मामला पहुंचा हाईकोर्ट, एसडीएम के पत्रों को कचरे में फेंक रही एनटीपीसी लारा
देश की अग्रणी सरकारी बिजली निर्माता कंपनी एनटीपीसी लारा के जब से खुलने की सुगबुगाहट हुई थी तब से आज पर्यंत तक जमीन, पुनर्वास और नौकरी को लेकर विवाद जारी है। इन सब से यहां के अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि शुरुआती दौर में जमीन घोटाले को अंजाम देने वाले 2 दर्जन से अधिक अधिकारियों को लारा से अन्यत्र भेज दिया गया।
एनटीपीसी लारा आम जनता के साथ किस तरह से धोखाधड़ी करती है इसका ताजा उदाहरण पुसौर ब्लॉक के झीलगीटार से विस्थापित विवेक श्रीवास्तव के प्रकरण में देखने को मिल रहा है।
ग्राम झीलगीटार निवासी विवेक श्रीवास्तव की भूमि खसरा नंबर 79/ 5 रकबा 0.073 हेक्टेयर का अधिग्रहण एनटीपीसी लारा द्वारा दशकों पूर्व कर लिया गया लेकिन पुनर्वास (बोनस ) राशि के भुगतान के लिए लगातार टालमटोल किया जा रहा है। जबकि भू अर्जन अधिकारी ने स्वयं अनेकों पत्र लिखकर एनटीपीसी लारा को निर्देशित किया है की भूमि स्वामी विवेक श्रीवास्तव को बोनस रकम का भुगतान कर दिया जाए। लेकिन एनटीपीसी लारा ने भू अर्जन अधिकारी के प्रत्येक पत्रों को कूड़ेदान में फेंक दिया एवं किसी भी पत्र का कोई जवाब नहीं दिया न ही भूमि स्वामी को बोनस रकम का भुगतान किया। भूमि स्वामी विवेक श्रीवास्तव ने उपरोक्त संबंध में माननीय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत कर भू अर्जन अधिकारी के आदेश दिनांक 21.06. 2021 के परिपालन में उसे बोनस राशि दिलाने का मांग किया था। जिस पर माननीय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने wpcno 5041/23 में पारित आदेश दिनांक 20.12.2023 द्वारा विवेक श्रीवास्तव को निर्देशित किया कि वह बोनस रकम प्राप्त की पात्रता के बिंदु पर जिला स्तरीय पुनर्वास समिति के समक्ष आवेदन पेश करें। इसके पश्चात विवेक श्रीवास्तव ने जिला स्तरीय पुनर्वास समिति रायगढ़ के समक्ष दिनांक 12.04.2024 को अभ्यावेदन किया। जिस पर विचार पश्चात जिला स्तरीय पुनर्वास समिति ने 24 अप्रैल 2024 को अनुविभागीय अधिकारी रायगढ़ को निर्देशित किया कि वह भूमि स्वामी विवेक श्रीवास्तव को तहसीलदार पुसौर के प्रतिवेदन दिनांक 21.06.2021 एवं भू अर्जन अधिकारी रायगढ़ के आदेश दिनांक 28.08.2021 के परिपालन में बोनस भुगतान विषयक कार्यवाही करें। उक्त पत्र जारी होने के बाद रायगढ़ के एसडीएम जो भू अर्जन अधिकारी भी हैं ने कई पत्र एनटीपीसी लारा को जारी कर भू स्वामी को बोनस रकम दिलाने का आदेश दिया। लेकिन एनटीपीसी ने एसडीएम के किसी भी पत्र का कोई जवाब नहीं दिया एवं विवेक श्रीवास्तव के वकील ने जब एसडीएम से इस संबंध में एनटीपीसी के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की गई तो एसडीएम रायगढ़ में एनटीपीसी के जिम्मेदार अधिकारी को मीटिंग में बुलाने का आश्वासन देकर कार्यवाही को टाल दिया। जिसके कारण सरकार को जमीन देखकर ठगा हुआ भू स्वामी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है।
महाप्रबंधक पर दर्ज हो FIR : वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मिश्रा
इस मामले की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार मिश्रा ने समूचे मामले में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भू स्वामी की भूमि लेने के बाद उसे बोनस रकम देने में टालमटोल एक तरह से ठगी और धोखाधड़ी का अपराध है। उन्होंने कहा कि भू अर्जन अधिकारी द्वारा जारी पत्रों का जवाब ना देना एवं उनके आदेश के बावजूद भू स्वामी को बोनस रकम का भुगतान न करना शासकीय आदेश की अवज्ञा का भी अपराध है। जिसके लिए एसडीएम रायगढ़ की ओर से एनटीपीसी के महाप्रबंधक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई जानी चाहिए थी लेकिन अफसोस की बात है कि रायगढ़ के एसडीएम अपनी आंखों से अपने आदेश का अपमान होता देखकर भी अज्ञात कारणवश मौन धारण किए हुए हैं।
सांसद ने कलेक्टर और महाप्रबंधक को जारी किया पत्र
इस मामले में अब रायगढ़ सांसद श्री राधेश्याम राठिया ने भी कलेक्टर रायगढ़ और एनटीपीसी महाप्रबंधक को पत्र जारी कर भू स्वामी विवेक श्रीवास्तव को बोनस राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है। सांसद श्री राधेश्याम ने इस मामले में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भू अर्जन के मामले में किसी भी भू प्रभावितों का अधिकार छीना नहीं जाना चाहिए। कलेक्टर और भू अर्जन अधिकारी को इस बात का ख्याल रखना चाहिए। किसी भी औद्योगिक प्रयोजन के मामले में भू प्रभावितों को तत्काल उनका हक मिलना चाहिए। हमने कलेक्टर को इस बाबत पत्र लिखकर निर्देशित किया है।
नौकरी देने में भी एनटीपीसी की मनमानी
छ.ग. आदर्श पुनर्वास नीति 2005 (यथा संसोधित 2007) के तहत नियमित रोजगार देने का प्रावधान है। एनटीपीसी प्रबंधन ने ग्रामीणों से कहा कि लारा प्लांट में छग शासन की पुनर्वास नीति नहीं लागू है और उनकी स्वयं पुनर्वास नीति लागू है जिसके अनुसार वे रोजगार नहीं दे सकते। रोजगार के एवज में वन टाइम सेटमेंट राशि( पुनर्वास राशि) देने की दुहाई देते हैं।
यहां यह भी बताना लाजमी होगा कि एनटीपीसी प्रबंधन के पास खुद की पुनर्वास योजना बनाने का कोई अधिकार नहीं क्योंकि लारा में प्लांट खोलने का मसौदा एनटीपीसी और राज्य सरकार के बीच तय हुआ था। जिसमें यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि रहवासियों और प्रभावितों का विस्थापन और पुनर्वास छग आदर्श नीति के अनुसार होगा। लेकिन एनटीपीसी प्रबंधन ने नियमों को ताक पर रखकर अपनी ही एक ग्राम विकास सलाहकार समिति (VDAC) बना डाली। जिसमें उनके कृपा पात्र लोग, तत्कालीन अधिकारी शामिल हैं। जिनके आधार पर एनटीपीसी ने 2571 प्रभावित परिवार में से 1800 को नौकरी के एवज में वन टाइम सेटलमेंट दिया था। इसमें 800 लोगों ने जब नौकरी की मांग की तो प्रबंधन ने उन्हें नौकरी भी नहीं दी और सेटमेंट राशि देने से भी आनाकानी कर रहा है।
ग्रामीणों की मानें तो प्रबंधन धारा 4 के मुताबिक जमीन पर मालिकाना हक 3 साल पहले तक की होनी चाहिए जिसके आधार पर पुनर्वास दिया जाएगा। जबकि धारा 4 के प्रकाशन के एक महीने पहले ही तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया ने सभी प्रभावित 9 गांवों में राजस्व विभाग की टीम को कैंप लगवाकर जमीनों का बंटवारा करवाया था। प्रशासन ने अपनी सुविधा के लिए जमीन को बंटवाया क्योंकि एक जमीन कई लोगों के नाम होती तो उसका अधिग्रहण करने में प्रशासन को समय लगता। यानी यहां भी प्रशासन एनटीपीसी के साथ खड़ा था। कैंप में जिन लोगों का खाता-बंटवारा हुआ वो वैध है। लेकिन जिन लोगों ने नौकरी मांगी तो एनटीपीसी प्रबंधन ने धारा 4 की दुहाई देते हुए नौकरी नहीं देने को कहा। प्रबंधन की दोगली नीति यहीं स्पष्ट हो जाती है कि जिन 1800 लोगों को उन्होंने नौकरी के बदले में वन टाइम सेटलमेंट की राशि दी है उनमें से 95 फीसद लोगों के जमीन का बंटवारा कैंप में ही हुआ है। तो यह बात स्पष्ट है कि एनटीपीसी ने नौकरी नहीं देने के एवज में ऐसे नियम बताए जिसके पालन उसने खुद नहीं किया।
केवल रायगढ़ एनटीपीसी ने किया यह कारनामा
वहीं दूसरी ओर रायगढ़ के एनटीपीसी ने ही अपनी खुद की पुनर्वास कमेटी बनाकर एक इतिहास रच दिया है क्योंकि अन्यत्र एनटीपीसी में राज्य पुनर्वास नीति ही चलती है। पर रायगढ़ में उसने जिस कमेटी के आधार पर पुनर्वास राशि का बंटवारा किया वही सवालों के घेरे में है। ग्रामीणों ने इस कमेटी को लेकर जब पतासाजी की तो सभी सरकारी महकमों ने ग्राम विकास सलाहकार समिति नहीं होने की बात कही। कुछ जागरूक युवाओं ने जब एनटीपीसी कॉर्पोरेट ऑफिस में आरटीआई लगाया तो पता चला कि एनटीपीसी द्वारा रिकार्ड में किसी भी तरह की कोई विकास सलाहकार समिति नहीं बनाई गई है।
अगस्त 2012 में तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया ने एनटीपीसी के पुनर्वास योजना को अनुमोदन के लिए उद्योग संचनालय रायपुर को भेजा था लेकिन संचनालय पुनर्वास योजना को खारिज कर दिया। संचनालय का कहना था कि भूमि अधिग्रहण किसी इकाई विशेष नहीं किया जाकर सीएसआईडीसी के लैंड बैंक हेतु किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में किसी इकाई विशेष अर्थात मेसर्स एनटीपीसी लिमिटेड के नाम से परियोजन प्रतिवेदन एवं आदर्श पुनर्वास योजना का अनुमोदन आवश्यक नहीं है। छग राज्य की आदर्श की पुनर्वास नीति 2007 के नियमों-शर्तों का पालन किया जाएगा।
जबकि जमीन अधिग्रहण के लिए उद्योग संचनालय को छग आदर्श पुनर्वास नीति 2007 के पालन की शर्त पर निजी जमीन के भू-अर्जन की सैद्धांतिक अनुमित दी गई थी।