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने सभी इकाईयों से 26 दिसम्बर को जब दिल्ली के विरोध का एक माह पूरा हो रहा है ‘धिक्कार दिवस’ तथा ‘अम्बानी, अडानी की सेवा व उत्पादों के बहिष्कार’ के रूप में कारपोरेट विरोध दिवस मनाने की अपील की।

सरकार का धिक्कार उसकी संवेदनहीनता और किसानों की पिछले सात माह के विरोध और ठंड में एक माह के दिल्ली धरने के बावजूद मांगें न मानने के लिए किया जा रहा है। संगठन ने आरोप लगाया है कि सरकार ‘तीन कृषि कानून’ व ‘बिजली बिल 2020’ को रद्द करने की किसानों की मांग को हल नहीं करना चाहती।

आईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा कि सरकार का दावा कि वह खुले मन से सहानुभूतिपूर्वक वार्ता कर रही है, एक छलावा है। उसका दिमाग पूरी तरह से बंद है और कानूनों में कुछ सुधारों पर अड़ा हुआ है। वह देश के लोगों को धोखा और किसान आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है। उसकी योजना है कि यह दिखा कर कि किसान वार्ता के लिए नहीं आ रहे, वह किसानों को हतोत्साहित कर दे, विफल हो जाएगी। किसान नेताओं ने कभी भी वार्ता के लिए मना नहीं किया। वे किसी भी तरह की जल्दी में नहीं हैं और कानून वापस कराकर ही घर जाएंगे।

चौबीस दिसम्बर को सरकार के पत्र में तीन दिसम्बर की वार्ता में चिन्हित मुद्दों’ का बार-बार हवाला है, जिन्हें सरकार कहती है, उसने हल कर दिया है और वह उन ‘अन्य मुद्दो’ की मांग कर रही है, जिन पर किसान चर्चा करना चाहते हैं। एआईकेएससीसी ने कहा है कि किसान यूनियनों के जवाब में उन्होंने जोर दिया था कि सरकार ने ही कानून की धारावार आपत्तियों की मांग उठाई थी। इन्हें चिन्हित करने के साथ किसान नेताओं ने सपष्ट कहा था कि इन कानूनों के तहत ये धाराएं किसानों की जमीन व बाजार की सुरक्षा पर हमला करती हैं और कारपोरेट एवं विदेशी कम्पनियों द्वारा खेती के बाजार में प्रवेश की सेवा करती हैं। नीतिगत तौर पर दृष्टिकोण, मकसद और संवैधानिकता के आधार पर ये अस्वीकार हैं , लेकिन सरकार ने जानबूझकर इसे नजरंदाज किया।

जाहिर है कि पिछले सात माह से चल रहे संघर्ष, जिसमें दो लाख से अधिक किसान पिछले 30 दिन से अनिश्चित धरने पर बैठे हैं, की समस्या को हल करने को सरकार राजी नहीं है। चारो धरना स्थलों की ताकत बढ़ रही है और कई महीनों की तैयारी करके किसान आए हैं। आस-पड़ोस के क्षेत्रों से और दूर-दराज के राज्यों से लोगों की भागीदारी बढ़ रही है। आज 1000 किसानों का जत्था महाराष्ट्र से शाहजहापुर पहंचा है, जबकि 1000 से ज्यादा उत्तराखंड के किसान गाजीपुर की ओर चल दिये हैं। दो सौ से ज्यादा जिलों में नियमित विरोध और स्थायी धरने चल रहे हैं।

एआईकेएससीसी ने सरकार के अड़ियल रवैये की कड़ी निन्दा की है और कहा है कि सरकार किसानों के भविष्य और जीवित रहने के प्रति संवेदनहीन है तथा ठंड के लिए उनकी पीड़ा के प्रति भी । एआईकेएससीसी ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी सरकार द्वारा किये जा रहे दमन की निन्दा की है। हरियाणा के 13 किसानों द्वारा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध करने के लिए उन पर 307 का मामला दर्ज किया गया है, जो वास्तविक विरोध को दबाने के लिए किया गया है। इससे विरोध और बढ़ेगा।

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