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रहस्यमयी अघोर परंपरा: साधना, जीवनशैली और समाज की भ्रांतियां

महाकुंभ के सेक्टर 19 में अघोरी शिविर का दृश्य अनूठा और रहस्यमयी है। शरीर पर भस्म, गले में रुद्राक्ष की माला, काले वस्त्र, सिर पर काले कपड़े की पगड़ी, और लाल-लाल आंखों वाले अघोरी साधु यहां आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। अघोरियों की दुनिया को लेकर समाज में कई भ्रांतियां और जिज्ञासाएं हैं। इस गूढ़ परंपरा को समझने के लिए काठमांडू स्थित अघोरी आश्रम के प्रमुख भोलानाथ और भारतीय अघोर अखाड़ा के महासचिव पृथ्वीनाथ से विशेष चर्चा की गई।

अघोर परंपरा क्या है?

अघोर एक तंत्र, साधना और विचारधारा है, जो साधक को सांसारिक मोह और भयों से मुक्त करने की प्रक्रिया सिखाती है। अघोरी बनने के लिए तीन वर्षों तक आश्रम में सेवा करनी होती है, इसके बाद गुरु की अनुमति से ही दीक्षा मिलती है।

क्या अघोरी नरबलि देते हैं?

अघोर परंपरा को लेकर समाज में कई भ्रांतियां हैं। अघोर पंथ में बलि प्रथा का उल्लेख है, लेकिन इसका स्वरूप महज प्रतीकात्मक होता है। साधना के दौरान एक बूंद रक्त चढ़ाने की परंपरा रही है, लेकिन मानव बलि जैसी कोई प्रथा नहीं है।

श्मशान साधना का रहस्य

अघोरी साधना तीन प्रकार की होती है—श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना। शव साधना के दौरान अघोरी मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा अर्पित करते हैं। यह साधनाएं आम लोगों की पहुंच से दूर होती हैं और रहस्य से भरी होती हैं।

क्या अघोरी जलते शव का मांस खाते हैं?

अघोरियों की साधना में इस प्रकार की प्रथाएं तांत्रिक प्रक्रियाओं का हिस्सा हो सकती हैं, जिनका उद्देश्य सांसारिक मोह और भय को समाप्त करना है। वे मानते हैं कि सब कुछ शिव है और मृत्यु व जीवन के बीच कोई भेद नहीं है।

क्या अघोरी काला जादू करते हैं?

अघोरी जीवन का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और शिव तत्व की प्राप्ति है। वे किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि सभी भेदभावों से मुक्त होकर साधना करते हैं। अघोर पंथ में धर्म और जाति का कोई बंधन नहीं है।

अघोरी क्यों पहनते हैं काले वस्त्र?

काले वस्त्र और भस्म, मृत्यु को स्वीकार करने और सांसारिक मोह से अलग होने का प्रतीक हैं। अघोरी साधु समाज के सामान्य नियमों से भिन्न जीवनशैली अपनाते हैं।

अघोरी साधना के प्रमुख तत्व

  • साधना स्थल: श्मशान घाट, निर्जन स्थान
  • प्रमुख प्रतीक: चिता भस्म, मानव खोपड़ी, काले वस्त्र
  • समाज से संबंध: अकेले साधना, समाज से दूरी
  • उद्देश्य: मृत्यु और जीवन के द्वैत को समाप्त करना

अघोरी बनने की प्रक्रिया

अघोरी बनने के लिए शिष्य को गुरु की शरण में रहकर तीन चरणों—हिरित दीक्षा, शिरित दीक्षा और रंभत दीक्षा—से गुजरना पड़ता है। अंतिम चरण में शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंपना होता है।

निष्कर्ष

अघोरी साधु अपनी साधना से जीवन और मृत्यु के भेद को मिटाने की कोशिश करते हैं। समाज में उनके बारे में कई भ्रांतियां प्रचलित हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। उनकी साधना को समझने और सम्मान देने से समाज में सही दृष्टिकोण विकसित हो सकता है।

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