पामेड़: नक्सलियों की राजधानी से विकास की राह पर अग्रसर

तीन दशक बाद गूंजी यात्री बसों की आवाज, सड़कों से जुड़ा सीमावर्ती गांव

बीजापुर जिले का पामेड़ गांव, जिसे कभी नक्सलियों की राजधानी के रूप में जाना जाता था, अब विकास की नई कहानी लिख रहा है। सुरक्षा बलों के सतत प्रयास और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से यह इलाका अब खून-खराबे के बजाय विकास और बदलाव का गवाह बन रहा है।

नक्सल प्रभाव से उभरता पामेड़, यात्री बस सेवा शुरू

दक्षिण बस्तर का जिक्र आते ही कभी हिंसा, गोलियों की गूंज और ग्रामीणों के मन में खौफ की तस्वीर उभरती थी। लेकिन अब वही इलाका पुलिस अभियान और विकास कार्यों के चलते बदल रहा है। नक्सल प्रभाव के कारण जहां दोपहिया वाहन तक नहीं दिखते थे, वहां अब 30 वर्षों के बाद यात्री बसों का संचालन शुरू हो गया है।

बीजापुर-तेलंगाना बॉर्डर पर बसे पामेड़ में बदलाव की बयार

पामेड़ न सिर्फ बीजापुर जिले का अंतिम गांव है, बल्कि यह तेलंगाना सीमा से भी सटा हुआ है और सात पंचायतों को जोड़ने का कार्य करता है। बीते चार महीनों में यहां तेजी से विकास कार्य हुए हैं, जिसमें सड़क निर्माण, सुरक्षा कैंप की स्थापना और बुनियादी सुविधाओं का विस्तार शामिल है। यात्री बस सेवा शुरू होने से अब ग्रामीणों को तेलंगाना के रास्ते से होकर आने-जाने की जरूरत नहीं रही। वे सीधे बीजापुर से पामेड़ तक सफर कर सकते हैं।

ऐसे बनी नक्सलियों की राजधानी, अब बदल रहा है परिदृश्य

आजादी के बाद पामेड़ इलाके में सड़कें तो थीं, लेकिन वाहनों की आवाजाही नगण्य थी। इसी कारण धीरे-धीरे नक्सलियों ने अपनी पैठ बना ली और इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया। लगातार नक्सली घटनाओं के कारण यह इलाका ‘नक्सल राजधानी’ कहा जाने लगा। लेकिन अब, सरकार और सुरक्षा बलों के संयुक्त प्रयासों से हालात बदल रहे हैं। पहले कैंप स्थापित किए गए, फिर सड़कों का जाल बिछाया गया और अब यात्री बस सेवा शुरू हो गई है।

यात्री बस सेवा से ग्रामीणों को मिली राहत

बीजापुर से पामेड़ तक बस सेवा की शुरुआत हुई है, जो आवापल्ली, बासागुड़ा, तररेम, चिन्नागेल्लूर, गुंडेम, कोंडापल्ली, जीडपल्ली, करवगट्टा और धर्माराम होते हुए गुजरती है। अब ग्रामीणों को आने-जाने में किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता, जिससे व्यापार और अन्य गतिविधियां भी तेजी से बढ़ रही हैं।

50 वर्षों बाद बुनियादी सुविधाओं का विस्तार

जहां कभी सुरक्षा बलों को वेतन और आवश्यक सामग्री हेलीकॉप्टर से भेजनी पड़ती थी, वहीं अब सड़क और परिवहन सुविधाओं के चलते यह कठिनाई खत्म हो चुकी है। आधार कार्ड, राशन कार्ड और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की सुविधाएं भी अब यहां उपलब्ध हैं। मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ने से ग्रामीण अपने परिजनों से जुड़ पा रहे हैं।

जवानों की कड़ी मेहनत से संभव हुआ बदलाव

विकास कार्यों का सबसे बड़ा श्रेय उन जवानों को जाता है, जो दिन-रात इस क्षेत्र में तैनात रहकर लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रयासरत हैं। जिन इलाकों में पहले दोपहिया वाहन तक चलाना मुश्किल था, वहां अब चारपहिया वाहन और बसें दौड़ रही हैं। 50 वर्षों तक जिन सुविधाओं का इंतजार था, वे अब तेजी से ग्रामीणों तक पहुंच रही हैं।

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