आप की आवाज
छत्तीसगढ़ डेस्क
*॥ माया और मायापति ॥*
विशेष लेख=माया का अर्थ ही यह है कि जो कभी अपना रहा ही नहीं उसके प्रति आसक्त होकर दृढ़तापूर्वक उसे अपना समझ लेना। जो अनित्य है, नश्वर है उसके प्रति अपनत्व और ममत्व का भाव ही माया है। श्रीमद् भगवद्गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि मेरी बनाई हुई यह माया बड़ी दुस्तर है। इससे बड़े – बड़े ज्ञानी भी मुक्त नहीं हो पाते।
*माया से मुक्त होने का उपाय भी भगवान स्वयं बताते हैं , कि जो निरन्तर मेरा भजन, सुमिरण करते हैं वो मेरी कृपा से मेरे द्वारा निर्मित इस दुस्तर माया से भी मुक्त हो जाते हैं। भक्ति मार्ग माया से मुक्त होने का सबसे सरलतम उपाय बताया गया है। प्रत्येक वस्तु को भगवान के चरणों में अर्पित कर दो। माया को मायापति की ओर मोड़ दो तो माया स्वतः प्रभावहीन हो जायेगी।
*लक्ष्मी तब तक ही बांधती है, जब तक वह अपनी देह के सुखों की पूर्ति में ही खर्च होती है। लक्ष्मी को नारायण की सेवा में लगाना प्रारंभ कर दो तो वह पवित्र भी होगी और तुम्हें प्रभु के समीप भी लेकर जाएगी। याद रखना, माया को छोड़कर कोई मुक्त नहीं हुआ अपितु जिसने प्रभु की तरफ माया को मोड़ दिया , वही मुक्त हुआ।
*कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने…..*
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की मंगलकामनाएं
*🙏 श्री सीताराम नाम महाराज🙏*