बीमारी किसी से भेद भाव नहीं करती
छत्तीसगढ़ में 18+ वैक्सीनेशन में गरीबों को प्राथमिकता देने वाले राज्य सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने कहा कि बीमारी अमीरी या गरीबी देखकर नहीं आती है। इसलिए वैक्सीन भी इस नजरिए से नहीं लगाई जा सकती।
हाईकोर्ट ने राज्य के अपर मुख्य सचिव (ACS) के आदेश को गलत बताते हुए एक स्पष्ट पॉलिसी बनाने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई अब 7 मई को होगी।
वैक्सीन को लेकर सरकार का ये है आदेश
हाईकोर्ट में यह याचिका सरकार की ओर से वैक्सीनेशन में अंत्योदय कार्ड धारकों को प्राथमिकता देने के खिलाफ लगाई गई है। अधिवक्ता पलाश तिवारी, राकेश पांडेय, अरविंद दुबे, सिद्धार्थ पांडेय और अनुमय श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक, कोरोना वैक्सीन सबसे पहले अंत्योदय कार्ड धारकों को फिर BPL, उसके बाद APL और अंत में सभी को दी जाएगी।
आरक्षण प्रणाली का यह निर्णय और आदेश संवैधानिक अधिकार के विपरीत है। एडवोकेट किशोर भादुड़ी ने भी इस आदेश को गलत बताया।
बर्बाद हो रही वैक्सीन, यह अन्य लोगों के साथ अन्याय
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस निर्णय से बड़ी संख्या में वैक्सीन बर्बाद हो रही है, जो दूसरे व्यक्तियों को लग सकती है। यह करना अन्य लोगों के साथ अन्याय की तरह है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के लिए यह अच्छा होगा कि सहायता केंद्र खोले।
इन केंद्रों पर गरीब तबके के व्यक्ति, जिसके पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं है वहां जाकर अपना रजिस्ट्रेशन और वैक्सीन लगवाने की जानकारी और सुविधा मिले। वकीलों ने बताया कि आपदा नियंत्रण अधिनियम में कहीं भी किसी एक वर्ग को सुरक्षा देने का उल्लेख नहीं है।
राज्य सरकार के जवाब पर कोर्ट ने जताई आपत्ति
राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल (AG) सतीश चंद्र वर्मा ने बताया कि वैक्सीन कम है। गरीब तबके में जागरूकता नहीं है। उनके पास मोबाइल और इंटरनेट भी नहीं है। गरीब बाहर निकल जाते हैं, जिससे संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं। इसलिए प्राथमिकता के आधार पर भी इस तबके को सबसे पहले वैक्सीन लगवाया जा रहा है।
इस जवाब पर हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई। कहा, पूरे राज्य में लॉकडाउन है। ऐसे में गरीब तबके को बाहर निकलने से रोकना शासन की जिम्मेदारी है। कोरोना गरीब और अमीर देखकर संक्रमित नहीं कर रही है।
हाईकोर्ट ने कहा- आदेश कैबिनेट के निर्णय से होने चाहिए
सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि 18 साल से ऊपर को वैक्सीन लगाने के लिए ACS का आदेश गलत है। यह आदेश कैबिनेट के निर्णय से होना था, न कि किसी अधिकारी द्वारा जारी किया जाना था। अफसर को यह अधिकार नहीं है कि ऐसे मामले में निर्णय ले।
केंद्र सरकार के निर्णय से प्रतिकूल होकर राज्य ऐसे मामलों में निर्णय नहीं ले सकते, WHO के नियम के विपरीत नहीं जा सकते हैं, न ही किसी वर्ग विशेष को संरक्षित कर सकते हैं।
शासन से दो दिन में जवाब मांगा
कोर्ट ने कहा, वैक्सीनेशन के लिए उचित वर्गीकरण का अगर कारण नहीं बता सकते तो वह भेदभाव होगा। किसी वर्ग को प्राथमिकता देते हैं तो उसका आधार होना चाहिए, जो आदेश में नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि बीमारी किसी से भेदभाव नहीं कर रही है। सभी को हो रही है। इसलिए दवाई सभी को मिलनी चाहिए। साथ ही कोर्ट पूरे मामले पर जवाब के लिए शासन को दो दिन का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई अब शुक्रवार को होगी।
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