
रायगढ़ शहर में गरीबों को अपना घर देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाए गए मकान अब खुद ही परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं। नगर निगम क्षेत्र में बनाए गए 1031 मकानों में से 552 मकान अभी भी खाली पड़े हैं। पिछले पाँच महीनों से हर महीने लॉटरी की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन आवेदन के बावजूद केवल 10 प्रतिशत लोगों को ही मकान आवंटित हो सका है।
अधूरे आवेदन और जर्जर होते भवन
योजना के तहत 964 मकानों के लिए 500 से अधिक आवेदन आए थे, लेकिन दस्तावेज़ अधूरे होने और पात्रता में अड़चन के कारण बड़ी संख्या में आवेदन निरस्त कर दिए गए। इस बीच भाटिया वाटिका, कौह्मकुंडा और बड़े अतरमुड़ा जैसी कॉलोनियों में बनाए गए भवन आवंटन के इंतज़ार में धीरे-धीरे जर्जर होने लगे हैं।
इसी तरह इंदिरा विहार कॉलोनी में बने 156 फ्लैट लंबे समय तक खाली पड़े थे। लेकिन अब मरीन ड्राइव परियोजना से विस्थापित 100 से अधिक परिवारों को यहां शिफ्ट किए जाने के बाद यह कॉलोनी लगभग भर चुकी है।
किस्तों का बोझ बना बड़ी बाधा
“मोर मकान मोर आस” योजना में आवेदन तो लगातार आ रहे हैं लेकिन भुगतान की शर्तें गरीब परिवारों के लिए भारी साबित हो रही हैं। बीपीएल परिवारों को 40,000 रुपये डाउन पेमेंट के रूप में देना होता है, जिसके बाद बाकी राशि 10 किस्तों में या बैंक लोन के माध्यम से चुकानी पड़ती है। इसमें मासिक किस्त 5,000 से 10,000 रुपये तक पहुँच जाती है। अधिकांश आवेदकों की मासिक आय 10,000–12,000 रुपये होने के कारण वे किस्त लेने से पीछे हट रहे हैं।
पुराने निवासी ही होंगे पात्र
योजना के तहत केवल वे लोग पात्र हैं जो 2015 से पहले रायगढ़ में रह रहे हों और जिनके पास अपनी जमीन न हो। सरकारी निवास प्रमाणपत्र अनिवार्य होने से बाहर से आकर बसे किराएदार और नए निवासी आवंटन से वंचित हैं।
निगम का पक्ष
आवास शाखा प्रभारी ऋषि राठौर ने बताया कि हर महीने आवेदन मंगा कर लॉटरी की जाती है, लेकिन पात्रता की कमी और फाइनेंस संबंधी दिक्कतों के कारण आवंटन की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि खाली मकानों की मरम्मत करवाने के बाद ही उन्हें दिया जा रहा है, लेकिन कई जगह भवन दोबारा खराब भी हो रहे हैं।












