
सागर। मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां भाजपा के पूर्व विधायक हरवंश सिंह राठौर के बंगले में पिछले 60 वर्षों से एक निजी चिड़ियाघर संचालित किया जा रहा था। यह चिड़ियाघर इतना पुराना है कि स्थानीय लोग और स्कूली बच्चे इसे घूमने जाया करते थे। हालांकि, यह पूरी तरह अवैध था, लेकिन वन विभाग की अनदेखी के कारण इसे कभी बंद नहीं किया गया।
आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद हुआ खुलासा
बंडा विधानसभा से भाजपा के पूर्व विधायक रहे हरवंश सिंह राठौर के बंगले पर आयकर विभाग ने 5 जनवरी को सुबह 8 बजे छापा मारा। यह कार्रवाई तीन दिन तक चली। जब टीम लौटी तो उसने वन विभाग को सूचित किया कि बंगले में मगरमच्छ सहित कई वन्य जीव पाले जा रहे हैं।
इसके बाद वन विभाग हरकत में आया और 5 व 6 जनवरी को चार मगरमच्छों और कुछ बंदरों को बंगले से निकालकर अभयारण्य में छोड़ा। हालांकि, निजी चिड़ियाघर में अब भी कई प्रजातियों के पक्षी मौजूद हैं, लेकिन अभी तक पूर्व विधायक के खिलाफ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।
60 साल से चल रहा था अवैध चिड़ियाघर, वन विभाग ने साधी थी चुप्पी
जानकारी के अनुसार, राठौर परिवार मूलत: तेंदूपत्ता ठेकेदारी और बीड़ी व्यवसाय से जुड़ा है। पूर्व विधायक के दादा दुलीचंद राठौर ने 1964-65 में अपने बंगले में यह निजी चिड़ियाघर स्थापित किया था। इसमें मगरमच्छ, हिरण, चीतल और विभिन्न प्रजातियों के पक्षी रखे गए थे।
यह चिड़ियाघर शहर में पर्यटन स्थल की तरह लोकप्रिय हो गया था। स्कूली बच्चों के भ्रमण के लिए इसे उपयोग में लाया जाता था, लेकिन वन विभाग ने इस अवैध गतिविधि को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
धार्मिक कारणों से पाले गए मगरमच्छ?
स्थानीय लोगों का कहना है कि राठौर परिवार ने धार्मिक कारणों से मगरमच्छों को पाला था। जब वन विभाग की टीम उन्हें पकड़ने पहुंची तो परिवार के सदस्यों ने उनकी पूजा की।
गौरतलब है कि जिस तालाब में मगरमच्छ रखे गए थे, उसके ऊपर एक गंगा मंदिर स्थित है, जिसे “कांच मंदिर” भी कहा जाता है।
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज क्यों नहीं?
भोपाल के वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने मगरमच्छ को रेड लिस्ट में असुरक्षित प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है, जबकि घड़ियाल को गंभीर रूप से लुप्तप्राय श्रेणी में रखा गया है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत मगरमच्छों और अन्य संरक्षित प्रजातियों को पालना गैरकानूनी है। यदि कोई व्यक्ति चिड़ियाघर संचालित करना चाहता है, तो उसे केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से अनुमति लेनी होती है।
अवैध रूप से निजी चिड़ियाघर चलाने पर कानून के तहत सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है, जो अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।
अब सवाल यह उठता है कि वन विभाग ने इतने वर्षों तक इस अवैध चिड़ियाघर को क्यों नजरअंदाज किया और क्या पूर्व विधायक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी?