
रायगढ़। छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओपी चौधरी की फेसबुक पोस्ट में आजादी के बाद पहले 50 वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर को “इग्नोर” करने का दावा किया गया है और रावघाट से जगदलपुर रेल लाइन की स्वीकृति को वर्तमान केंद्र सरकार की नई उपलब्धि बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया गया है। इस पोस्ट की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के जिला उपाध्यक्ष प्रिंकल दास ने कड़ी आलोचना की है, जिसमें इसे राजनीतिक क्रेडिट लेने का प्रयास बताया गया है, क्योंकि यह परियोजना दशकों पुरानी है और पहले की सरकारों में शुरू हुई थी।
प्रिंकल दास का कहना है कि ऐसे दावे इतिहास को गलत तरीके से पेश करते हैं और जनता को गुमराह करते हैं। आइए तथ्यों के आधार पर इन दावों की पड़ताल करें।इंफ्रास्ट्रक्चर की कथित “उपेक्षा” का दावा भ्रामक पोस्ट में कहा गया कि आजादी के बाद 50 वर्षों (1947 से 1997 या व्यापक रूप से 2014 तक) में इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रोथ पर उचित ध्यान नहीं दिया गया। लेकिन सरकारी आंकड़े (सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा रेल मंत्रालय) इसके विपरीत हैं:राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 1947 में करीब 22,000 किमी थी, जो 2014 तक बढ़कर 91,287 किमी हो गई – औसतन सालाना 1,000+ किमी वृद्धि। 2014 के बाद यह 1,46,000+ किमी (2024 तक) पहुंची, गति बढ़ी (औसत 5,500 किमी/वर्ष), लेकिन आधार पहले का था।
रेल नेटवर्क और विद्युतीकरण में भी निरंतर प्रगति हुई। पहले दौर में कृषि, सिंचाई (जैसे भाखड़ा-नांगल डैम) और औद्योगिक नींव पर फोकस था, क्योंकि देश गरीबी और खाद्य संकट से जूझ रहा था। वर्तमान तेजी सराहनीय है, लेकिन “इग्नोर” का आरोप अतिशयोक्ति है। विकास सभी सरकारों का योगदान है, न कि किसी एक की उपलब्धि।
रावघाट-जगदलपुर रेल लाइन “नई स्वीकृति” नहीं, 30 साल पुरानी परियोजना है यह परियोजना 1995-96 के रेल बजट में शामिल हुई (रेल मंत्रालय के आधिकारिक रिकॉर्ड और विकिपीडिया इतिहास)। मुख्य उद्देश्य रावघाट खदानों से भिलाई स्टील प्लांट (bsp SAIL) और नगर नार स्टील प्लांट के लिए लौह अयस्क परिवहन।
कुल लाइन दल्ली-राजरा से जगदलपुर (235 किमी): फेस 1 (दल्ली-राजरा से रावघाट, 95 किमी) – 2000 के दशक से काम, 2023 तक ताडोकी तक ट्रेनें चल रही हैं।
फेज-2 (रावघाट से जगदलपुर, 140 किमी): 2016 में नोटिफिकेशन जारी (बिजनेस स्टैंडर्ड रिपोर्ट)। मई 2025 में अंतिम फंडिंग स्वीकृति मिली – ₹3,513.11 करोड़, पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा (रेल मंत्रालय नोटिफिकेशन, PIB और मीडिया रिपोर्ट्स जैसे दैनिक भास्कर, टाइम्स ऑफ इंडिया)।
देरी के कारण: नक्सलवाद (माओवादी विरोध और सुरक्षा चुनौतियां), वन मंजूरी (2004-2009 तक कोर्ट केस) और पर्यावरण क्लियरेंस। 2014 के बाद सुरक्षा बलों (SSB/CRPF) की तैनाती से गति मिली, नक्सल प्रभाव कम होने से अब आगे बढ़ रही है।
यह मुख्यतः औद्योगिक (अयस्क परिवहन) उद्देश्य से है, हालांकि बस्तर के कनेक्टिविटी और विकास में योगदान देगी (कोंडागांव, नारायणपुर जैसे जिलों को पहली बार रेल कनेक्शन)। लेकिन स्थानीय स्तर पर भूमि अधिग्रहण, मुआवजा और विस्थापन की शिकायतें रही हैं (लैंड कन्फ्लिक्ट वॉच रिपोर्ट्स)।
प्रिंकल दास की आलोचना सही मायने में तथ्यों पर आधारित है – यह परियोजना नई नहीं, बल्कि पुरानी नींव पर पूरी हो रही है। वर्तमान सरकार की भूमिका (सुरक्षा सुधार और फंडिंग) महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे “पहली बार स्वीकृत” बताना इतिहास की अनदेखी है। बस्तर का विकास सभी के लिए जरूरी है, लेकिन राजनीतिक क्रेडिट की होड़ में तथ्यों को तोड़-मरोड़ना जनता के साथ अन्याय है। सच्चा धन्यवाद उन इंजीनियरों, मजदूरों और नीति-निर्माताओं को भी मिलना चाहिए, जिन्होंने दशकों पहले इसकी शुरुआत की। तथ्यपूर्ण चर्चा से ही असली विकास की समझ बनेगी।














